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भारतीय सिनेमा और साहित्य की रोचक जानकारियां

साहित्य और सिनेमा

फिल्मी दुनिया में सबसे ज्यादा प्रसिद्ध बांग्ला भाषा के साहित्यकार शरत चंद्र उपाध्याय हैं , देवदास उनकी प्रसिद्ध रचना है। उनके उपन्यास  पर विभिन्न भाषाओं में 15 फिल्में बन चुकी हैं।  शरतचंद्र चंद्र का जन्म हुगली जिले के छोटे से गांव  देवानंदपुर में  15 सितंबर 1876 को हुआ था। इनके पिता  का नाम मोतिलाल एवं मां का नाम  भुनेश्वरी देवी था ।  पारो  शरद चंद की  देवानंदपुर गांव की  सहपाठी धीरू थी  एवं  चंद्रमुखी भागलपुर के  मंसूरगंज की मशहूर नर्तकी कालीदासी थी ।जहां तक हिंदी सिनेमा की बात है। सर्वप्रथम 1936 ईसवी में प्रमयेश चंद्र बरुआ ने देवदास बनाया। उस जमाने के प्रसिद्ध गायक और अभिनेता कुंदन लाल सहगल ने देवदास की भूमिका निभाई थी । जबकि अभिनेत्री जमुना बरुआ पारो और टी राजकुमारी चंद्रमुखी  की भूमिका में  थीं , इसे बंगला और आसामी भाषा में प्रदर्शित किया गया ।उसके बाद 1955 ईस्वी में विमल राय ने पुन: देवदास को परदे पर प्रस्तुत किया , यह हिंदी भाषा की फिल्म थी , जिसमें दिलीप कुमार सुचित्रा सेन ,  बैजंती माला ने अभिनय  किया । संगीत सचिन देव बर्मन का था ।

इस फिल्म में दिलीप कुमार ने देवदास की ऐसी भूमिका निभाई इसे आज भी लोग भुला नहीं पाए हैं।अगर हम आधुनिक देवदास की बात करें तो संजय लीला भंसाली ने 2002 में भव्य तरीके से देवदास का निर्माण  किया । इसके निर्माण में काफी पैसे खर्च हुए। इसमें शाहरुख खान ऐश्वर्या राय पारो और माधुरी दीक्षित  चंद्रमुखी के भूमिका में थी। उस समय टाइम पत्रिका ने इसे सदी की सर्वोत्कृष्ट  फिल्मों में शुमार किया था। फिर भी देवदास का निर्माण फिल्मी दुनिया को अपनी ओर आकर्षित करती रही । इसी का परिणाम था कि अनुराग कश्यप ने 2009 में देव डी का निर्माण किया ,यह देवदास 21 वी सदी का अंग्रेजी रूपांतर था। हिंदी सिनेमा में चार निर्देशक देवदास को अभी तक पर्दे पर उतार चुके हैं।शरतचंद्र की रचनाएं जिस पर हिंदी में फिल्में बनी है उनके नाम विराज बहू, परिणीता, मझली दीदी,  छोटी बहू,  खुशबू मुख्य हैं । अभी तक परिणीता को परदे पर तीन बार उतारा गया है। बसु चंद्र चटर्जी ने शरत चंद्र की कृतियां स्वामी और अपने  प्यारे को लेकर फिल्म का निर्माण किया। यह परिवारिक ताना बाना पर बनी फिल्म थी, इसे दर्शकों ने काफी पसंद किया। अब हम हिंदी के मुख्य कथाकार प्रेमचंद्र की कहानी एवं उपन्यास के ऊपर बनी फिल्मों की चर्चा करेंगे। वैसे तो प्रेमचंद्र हिंदी भाषी क्षेत्र में काफी लोकप्रिय साहित्यकार हैं।

