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दो वक्त की रोटी तलाशने में विद्यार्थियों का सपना चकनाचूर,आर्थिक तंगी के कारण नहीं खरीदा है किताब

रेणुका संगम,बिरनी
गिरिडीह(झारखंड)जिले के बिरनी प्रखंड के दलांगी पंचायत अन्तर्गत लेबरा गांव के दो स्कूली छात्र का पैसे के अभाव में हंसता खेलता बचपन मजदूरी के दलदल में फंसता ही जा रहा है।केंद्र सरकार के कम उम्र के बच्चों को मुफ्त शिक्षा देने का अधिकार अमल में लाने के बावजूद भी देश का भावी भविष्य कहे जाने वाले बच्चें आज भी बाल मजदूर बनकर दो जून की रोटी तलाशने पर मजबूर है। गांव के छात्र राहुल 10वीं और सचिन11वीं का छात्र है। दोनों ही विद्यार्थी अपने अपने कक्षा के टॉपर विद्यार्थी हैं। परंतु पैसे के अभाव में मजदूरी कर पढ़ाई करना पड़ रहा है।

सचिन ने बताया कि वह मैट्रिक में 93 प्रतिशत अंक के साथ परीक्षा पास किया था। उसके बताया की अन्य मित्र हजारीबाग एवं रांची में साइंस लेकर पढ़ाई कर रहे हैं। कहा कि उसका लक्ष्य प्रोफेसर बनना था। परंतु पैसे के अभाव में प्लस 2 उच्च विद्यालय पलौंजिया से इंटरमीडिएट कला से पढ़ रहा हूं। अपने लक्ष्य को मारकर परिवार के गरीबी हालात की वजह से घर पर ही रहकर पढ़ाई कर रहा है।
सप्ताह में एक- दो क्लास करता हूं, बाकी दिनों में गांव घर में मजदूरी कर परिवार भी चलाता हूं और पढ़ाई का खर्च भी निकालता पड़ता है।आर्थिक तंगी के कारण अब तक कक्षा का सभी किताब भी नहीं खरीद पाया है। दोस्तों से किताब मांगकर जैसे तैसे पढ़ता हूं।
उसने कहा की सपना था कि प्रोफेसर बनकर समाज को सुधार सकें परन्तु वह अपना जीवन ही सुधार नहीं पा रहा है। पारिवारिक हालात ने सपने पर पानी फेर दिया। कहता है मुझे भी आम ग्रामीण की तरह रोजी -रोटी के लिए भटकना पड़ेगा। क्योंकि पिता ने आठ साल पहले ही घर छोड़कर कहीं चले गए। जिसका आज तक पता नहीं चल पाया । हाल ही में बड़ा भाई ने भी बीच में ही अपना पढ़ाई छोड़कर कमाने के लिए शहर चला गया। जानकारी के अनुसार उसे अबतक काम नहीं मिला है। जिस वजह से उसे ही परिवार चलाना पड़ता है।
वहीं दूसरी ओर राहुल ने बताया कि वह घर का बड़ा एकलौता बड़ा बेटा है दो अन्य छोटी-छोटी बहने हैं। परंतु पिता जी का राजमिस्त्री काम ठीक नहीं चलने की वजह से उसे भी मजदूरी कर परिवार चलना पड़ रहा है। अगले मार्च में उसकी 10 वीं की परीक्षा है। किंतु अबतक पूरी किताब नहीं खरीद पाया है। उसने अपना लक्ष्य बताते हुए कहा उसे रेलवे में नौकरी करनी है । परंतु पैसे के अभाव में नहीं लगता है कि वह सरकारी नौकरी कर पायेगा। मजदूरी में भी उसे बच्चा कहकर पूरी मजदूरी नहीं दिया जाता है।