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कुपोषण के कारण बच्चें शारीरिक व मानसिक रूप से होते हैं कमजोर

स्वास्थ्य विभाग, आईसीडीएस, सी-मैम एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं के द्वारा समय-समय पर दी जाती है परामर्श: नजमुल होदा
बच्चों की लंबाई / ऊंचाई एवं वजन से मिलती है कुपोषण की जानकारी:

पूर्णिया(बिहार)गर्भवती महिला एवं शिशुओं के शुरुआती एक हजार दिनों में बेहतर पोषण अत्यधिक महत्त्वपूर्ण हो जाता है। बच्चे के मस्तिष्क और शारीरिक विकास के लिए इसे अतिआवश्यक माना जाता है। ताकि कार्बोहाइड्रेट, प्रोटीन, विटामिन, मिनरल्स, फैट इन सभी पोषक तत्वों के साथ संतुलित आहार बच्चा व जच्चा को दिया जाए। कुपोषण के कारण बच्चे के शारीरिक एवं मानसिक विकास में रुकावट ही नहीं बल्कि इससे संक्रमित बीमारी जैसे: डायरिया, लगातार उल्टी होना, बहुत जल्दी बीमार होना, यह सब रोग प्रतिरोधक क्षमता के घटने के कारण होता है। शिशु मृत्यु दर में कुपोषण एक बहुत बड़ा कारण है। नवजात शिशुओं में होने वाले कुपोषण को दूर करने के लिए उसका समुचित उपचार करना जरूरी होता है लेकिन इसके पहले मूल कारणों की पहचान करना भी अतिमहत्त्वपूर्ण है।

स्वास्थ्य विभाग, आईसीडीएस, सी-मैम एवं अन्य सहयोगी संस्थाओं के द्वारा दिया जाता परामर्श:
क्षेत्रीय कार्यालय प्रबंधक नजमुल होदा ने कहा कि ज़िले के विभिन्न आंगनबाड़ी केंद्रों पर सेविका, आशा कार्यकर्ता एवं एएनएम के द्वारा अपने-अपने पोषक क्षेत्रों के सभी बच्चों का टीकाकरण नियमित रूप से दिशा-निर्देश के आलोक में कराया जाता है। टीकाकरण के समय सभी कुपोषित एवं अतिकुपोषित बच्चों का वजन, लंबाई/ऊँचाई को एएनएम के द्वारा प्रमाणित किया जाता है। उम्र के साथ वजन, लंबाई के साथ वजन नहीं बढ़ने पर उन्हें अतिकुपोषित बच्चों की श्रेणी में रखा जाता है। जिसे स्वास्थ्य विभाग, आईसीडीएस, यूनिसेफ के द्वारा संचालित सी-मैम कार्यक्रम सहित कई अन्य सहयोगी संस्थाओं के द्वारा कुपोषित बच्चों के परिजनों को सही सलाह के साथ मार्गदर्शन दिया जाता हैं, ताकि वह बच्चा कुपोषण से मुक्त होकर सामान्य बच्चे की तरह रह सके। अतिकुपोषित बच्चों में चिकित्सीय समस्या होने पर उसे सदर अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र भेजा जाता है।
दो साल का बच्चा हो गया कुपोषण का शिकार
कृत्यानगर प्रखंड के परोरा पंचायत अंतर्गत संतोष बंगाली टोला स्थित आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या-21 के अन्तर्गत आने वाले पिता महमद फैजल व माता निशा प्रवीण का लगभग दो वर्षीय पुत्र महमद आशिक बचपन से ही कुपोषण का शिकार हो गया था। इस संबंध में निशा प्रवीण का कहना है कि पारिवारिक स्थिति बेहद कमजोर होने के कारण कभी मायके तो कभी ससुराल आना जाना पड़ता था जिस कारण गर्भस्थ
बच्चे की परवरिश ठीक ढंग से नहीं कर पाई। जिसका नतीज़ा यह हुआ कि मेरा बच्चा कुपोषण का शिकार हो गया है। हालांकि स्थानीय आंगनबाड़ी केन्द्र संख्या-21 की सेविका सबीना खातून एवं एएनएम सुनीता कुमारी के द्वारा संयुक्त रूप से समय-समय पर मोहमद आशिक को प्रत्येक 15 दिन पर उसका वजन एवं लंबाई/ऊँचाई लिया जाने लगा एवं विभिन्न प्रकार के स्वास्थ्य एवं पोषण सलाह भी दी गई । इसके बावजूद बच्चें में विशेष सुधार नहीं हो रहा था तो मेघा दीदी के द्वारा जिला से एक टीम बुलाकर मुझे सदर अस्पताल स्थित एनआरसी भेजा जा रहा है।
पोषण सलाहकार की देखरेख में पौष्टिक आहार दिया जा रहा
आरपीएम नजमुल होदा ने बताया कि शुरुआती दौर में ही भ्रमणशील सहयोगी संस्थाओं के कर्मियों द्वारा अतिकुपोषित बच्चों के अभिभावकों को परामर्श दिया गया था और सलाह के तौर पर उन्हें अपने बच्चों को घरेलू सामग्रियों से बना हुआ पौष्टिक आहार देने की बात कहीं गई थी। लेकिन बाद के दिनों में भी कोई सुधार नहीं दिखा तो अब इसे सदर अस्पताल स्थित पोषण पुनर्वास केंद्र (एनआरसी) भेजा गया हैं। जहां विशेषज्ञ चिकित्सकों द्वारा बच्चे की गहन जांच कर उन्हें कम से कम 14 दिन या उससे अधिक दिनों तक पोषण सलाहकार की देखरेख में पौष्टिक आहार देकर उसे सुपोषित किया जाएगा। कुपोषित बच्चे के माता को लगभग 250 रुपये प्रतिदिन का भत्ता दिए जाने का प्रावधान है। उसके साथ ही बच्चें का खाना, रहना, बेहतर उपचार एवं किसी भी एक अभिभावक का भोजन देने का प्रावधान है।