इनको कथा सम्राट भी कहा जाता है। प्रेमचंद्र का जन्म  31 जुलाई 1880  लमही में हुआ था।  300 से अधिक  कहानियाँ, 1 दर्जन से अधिक  उपन्यास  इन्होंने लिखें।  इनकी मुख्य कहानियों में  ईदगाह कफ़न, पूस की रात,  शतरंज के खिलाड़ी,  निर्मला आदि हैं।  जबकि उपन्यासों में  गोदान,  सेवा सदन,  कर्मभूमि  , रंगभूमि , मुख्य हैं  अन्य कहानियों में  सवा सेर गेहूं,  इस्तीफा  , ठाकुर का कुआं  , मंत्री,  बड़े भाई साहब मुख्य हैं  । प्रेमचंद्र का बचपन बड़ी कठिनाई में बीता  । पिता  अजायब राय डाकखाने मे किरानी थे | माँ आनदी हमेशा बीमार रहती थी घर मे आमदनी  से ज्यादा  खर्चे थे।  7 वर्ष की उम्र में इनके मां का निधन हो गया। प्रेमचंद्र  सरकारी शिक्षक बने ,डिप्टी इंस्पेक्टर भी बने  है।  स्वाभिमान के कारण  नौकरी से इस्तीफा दिया। मर्यादा के संपादक रहे हैं, हंस पत्रिका निकाली  ।स्वतंत्र प्रेस चलाया । मुंबई जब आए तो एक फिल्म कंपनी के लिए, एक कहानी बेकारी पर लिखी थी , जो मिल मालिकों एवं मजदूरी के बीच की कहानी थी । जिसका शीर्षक रखा गया था मिल  बाद मे इसका नाम बदल कर  सेठ  की  बेटी फिर इसका नाम मजदूर  के नाम से रिलीज हुई। मृणाल सेन ने कफन को तेलुगु भाषा में बनाया सत्यजीत राय ने शतरंज के खिलाड़ी एवं सदगति पर भी फिल्में बनाई।आर के नारायण – आर के नारायण का जन्म  10 अक्टूबर 1906 को हुआ है ।इनकी चर्चित रचनाएं  मालगुडी डेज और गाइड है ।  1958 में साहित्य अकादमी एवं 1964 पद्म भूषण से सम्मानित हुए  इनके  उपन्यास गाइड पर भी फिल्म बनी , जिसके गीत बड़े ही मशहूर हुए। फिल्म गाइड में वहीदा रहमान ने अभिनय किया था । वहीदा रहमान ने देवानंद के साथ प्रेम पुजारी, सुनील दत्त के साथ रेशमा और शेरा , धर्मेंद्रर के साथ फागुन , राजेेश खन्ना के साथ खामोशी फिल्मों मेंें अभिनय किया । 1967  मनोज कुमार  के पत्थरबाज केे सनम , राज कपूर के सााथ तीसरी कसम , के अलावा चौदरी केे चांद , दिल दिया दर्द लिया , साहब बीवी ,और गुलाम, राम और श्याम , नीलकमल , अदालत , कभी-कभी , महान, नमक हलाल , चांदनी आदि फिल्मों में अभिनय किया ‌। 

