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महिला चिकित्सक डॉ. शबनम यास्मिन के परिवार के सभी सदस्यों ने पायी कोरोना पर विजय

संक्रमित मां सहित पूरे परिवार की सेहत की चिंता के बावजूद अपनी जिम्मेदारी के निवर्हन में जुटी:
टीकाकरण आया काम, संक्रमित होने के वावजूद भी नहीं आएगी गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं:
घर पर रहकर ही सभी हुए ठीक

किशनगंज(बिहार)आज कोरोना संक्रमण की दूसरी लहर के दौरान चिकित्सक धूप में छांव की तरह लोगों की सेवा कार्य में जुटे हुए हैं। कई तो संक्रमण की चपेट में भी आए, लेकिन इसे मात देकर दोबारा अपने कर्तव्य निवर्हन के कार्य में लग गए। चिकित्सक को धरती पर भगवान का दूसरा रूप क्यों कहा जाता है, यह आज सभी को समझ में आ गया है। अगर संक्रमण काल में आम लोगों की तरह ये भी घर पर बैठ जाते तो मानव जीवन संकट में पड़ सकता था। ऐसे में अपने कर्तव्य और मानव जीवन की रक्षा के लिए चिकित्सक वैश्विक महामारी के दौर में मरीजों का हर कदम पर साथ दे रहे हैं।मन में दृढ़ विश्वास हो तो दुनिया में कोरोना क्या किसी बीमारी को हराया जा सकता है। इस बात को साबित किया है कि कोरोना की दूसरी लहर में एक योद्धा की तरह काम करने वाली सदर अस्पताल की 46 वर्षीय महिला चिकित्सक डॉ. शबनम यास्मिन एवं उनके परिवार सदस्यों ने।

मजबूत इच्छाशक्ति और बुलंद हौसले से डॉ. शबनम यास्मिन ने दी कोविड-19 को मात:
डॉ. शबनम यास्मिन पिछले 10 वर्षो से सदर अस्पताल में अपनी सेवा दे रही हैं। पिछले वर्ष संक्रमण काल में 02 संक्रमित महिला का सुरक्षित सिजेरियन करके प्रसव करने का श्रेय भी इन्ही को प्राप्त है। कोरोना मरीजों की सेवा में लगी डॉ. शबनम उनके पति एवं उनकी मां 13 मई  को कोरोना पॉजिटिव हो गए थे। पॉजिटिव रिपोर्ट आने के बाद तीनों ने घबराने की बजाय धैर्य से काम लिया। अपने आवास में होम आइसोलेशन में रहते हुए बीमारी को मन पर हावी नहीं होने दिया। मजबूत इच्छाशक्ति एवं हौसला को बुलंद रखा। अंत में कोरोना को मात देने में सफल रहे। डॉ. शबनम यास्मिन ने बताया कि 11 तारीख को उनके पति को कोरोना का हल्का लक्षण दिखाई दिया। दूसरे दिन जब उन्होंने अपनी जांच कराई तो रिपोर्ट पॉजिटिव आई। उसके बाद उनकी 75 वर्षीय माँ भी संक्रमित हो गयी। उसके बाद सभी ने खुद को होम आइसोलेट कर दवा और गरम पानी का सेवन शुरू किया। मन में पूर्ण विश्वास था कि वैक्सीन ले चुके हैं तो जीत हासिल ही होगी। महज 10 दिनों के भीतर कोरोना को मात दी। कोरोना से लड़ाई जीतने के बाद हौसला और बढ़ गया है। अब कोरोना जैसा डर मन से निकल गया है। बस लोगों की सेवा करनी है। बताया कि संक्रमित होने के बाद मन में यही सोच को कायम रखा कि ठीक होकर फिर संक्रमितों के बीच जाकर काम करना है।

टीकाकरण आया काम, संक्रमित होने के बावजूद भी नहीं आएगी गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं: डॉ. यास्मीन
डॉ. शबनम यस्मिन बताती हैं कि उन्होंने अपना तथा पूरे परिवार का टीकाकरण करा रखा था। यही कारण है कि कोरोनावायरस से संक्रमित होने के बावजूद भी परिवार में किसी को भी गंभीर स्वास्थ्य जटिलताएं नहीं आई। वे इस बात को मानती हैं कि अगर उन लोगों ने अपना टीकाकरण नहीं कराया होता तो संक्रमण से बच निकलना नामुमकिन हो सकता था। साथ ही कहती हैं कि यह कोविड टीकाकरण की देन है कि उनके परिवार के सभी लोग सुरक्षित हैं।

पड़ोसियों तथा आम लोगों को भी टीकाकरण के लिए करती हैं जागरूक:
टीकाकरण के फायदे एवं बतौर अपनी कहानी बताकर डॉ. शबनम यस्मिन अपने आस पास के लोगों, मित्रों, रिश्तेदारों तथा आमजनों से टीकाकरण कराने का अनुरोध करती हैं। वे कहती हैं कि टीकाकरण पूरी तरह से सुरक्षित है लेकिन अभी भी टीकाकरण को लेकर लोगों में भ्रांतियां है एवं लोग कुछ अफवाहों को सही मान लेते हैं। वे लोगों से अनुरोध करती हैं कि अपना टीकाकरण अवश्य कराएं क्योंकि टीका लेकर ही इस महामारी से बचा जा सकता है ना कि अफवाहों एवं भ्रांतियों के चक्कर में फंसकर। साथ ही आम लोगों से गुजारिश है कि संक्रमित होने के बाद घबराने की जरूरत नहीं है। मनोबल को कमजोर नहीं होने दें। अपील करते हुए कहा कि लोग इस समय डरने की बजाय संयम से काम लें। सुरक्षित रहने के लिए वैक्सीन जरूर लगवाएं।

स्वस्थ होने के साथ ही दुगुनी ताकत के साथ पुनः अपने कार्य पर लौटी:
डॉ. शबनम यस्मिन को अब पता है कि यदि वह दोबारा संक्रमण की चपेट में आती हैं तो उन्हें कैसे स्वस्थ होना है और दूसरों को स्वयं का अपना उदाहरण देते हुए कैसे प्रेरित करना है। सेवा के भाव और स्वस्थ होने के बाद आत्मविश्वास से भरपूर इन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि ‘इस बीमारी से ग्रस्त होने के बाद व्यक्ति को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए। अगर व्यक्ति में आत्मविश्वास और किसी भी कठिनाई से लड़ने का जज्बा हो तो वह बड़ी से बड़ी लड़ाई को जीत सकता है। साथ ही कहा परिजनों का साथ इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी होता है, मानसिक मजबूती। इससे ही बहुत से समस्याओं का हल हो जाता है।