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मातृ मृत्यु दर में कमी लाने के उद्देश्य से दो दिवसीय कार्यशाला का सिविल सर्जन ने किया उद्घाटन

मातृ मृत्यु दर गंभीर समस्या, एमडीएसआर का अनुपालन जरूरी
सही रिपोटिंग मातृ मृत्यु दर के मामलों में कमी लाने के लिये जरूरी
देश में हर साल 44 हजार महिलाओं की होती है मौत, समस्या के निदान को लेकर राज्य सरकार गंभीर

अररिया(बिहार) अस्पताल में बुधवार को आयोजत दो दिवसीय कार्यशाला के पहले दिन देश व राज्य में मातृ मृत्यु के मामलों पर विशेष चर्चा की गई। इस दौरान सिविल सर्जन, जिला स्वास्थ्य सामिति के डीपीएम व एसीएमओ ने गर्भावस्था से लेकर प्रसव के 42 दिन के भीतर महिलाओं की मृत्यु संबंधी विभिन्न आंकड़े व जानकारी दी। उन्होंने मृत्यु के प्रमुख कारण निदान के उपायों पर भी प्रकाश डाला।

प्रसव पूर्व पूर्ण जांच जरूरी:
कार्यशाला का उदघाटन करते हुए सीएस डॉ रूपनारायण कुमार ने कहा कि गर्भवती महिलाओं की प्रसव पूर्व जांच यानी एएनसी बहुत जरूरी है। इस अवधि में कम से कम चार बार एएनसी जरूरी है। उन्होंने डॉक्टरों से कहा कि वे गर्भवती महिलाओं की जांच करते समय स्टेथोस्कोप जरूर लगाएं। इस से कई सारी बीमारियों का पता आसानी से लग जाता है। क्योंकि मातृ मृत्यु के एक प्रमुख कारण जॉन्डिस, चीनी रोग, हृदय रोग, खून की कमी आदि पूर्व से चली आ रही बीमारियां भी हैं।

जिले में मातृ मृत्यु का औसत आंकड़ा 172 प्रति वर्ष:
डीपीएम रेहान अशरफ ने कहा कि हालांकि 90 के दशक के मुकाबले देश में मे मातृ मृत्यु में काफी कमी आयी है। फिलहाल एक लाख महिलाओं में औसतन 130 की मौत हो रही है। इस संख्या पर विस्तार से चर्चा करते हुए उन्होंने बताया कि अब भी गर्भधारण से लेकर प्रसव के बाद 42 दिन के भीतर होने वाली मौतों की संख्या 44 हजार प्रति वर्ष है। जिले में मातृ मृत्यु का औसत आंकड़ा 172 प्रति वर्ष है। इसी क्रम में कुछ सर्वेक्षणों का हवाला देते हुए उन्होंने बताया कि देश के जिन पांच छह राज्यों में मातृ मृत्यु सबसे अधिक है, उसमें बिहार भी शामिल है। असम, राजस्थान राजास्थान, एमपी, बिहार और यूपी में देश के ऐसे राज्य हैं जिनका योगदान ऐसी मौतों में सबसे अधिक है। लगभग 60 फीसदी। उन्होंने ये भी कहा कि मातृ मृत्यु के प्रमुख कारणों में खून की कमी एक बड़ा कारण है। सही ढंग से एएनसी नहीं होना, और अधिक बच्चे होना भी मुख्य कारणों में शामिल हैं। इसी क्रम में उन्होंने कहा कि मातृ मृत्यु के मामलों को किसी स्तर पर भी छुपाने की कोशिश नहीं होनी चाहिए। सही रिपोर्ट आनी चाहिए। क्योंकि उसके बाद ही मौत के कारणों का विश्लेषण कर उसे कम करने के उपायों पर काम करना संभव है। इसी क्रम में उन्होंने जिले में संचालित हेल्थ एंड वेलनेस सेंटरों की उपलब्धि की भी जानकारी दी।