चेतन आनंद ने मैक्सिम गोर्की की रचना लेवर डेप्ट से प्रभावित होकरनीचा नगर बनाया । 1946 में रिलीज चेतन आनंद की फिल्में उमा आनंद रफीक अहमद कामिनी कौशल जोहरा  सहगल ने अभिनय किया। सोहराब मोदी ने शेक्सपियर के हैमलेट को आधार बनाकर खून का खून फिल्म बनाया। 1935 मेंं रिलीज फिल्म के  निर्देशक सोहराब मोदी थें ।इस फिल्म के कलाकार  सोहराब मोदी नसीम बानो गुलाम हसन फजल करीम नेे अभिन किया।  अभिनेता निर्माता निर्देशक सोहराब मोदी का जन्म 2 नवंबर 1897 को मुंबई में हुआ था । मोदी बुलंद आवाज के लिए मशहूर हैं  ।1924 में नाटकों में काम शुरू किया है । इनकी फिल्म कंपनी मिनर्वा मूवीटोन के तहत सिकंदर , पुकार जैसी हिट फिल्में दी ।  भारत की पहली टेक्निकल फिल्म  झांसी की रानी इन्होने बनाई । मिर्जा गालिब के लिए राष्ट्रपति का स्वर्ण पदक मिला  । 1980 में दादा साहब फाल्के पुरस्कार मिला। मोदी एतिहासिक फिल्में बनाने में आगे थे। 1946 में भगवती चरण वर्मा के उपन्यास चित्रलेखा पर भी फिल्म बनी । केदार शर्मा मीना कुमारी अशोक कुमार प्रदीप महमूद ने इस फिल्म में अभिनय किया।

यह सफल फिल्म रही  ,  इसे खूब पसंद भी किया गया  । गीत साहिर लुधियानवी और संगीत रोशन का था । मन रे तूू काहे न धीर धीर धरे । काफी लोकप्रिय गीत हुआ । भगवती चरण वर्मा का जन्म 30 अगस्त 1930 को उन्नाव के सफीपुर गांव में हुआ । भूले बिसरे चित्र के लिए 1961 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित एवं 1917 में पद्मभूषण के साथ 1974 में राज्यसभा सदस्य बने । इनकी रचनाओं में चित्रलेखा  भूले बिसरे चित्र , दो बांके, मुगलों ने सल्तनत बॉक्स दी मुख्य हैं। हिंदी के सबसे लोकप्रिय प्रेम कहानियों में से एक चंद्रधर शर्मा गुलेरी की कहानी उसने कहा था फिल्म का निर्माण हुआ जिसमें सुनील दत्त नंदा ने काम किया था । गीतकार शैलेंद्र के बिना साहित्य पर फिल्म बनाने की बात करना बेईमानी होगी । गीतकार शैलेंद्र ने फणीश्वर नाथ रेणु के कहानी मारे गए गुलफाम को नाम बदलकर तीसरी कसम नाम से फिल्म का निर्माण किया। इसका निर्देशन बासु भट्टाचार्य ने किया था । इस फिल्म में राज कपूर और वहीदा रहमान ने काम किया था। इस फिल्म को उस वर्ष सर्वश्रेष्ठ फीचर फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार मिला। फणीश्वर नाथ रेणु का जन्म 4 मार्च 1921 को फारबिसगंज बिहार के औराही हिंगना गांव में हुआ था । 1936 ईस्वी से इन्होंने कहानी लेखन की शुरुआत की, लगभग 26 पुस्तकें रेनू जी ने लिखी। इनका पहला उपन्यास मैला आंचल 1954 में आया, इसके लिए इन्हें पदम श्री प्राप्त हुआ । 4 अप्रैल 1977 के धरा धाम से विदा हो गए। इनकी आंचलिक कहानी मारे गए गुलफाम पर शैलेंद्र ने फिल्म तीसरी कसम का निर्माण किया।  मन्नू भंडारी की कहानी यही सच है को रजनीगंधा नाम से फिल्म बनी , इसे  बसु चटर्जी ने 1974 में निर्माण किया। इस फिल्म में अमोल पालेकर और विद्या सिन्हा ने काम किया । याह कम बजट की फिल्म थी , लेकिन याद दर्शकों के बीच पसंद की गई । इसके गीत के जादू सभी को अपनी ओर खींचने में कामयाब हुआ 1975 में इसे फिल्म फेयर का बेस्ट क्रिटिक और बेस्ट फिल्म अवार्ड मिला । 