कुपोषित बच्चों की लंबाई व वजन से मिलती हैं जानकारी:
पूसा कृषि विश्वविद्यालय समस्तीपुर की सी-मैम सलाहकार मेघा सिंह का कहना हैं की बच्चों में कुपोषण की जांच करने के लिए ग्रामीण क्षेत्रों में आंगनबाड़ी केंद्र की सेविका व एएनएम के द्वारा 0 से 5 वर्ष तक के बच्चों की लम्बाई/ऊँचाई एवं वजन मापा जाता है। इसके आधार पर बच्चों की पोषण स्थिति की जानकारी होती है। वैसे बच्चे जो सेविका के द्वारा अतिकुपोषित चिन्हित होते है उन्हें सी-मैम क्लिनिक में रेफर किया जाता है। वहां एएनएम के द्वारा बच्चें की पुनः जांच की जाती है। अगर बच्चा अतिकुपोषित श्रेणी में आता है तो उसके भूख की जांच, चिकित्सीय जटिलता, दोनों पैरों में गड्ढे पड़ने वाले सूजन की जांच की जाती है। अगर बच्चे में किसी भी प्रकार की कोई समस्या नहीं हो एवं बच्चें में भूख भी सही हो तो उसे समुदाय आधारित सी-मैम प्रोग्राम में रखा जाता है। प्रत्येक 15 दिन में उसका वजन, लंबाई एवं पोषण स्थिति निकाली जाती है। साथ ही प्रत्येक फॉलोअप में विशेष सलाह भी दी जाती है। अगर किसी बच्चे में चिकित्सयीय जटिलता पाई जाती है तो उसे एएनएम दीदी द्वारा एनआरसी रेफर कर दिया जाता है। कुपोषण को दूर करने के लिए भोजन में विविधता, तेल, घी एवं गुड़ का प्रयोग, सबसे कम चार खाद्य समूह को बच्चे की थाली में सुनिश्चित करना चाहिए। बच्चे में उम्र के हिसाब से भोजन की मात्रा, बारंबारता एवं गाढ़ापन का विशेष महत्व होता है।

कोरोना काल में इन उचित व्यवहारों का करें पालन

  • एल्कोहल आधारित सैनिटाइजर का प्रयोग करें।
  • सार्वजनिक जगहों पर हमेशा फेस कवर या मास्क पहनें।
  • अपने हाथ को साबुन व पानी से लगातार धोएं।
  • आंख, नाक और मुंह को छूने से बचें।
  • छींकते या खांसते वक्त मुंह को रूमाल से ढकें।