कारणों का विश्लेषण कर सुधार जरूरी:
कार्यशाला के दौरान केयर इंडिया की अधिकारी डॉ मीनल शुक्ला ने कहा कि अब केवल मातृ मृत्यु की समीक्षा से काम चलने वाला नहीं है। बिहार सरकार इस विषय पर बहुत गंभीर है। मातृ मृत्यु को कम करने के लिए अब एमडीएसआर यानी मैटरनल डेथ सेरवेलेन्स एंड रिस्पांस की प्रक्रिया अपनाई जा रही है। इसकी व्याख्या करते हुए उन्होंने कहा कि ये मातृ मृत्यु की पहचान, जानकारी और समीक्षा का सतत चक्र है। इसके जरिये गर्भवाती महिलाओं की देखभाल की गुणवत्ता में आवश्यक सुधार कर मातृ मृत्यु को रोका जा सकता है। उन्होंने मातृ मृत्यु को परिभाषित करते हुए कहा कि ये केवल गर्भधारण गर्भाधारण से लेकर प्रसव के 42 दिन के भीतर हुई मौत ही मातृ मृत्यु की परिभाषा नहीं है। बल्कि ये भी है कि उस महिला की मौत प्रसव संबंधी जटिलताओं व प्रबंधन में चूक से हुई है या नहीं। उन्होंने कहा कि अगर मृत्यु दुर्घटना या लड़ाई झगड़े आदि घटनाओं के कारण हुई तो इसे मातृ मृत्यु नहीं कहा जाता। उन्होंने कहा कि मातृ मृत्यु की सही रिपोर्ट जरूरी है। इसे छिपाना नहीं चाहिए। न ही मातृ मृत्यु के लिए किसी व्यक्ति विशेष को दोषी ठहराते हुए दंडनीय कार्रवाई होनी चाहिए। बल्कि इसके इसे कारणों का विश्लेषण कर सुधार जरूरी है। इसी क्रम में डॉ मीनल शुक्ला ने बताया कि आशा कार्यकर्ताओं को ये बताना जरूरी है कि वे अपने पोषक क्षेत्र की हर गर्भवती गर्भवाती महिला की पूरी जानकारी रखें। साथ ही गर्भावस्था के दौरान या प्रसव के तुरंत बाद महिला वहां से अन्यत्र चली जाती है तो भी इसकी जानकारी होनी चाहिए। ताकि स्वास्थ्य विभाग के अधिकारी उस महिला की खोज कर उसे आवश्यक स्वास्थ्य सेवा उपलब्ध करा सकें। वहीं उन्होंने जहां सुरक्षित मातृत्व आश्वासन योजना का उल्लेख किया तो ये भी बताया कि आशा कार्यकर्ता के अलावा भी समुदाय का कोई सदस्य अपने क्षेत्र में होने वाली मातृ मृत्यु की जानकारी 104 पर बताया कि आशा कार्यकर्ता के अलावा भी समुदाय का कोई सदस्य अपने क्षेत्र में होने वाली मातृ मृत्यु की जानकारी 104 पर दे सकता है। जांच के बाद मामले की पुष्टि होने पर प्रोत्साहन राशि देने का भी प्रावधान है।

कार्यशाला में थे उपस्थित:
कार्यशाला में एनसीडीईओ डॉ डीएनपी साह, डॉ आशुतोष कुमार, डॉ जहांगीर आलम, डॉ जमील अहमद, डॉ जुल्फिकार अली, डॉ रेशमा राज के अलावा केयर की डीटीएल पर्णा चक्रवती, अस्पताल प्रबंधक विकास आनंद, नाजिश नियाज, खतीब अहमद, प्रेरणा रानी वर्मा, कुंदन कुमार, संतोष कुमार, नीतीश कुमार व सव्यसाची कुमार सहित अन्य अस्पताल प्रबंधक व कर्मी उपस्थित थे।