मन्नू भंडारी के दूसरे उपन्यास आपकी बंटी को लेकर फिल्में बनी । जिसका नाम बदलकर समय की धारा कर दिया गया ।निर्देशक शिशिर मिश्रा के फिल्म समय की धारा 1946 में बनी। फिल्म में शत्रुघ्न सिन्हा शबाना आज़मी विनोद मेहरा टीना अंबानी श्रीराम लागू ने अभिनय किया था ।कथाकार राजेंद्र यादव राजेंद्र यादव का जन्म 28 अगस्त  1929 को हुआ। यह हंस के संपादक थे। इनके समग्र कीर्ति के लिए  सर्वोच्च  शलाका सम्मान  से सम्मानित हुए  ।  इनकी  मुख्य कीर्तिओं में सारा आकाश, शह और मात ,जहां लक्ष्मी कैद है मुख्य हैं ।उपन्यास सारा आकाश पर वर्ष 1969 में बसु चटर्जी ने इसी नाम से फिल्म बनाई। इसे फिल्म फेयर का बेस्ट स्क्रीनप्ले अवॉर्ड प्राप्त हुआ । लेकिन यह फिल्म नहीं चल पाई राजस्थानी कथाकार मनीकौल  विजयदान देथा की कहानी  दुविधा  । फिल्म दुविधा के लिए मनी कौल को राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार से नवाजा गयाा। राजस्थानी कथाकार विजयदान देथा की कहानी प्रकाश झा ने भी परिणति नाम से फिल्म बनाई और अमोल पालेकर ने फिल्म पहेली बनाई ‌।शैवाल की कहानी पर निर्देशक प्रकाश झा ने दामुल का निर्माण किया , इसे राष्ट्रीय पुरस्कार भी मिला।धर्मवीर भारती के उपन्यास सूरज का सातवां घोड़ा पर श्याम बेनेगल ने भी फिल्म बनायी।  भीष्म साहनी इनकी रचना तमश विभाजन पर फैले सांप्रदायिक उन्माद पर लिखी गई उपन्यास है।  इस बार गोविंद निहलानी ने फिल्म बनाई। महाश्वेता देवी के उपन्यास हजार चौरासी की मां पर गोविंद नीलामी ने दूसरी फिल्म बनाया।

गर्म हवा भी विभाजन पर आधारित पुस्तक है। इस पर एमएस सथ्यू में भी फिल्म बनाई।  गोविंद निहलानी 7 साल की उम्र में विभाजन की विभीषिका को जिया था।  वे सिनेमैटोग्राफर वी के  मूर्ति के सहायक के रूप में फिल्मी करियर शुरू किया। शुरू में निहलानी ने जिन फिल्मों के निर्माण में सहयोग एवं महत्वपूर्ण भूमिका निभाई, वे फिल्में अंकुर श्याम बेनेगल , मंथन , गांधी मुख्य रही।   गोविंद निहलानी ने विजेता, अर्धसत्य ,द्रोहकाल, दृष्टि, तक्षक , देव जैसी फिल्में दी। इस्मत चुगताई का जन्म 21 अगस्त 1915 को उत्तर प्रदेश के बदायूं जिला में हुआ था। पिता के तबादले के साथ कई स्थानों का इन पर प्रभाव पड़ा। 1938 में इन्होंने स्नातक किया । भाई  से प्रभावित होकर कम उम्र में लिखना शुरू किया। 1949 में इनकी पहली कहानी फसादी साकी पत्रिका में  में छपी।।कहानी लिहाफ  के लिए इसमत को जाता है । उपन्यास  जिद्दी 1941 में प्रकाशित हुई ।इन्होंने 1943 में फिल्म छेड़छाड़ एवं 1973 में गर्म हवा की पट कथाएं लिखी ।फिल्म जुगनू में अभिनय भी किया । बहुत सारे सम्मानों  से सम्मानित हुई। लिहाफ  महिलाओं के बीच समलैंगिकता के  मुद्दे को उठाता है। टेढ़ी लकीर उपन्यास भी लिखा। 
मिर्जा हदी रुसवा के उपन्यास पर मुजफ्फर अली के निर्देशन में उमराव जान फिल्म बनी , जिसे आपार लोकप्रियता हासिल हुई।फिल्म उमराव जान में रेखा फारुख शेख शौकत अली नसरुद्दीन शाह ने अभिनय किया था । यह फिल्म 1981 में रिलीज हुई ।  संगीत खय्याम का था । इस फिल्म को नेशनल फिल्म अवॉर्ड फॉर बेस्ट एक्ट्रेस का अवार्ड रेखा को मिला  ,  बेस्ट म्यूजिक डायरेक्टर का अवार्ड खय्याम को मिला। फिल्म फेयर अवार्ड बेस्ट  डायरेक्टर का अवार्ड भी उमराव जान को दिया गया ।खय्याम का पूरा नाम मोहम्मद जहूर खय्याम हाशमी था। खय्याम साहब आभिनेता बनना चाहते थे। वे पंजाब से भागकर दिल्ली अपने चाचा के पास आए।

