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कोरोना से जंग जीतकर मरीजों की सेवा में जुटे है डॉक्टर सुरेश

  • अदम्य साहस और मजबूत आत्मबल और मनोबल से जीती जंग
  • बचाव ही कोरोना का सबसे बड़ा इलाज है

किशनगंज(बिहार)कोरोना वायरस के संक्रमण ने किसी को भी नहीं छोड़ा चाहे वो डॉक्टर- नर्स हो या कोई अन्य लोग। कोरोना काल में जब भारत सरकार के निर्देश के बाद लगभग पूरा देश अपने- अपने घरों में थे। उस वक्त भी कोरोना वायरस से संक्रमित होने वाले लोगों के इलाज के लिए अपनी जान की परवाह किए बिना जो लोग हॉस्पिटल और स्वास्थ्य केंद्रों पर कार्यरत थे वो डॉक्टर, नर्स सहित अन्य स्वास्थ्य कर्मी हीं थे। इसी कड़ी में सदर अस्पताल में कार्यरत 61 वर्षीय डॉक्टर सुरेश भी है। जो मानवता की रक्षा के लिए कोरोना संक्रमित मरीजों की सेवा में जुटे रहे। डॉक्टर सुरेश 30 वर्षों से कार्यरत हैं। जब लोग एक-दूसरे को छूने से भी परहेज कर रहे थे उस दौर में भी डॉ सुरेश अस्पताल में बगैर किसी परवाह के मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा दे रहे थे। साथ ही मरीज व चिकित्सकों के बीच बेहतर संबंध का संदेश भी देते रहे। हालाँकि, इस दौरान ही वह खुद भी संक्रमित हो गये। किन्तु, घबराए नहीं, बल्कि बुलंद हौसले और मजबूत इच्छाशक्ति के बल पर कोविड-19 को भी मात देने में सफल रहे।
स्वस्थ होने के साथ ही दुगुनी ताकत के साथ पुनः अपने कार्य पर लौटे:
डॉ सुरेश को अब पता है कि यदि वे दोबारा संक्रमण की चपेट में आते हैं तो उन्हें कैसे स्वस्थ होना है और दूसरों को स्वयं का अपना उदाहरण देते हुए कैसे प्रेरित करना है। सेवा के भाव और स्वस्थ होने के बाद आत्मविश्वास से भरपूर इन्होंने सबसे महत्वपूर्ण बात यह कही कि इस बीमारी से ग्रस्त होने के बाद व्यक्ति को हिम्मत नहीं हारनी चाहिए, अगर व्यक्ति में आत्मविश्वास और किसी भी कठिनाई से लड़ने का जज्बा हो तो वह बड़े से बड़े जंग को जीत सकता है। साथ ही कहा परिजनों का साथ इस वक्त सबसे ज्यादा जरूरी होता है, जो मानसिक मजबूती देता है। इससे ही बहुत से समस्याओं का हल हो जाता है। उन्होंने बताया डॉ सुरेश संक्रमित होने के बाद होम्प आइसोलेट हो गए थे। उन्होंने जरूरी इलाज के साथ-साथ मजबूत इच्छाशक्ति और बुलंद हौसले से कोविड-19 को मात दी। स्वस्थ होने के बाद तुरंत पुनः अपने कार्य पर लौटे और फिर से दुगुनी ताकत के साथ मरीजों को बेहतर स्वास्थ्य सेवा दे रहे हैं।
कोविड-19 से घबराए नहीं, सबधानियाँ आपनकर करें सामना :
डॉक्टर सुरेश ने बताया कि कोविड-19 से डरने की जरूरत नहीं है। बल्कि, डटकर इनसे सामना करना चाहिए। इसे मात देने के लिए मजबूत इच्छाशक्ति और धैर्य होना जरूरी है। इससे कोई भी व्यक्ति आवश्यक इलाज के साथ कोविड-19 को मात दे सकता है। उन्होंने बताया कि जैसे ही उन्हें कोविड-19 संक्रमित होने की जानकारी मिली तो कुछ पल के लिए घबराये। किन्तु, फिर सोचे ही घबरा जाएंगे तो सामान्य लोगों का क्या होगा। इसी सोच ने उनके अंदर एक नई ऊर्जा भर दी और हम इसी साहस से कोविड-19 को मात देने में सफल रहे।

बचाव ही कोरोना का सबसे बड़ा इलाज है :
डॉक्टर सुरेश ने कहा कि मास्क नहीं पहनने के हजारों बहाने हो सकते है। लेकिन मास्क पहनने का कारण सिर्फ ज़िम्मेदारी है। मास्क को अपनी ढाल बनाएं और दो गज की दूरी का पालन जरूर करें। उन्होंने बताया कि कोरोना के लक्षण आने में एक से दो हफ्तों का समय लगता है। ऐसे में सबसे जरूरी है कि हम मास्क का उपयोग करें और बाहर सिर्फ जरूरी काम से ही जाएं। बाहर जाने पर भी सोशल डिस्टेंसिंग का पालन करें। वहीं खांसी, सर्दी, सांस लेने में तकलीफ़, स्वाद की कमी जैसे लक्षण दिखते ही कुछ समय के लिए खुद को परिवार तथा बाहरी लोगों से दूरी बना लें। कोरोना को लेकर हमें किसी तरह की लापरवाही नहीं बरतनी चाहिए कोरोना वायरस के संक्रमण से बचने के लिए वैक्सीन आने तक अनिवार्य तौर पर मास्क और सैनिटाइजर का इस्तेमाल करें।