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मकर संक्रांति का भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण अंग: प्रो. टंकेश्वर कुमार

महेंद्रगढ़:हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), के योग विभाग और योग ट्रैकिंग एवं एडवेंचर क्लब की ओर से मकर सक्रांति के पावन पर्व पर राष्ट्रीय वेबिनार का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो.टंकेश्वर कुमार के नेतृत्व व मार्गदर्शन में आयोजित इस कार्यक्रम का उद्देश्य विद्यार्थियों, शोधार्थियों, शिक्षकों और शिक्षणेत्तर कर्मचारियों सहित जन सामान्य को प्रकृति के परिवर्तनशील स्वरूप का मानव जीवन पर क्या प्रभाव पड़ता है ? उसके अवगत कराना तथा योग इस प्रभाव को कैसे मानव जीवन के अनुकूल बनाने में मदद करेगा ? उस पर विचार करना था। कुलपति प्रोफेसर टंकेश्वर कुमार ने इस आयोजन में सम्मिलित प्रतिभागियों को संबोधित करते हुए कहा कि मकर संक्रांति का सनातन धर्म और भारतीय संस्कृति में महत्वपूर्ण स्थान है। आज के ही दिन से शुभ कार्यों का शुभारम्भ करना अच्छा माना जाता है। उन्होंने कहा कि न केवल सूर्य और चन्द्रमा मानव जीवन को प्रभावित करता है बल्कि दूसरे गृह भी उसे प्रभावित करते हैं, हमें इनके महत्व को समझा चाहिए।

कार्यक्रम का आरंभ विश्वविद्यालय के कुलगीत से हुआ उसके बाद विश्वविद्यालय द्वारा तैयार की गई डॉक्यूमेंट्री फिल्म दिखाई गयी। कार्यक्रम के समन्वयक डॉ. अजय पाल ने सभी गणमान्य अतिथियों का स्वागत किया। राष्ट्रीय वेबीनार के मुख्य वक्ता के रूप में अंतर्राष्ट्रीय ख्याति प्राप्त योग साधक एवं शिक्षक डॉ. चरत निर्बन ने कहा कि मानव स्वाभाविक रूप से उन सबके लिए उदासीन रहता है जो उसके पास है और उसके लिए भागता रहता है जो उसके पास नहीं है। उन्होंने कहा कि अहोरात्र में आठ पहर होते हैं। भारतीय चिंतन में त्रिकाल संध्या का विधान मिलता है, संध्या का अर्थ होता है ,संधि जब एक समय समाप्त हो रहा होता है दूसरा समय प्रारंभ हो रहा होता है, ऐसे मिलन के बिंदु को संधि कहते हैं और उसी समय हमारे शास्त्रों ने संध्या करने का विधान बताया है। आज 14 जनवरी को सूर्य दक्षिणायन से उत्तरायण में प्रवेश कर रहा है। यह समय न केवल 14 जनवरी को आता है, बल्कि हिंदू मान्यताओं के अनुसार चौत्र माह में नवरात्र का समय ऐसा ही संक्रांति समय होता है और अश्वनी नवरात्रि के समय भी ऐसा ही परिवर्तन का समय होता है। परिवर्तन के समय हर व्यक्ति को थोड़ा सचेत और सावधान होना चाहिए। अपने मानसिक, भावनात्मक और शारीरिक परिवर्तनों के प्रति सजग होना चाहिए। उसी के अनुसार अपने रहन-सहन, खान-पान, आचार-विचार और व्यवहार को बदलना चाहिए। यह बदलाव प्रकृति के अनुरूप जरूरत के साथ-साथ किया जाए, तो हमारे स्वास्थ्य पर उसका अनुकूल प्रभाव पड़ता है। योग एक ऐसी विधा है जिसमें मानव के सर्वांगीण विकास का आधार छुपा है। इन परिवर्तन के महान क्षणों में योगिक अभ्यास व्यक्ति में गुणात्मक, सकारात्मक परिवर्तन लाकर उसे ऊर्जावान बनाए रखते हैं और वह अपने कार्यों को सुचारु रुप से करके समाज में फलदायी योगदान देने के योग्य बन पाता है।
कार्यक्रम का संयोजन शिक्षा विभाग की डॉ. किरण रानी ने किया। विश्वविद्यालय कुलपति का परिचय भूगोल विभाग के सहायक आचार्य, डॉ. खेराज ने दिया। योग विभाग के सहायक आचार्य डॉ. रवि कुमार ने आज के मुख्य वक्ता का परिचय देते हुए लोगों को उनके बारे में अवगत कराया। कार्यक्रम में धन्यवाद ज्ञापन सिविल इंजीनियरिंग विभाग के डॉ. नीरज ने किया। इस कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के विभिन्न विभागों के आचार्य, विद्यार्थी, शोधार्थी, अधिकारी व शिक्षणेत्तर कर्मचारी ऑनलाइन माध्यम से शामिल हुए।