पंडित हुुुस्न लाल भगत और अमरनाथ जी के पास संगीत की  शिक्षा ली।  प्रसिद्ध संगीतकार बाबा चिश्ती से मुलाकात हुई । इनके यहाँ सहायक बने । बी आर चोपड़ा  के 125 महीने पर काम किये।  5ं साल शर्मा जी के नाम से पंजाबी फिल्म कॉरपोरेशन में काम  किया। गीतकार के तौर पर इन्हें प्रसिद्धि फिल्म शोला और शबनम से मिली। उमराव जान से इन्हें ख्याति अर्जित हुई । संगीत के लिए  इन्हें  फिल्म फेयर  आवार्ड भी  प्राप्त हुआ । फिल्म कभी कभी  उमराव जान  मैं  उत्कृष्ट संगीत के लिए  संगीत निर्देशक का राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार प्राप्त हुआ। इन आंखों की मस्ती में फिल्म उमराव जान , हजार राहें फिल्म थोड़ी सी बेवफाई , तेरे चेहरे से नजर नहीं हटती फिल्म कभी कभी , जिंदगी जब भी तेरी फिल्म उमराव जान में खय्याम ने बेहतरीन संगीत दिया । फिल्म त्रिशूल और नूरी के संगीत इन्हीं के द्वारा रचित है। संगीतकार खय्याम के कुछ यादगार गीत –  मैं पल दो पल का शायर हूं ,  बहारों मेरा जीवन सवारो,  फिर छिड़ी रात बात फूलों की,  वो सुबह कभी तो आएगी ,  ए दिले नादान , ये  क्या जगह है दोस्तों,  आंखों में हमने आपके , जिंदगी जब भी तेरी बज्म में लाती है हमें,  आप यूं फासलों से गुजरते रहे,  ना जाने क्या हुआ,  दिखाई दिए यूं , कभी किसी को मुकम्मल जहां नहीं मिलता,  करोगे याद तो हर बात याद आएगी , हजारों राहें मुड़ कर देखें,  देख लो आज मुझको जी भर के  , सो जा मेरे प्यारे सोजा फिल्म फुटपाथ ,  मेरे घर आई एक नन्ही परी , चंदा रे मेरे भैया से कहना फिल्म चंबल की कसम अविस्मरणीय गीत व संगीत है।  शकील बदायूनी शायर गीतकार का जन्म 3 अगस्त 1916 उत्तर प्रदेश बदायूं में हुआ।  शकील बदायूं का लालन-पालन  लखनऊ में हुआ।  अपने  दूर के रिश्तेदार  मशहूर शायर  जिया उल कादरी से शायरी के गुर सीखे।

अलीगढ़ से स्नातक किया। , नौकरी हेतु 1942 में दिल्ली आए हैं । आपूर्ति विभाग के तौर पर काम करने लगे, नौकरी के पूर्व मुशायरे का चर्चित चेहरा हुआ करते थे ।1946 फिल्मी गीत लिखना शुरू की  ।मुशायरे के सिलसिले में मुंबई आए , एक महफ़िल में फिल्मकार ए आर कार दान ने इन्हें सुना,  सुनकर दर्द के गीत लिखने का निवेदन किया । फिल्म दर्द के गीत अफसाना लिख रही हूं से इनकी पहचान बनी । एक सफल गीतकार बने । तीन दशक के फिल्मी करियर में लगभग 90 फिल्मों के गीत लिखें । ज्यादा गीत नौशाद साहब के लिए लिखें । इन्हें तीन बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। 1960 में चौधवी का चांद हो या आफताब हो 1961 घराना हुस्न वाले तेरा जवाब नहीं 1962 बीस साल बाद कहीं दीप जले कहीं दिल,  नन्हा मुन्ना राही हूं देश का सिपाही हूं , प्यार किया तो डरना क्या , वो दुनिया के रखवाले मुख गीत है।  मजरूह सुल्तानपुरी प्रयोगवादी शायर का असली नाम असरारुल हक है।  इनका जन्म 1919 उत्तर प्रदेश के सुल्तानपुर में हुआ । माध्यमिक शिक्षा के बाद यूनानी चिकित्सा की डिग्री प्राप्त की। हकीम  के रूप में स्थापित हो चुके थे ।सुल्तानपुर में एक महफ़िल में मिले वाह- वाई से प्रभावित होकर शायरी  को गंभीरता से लिया। युनानी पेशा छोड़कर जिगर मुरादाबादी मुरादाबादी के संपर्क में आए ।

1945 में मुंबई आए हैं, मुशायरे में  पढ़े  शेर सुनकर निर्माता ए आर कारदार  ने फिल्मों में गीत लिखने को कहा,  जिसे सुल्तानपुरी ने ठुकरा दिया। बाद में जिगर मुरादाबादी करने पर राजी हुए।  1940 एक नज्म के कारण जो सत्ता विरोधी होने का आरोप लगा 2 साल जेल में इन्हें बिताने पड़े।  ममजरूह सुल्तानपुरी ने जिन फिल्मों के गीत लिखे हैं – सीआईडी,  चलती का नाम गाड़ी , नौ दो ग्यारह , तीसरी मंजिल, पेइंगगेस्ट,  कालापानी , तुमसा नहीं देखा, दिल दे कर देखो, अंदाज, साथी, पाकीजा,  सीआईडी के गीत बहुत ही फेमस हुआ लेके पहला पहला प्यारचेतन भगत के उपन्यास फाइव प्वाइंट समवन पर 3  इडियट और द थ्री मिस्टेक्स ऑफ माई लाइफ पर कई पो चे  फ़िल्म बनी। चेतन भगत की पुस्तक वन नाइट एट कॉल सेंटर पर फिल्म हेलो बनी , तू स्टेटस पर फिल्म टू स्टेट्सस बनी , हाफ गर्लफ्रेंड पर हाफ गर्लफ्रेंड बनी।निर्देशक राजकुमार हीरानी की फिल्म थ्री इडियट 2009 में रिलीज हुई। इस फिल्म में आमिर खान करीना कपूर आर माधवन बोमन ईरानी ने अभिनय किया। संगीत शांतनु मोइत्रा काथा । यह फाइव प्वाइंट समवन पर आधारित थी।

चेतन भगत की दूसरी रचना थ्री मिस्टेक ऑफ़ माय लाइफ जिसको हिंदी में   काई पो चे  नाम से बनाया गया। उनके निर्देशक अभिषेक कपूर थे। फिल्म में सुशांत सिंह राजपूत अमित साध राजकुमार राव आशीष बच्चन ने अभिनय किया था।  फिल्म 2013 रिलीज हुई थी।काशीनाथ सिंह के उपन्यास काशी का अस्सी को लेकर चंद्रप्रकाश त्रिवेदी ने मोहल्ला अस्सी नाम से फिल्म का निर्माण किया।  फिल्म में साक्षीषी तंवर , सनी देओल , रविकिशन ने अभिनय  किया । 2018 में फिल्म रिलीज हुई थी ।उदय प्रकाश की कहानी मोहनदास पर भी फिल्म बनी।राजिंदर सिंह बेदी के उपन्यास एक चादर मैली सी पर फिल्म बनी। इस फिल्म में हेमा मालिनी ऋषि कपूर देवर भाभी से विवाह करता है जिसने पाल पोस कर बड़ा किया।


मुक्तिबोध की कहानी सतह से उठता आदमीविनोद कुमार शुक्ल के उपन्यास नौकर की कमीजदोस्तों वस्की के उपन्यास ईडियटमलिक मोहम्मद जायसी की कविताएं पर द क्लाउड डोरजैनेंद्र कुमार की रचना त्यागपत्र –  जैनेंद्र कुमार हम आनंदीलाल के नाम से जानते हैं। परख , सुनीता, त्यागपत्र, कल्याणी इनके चर्चित उपन्यास हैं। 1979 में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए।रवींद्रनाथ ठाकुर की रचना काबुलीवाला – बांग्ला कवि गीतकार कहानीकार संगीतकार नाटककार निबंधकार जिसने भारतीय संस्कृति को पश्चिमी देशों से परिचय कराया। कहानी पोस्ट मास्टर  ,  हरे पत्र, मास्टर साहब कहानी लिखी।  2,000 से अधिक गीतों को रबींद्र संगीत के नाम से जाना जाता है जबकि राष्ट्रगान जन गण मन के रचयिता एवं 1913 में नोबेल पुरस्कार से सम्मानित गुरु रविंद्र नाथ टैगोर का जन्म 7 मई 1861 को कोलकाता में हुआ । 1913 ईस्वी में गीतांजलि के लिए नोबेल पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं 1901 में शांति निकेतन की स्थापना की का जन्म 7 मई 18,61 को कोलकाता में हुआ था।    चंद्र धार गुलेरी की रचना उसने कहा थामोहन राकेश की रचनाएं आषाढ़ का एक दिन धर्मवीर भारती की रचना गुनाहों का देवतापर भी  फिल्मे बनी कमलेश्वर जी कहानी उपन्यासकार स्तंभलेखक फिल्मी पटकथा लेखक संवाद लेखन नाटककार संपादक कई रूपों में इनको जाना जाता है। इनका जन्म 6 जनवरी 1962 को उत्तर प्रदेश के मैनपुरी में हुआ। 1954 में इलाहाबाद विश्वविद्यालय से हिंदी साहित्य में एमए किया। 75 साल के जीवन में 12 उपन्यास 17 कहानी संग्रह , कई फिल्मों की पटकथा लिखी। इनके द्वारा जिन फिल्मों  के संवाद लिखे गए, उनके नाम सौतन की बेटी, यह देश, सौतान आदि मुख्य हैं । कमलेश्वर जी द्वारा जिन फिल्मों के पटकथाएँ संंवाद लिखी गई उनके नाम लैला, साजन की सहेली , राम बलराम है। 

चन्द्र्कांता,एक  देश, दर्पण धारावाहिकों के पटकथाएं लिखने का भी रिकॉर्ड है। कमलेश्वर जी के उपन्यासों पर जो फिल्में बनी है उनके नाम आंधी,  मौसम, सारा आकाश, रजनीगंधा, मिस्टर नटवरलाल, सौतन,लैला, राम बलराम आदि की पटकथाएँ कथाएं भी इन्हीं के द्वारा लिखी गई।कमलेश्वर की रचना बदनाम बस्ती पर फिल्में बनी। कमलेश्वर जी ने फिल्मी दुनिया में  आंधी ,मौसम, रंग बिरंगी फिल्मों की कहानियां लिखी, द बर्निंग ट्रेन, सावधान फिल्मों के संवाद लिखें। साहित्य के साथ सिनेमा में जिन साहित्यकारों की महत्वपूर्ण योगदान है उनके नाम-राजिंदर सिंह बेदी -उर्दू कथाकार राजेंद्र सिंह बेदी की कहानी पर भी फिल्में बनी , लेकिन खुद बेदी ने कोई फिल्मों के लिए कहानियां और संवाद लिखे। साहित्य अकादमी से सम्मानित उनके उपन्यास एक चादर मैली सी पर 1986 में फिल्म बनी। जिन फिल्मों के पटकथाएं उन्होंने लिखें  ,उनके नाम दिलीप कुमार वाला देवदास, दाग , मधुमति,सत्य काम है ।कैफ़ी आज़मी– साहित्य अकादमी से सम्मानित हैं। फिल्मों में गीतकार संवाद कथा लेखक के रूप में जाने जाते हैं। 

कैफी आज़मी का जन्म 14 जनवरी 1919 उतर प्रदेश प्रदेश आजमगढ़के आली में हुआ। इनके द्वारा लिखे  गए फिल्मों के गीत  कागज के फूल,  मंथन , पाकीजा,  हंसते जख्म साथ ही देश भक्ति गीत  कर चले हम फिदा  को लिखा । आवारा सजदे के लिए पद्मश्री  साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए । इनकी पुत्री शबाना आजमी है।  इनकी अन्य कृतियों में  आखिर ए सब, झंकार, आवारा सजदे हैं।  कैफी आज़मी ने यहूदी की बेटी और ईद का चांद की कहानियां लिखी। गीत वक्त ने किया क्या हंसी सितम एवं बहारों मेरा जीवन सवारों   इनके ही कलम से निकले शानदार गीत है। 1970 की फिल्म हीर रांझा  के गीत  लिखे । भारत-पाकिस्तान के विभाजन पर बनी फिल्म गर्म हवा के संवाद इन्हीं के कलम से निकले थे। फिल्म सात हिंदुस्तानी और अर्थ के गीत इन्हीं के हैं।गर्म हवा -यह एक ऐतिहासिक फिल्म है। जो भारत पाक विभाजन पर आधारित है। फिल्म के निर्देशक एम एस सथ्यू हैं। निर्माता आबू शिवानी, लेखक कैफी आज़मी समाजवादी , कहानी इस्मत चुगताई की है। संगीत बहादुर खान , गीत कैफी आज़मी का है। इस फिल्म में बलराज साहनी, ए के हंगल, शौकत कैफी ने अभिनय किया था।
राही मासूम रजा -राही मासूम रजा की अपार सफलता महाभारत के संवाद लेखन से मिला। मैं तुलसी तेरे आंगनकी के लिए फिल्म फेयर का सर्वश्रेष्ठ संवाद लेखक का अवार्ड प्राप्त हुआ  राही मासूम रजा ने जिन फिल्मों के संवाद लिखे उनके नाम लम्हे, गोलमाल, आलाप मुख्य हैं  । राही मासूम रजा की मुख्य रचनाएं आधा गांव है ।


गुलजार -गुलजार साहब गीतकार निर्देशक कथाकार संवाद लेखक, पटकथा लेखक आदि कई विधाओं में इन्हें महारत हासिल है। गुलजार का जन्म पाकिस्तान मे हुआ   । इनका बचपन का नाम संपूर्ण सिंह कालड़ा था। विभाजन के समय संपूर्ण परिवार अमृतसर में आकर बस गया। काम की तलाश में गुलजार मुम्बुईi आ गए गयें । एक गैरेज मे मैकेनिक का कार्य शुरू किया । खाली समय में शौकिया  कविता लिखने लगे । गैरेज के पास बुक स्टोर था।  आंठ आने में दो किताब किराया पर देता था।     विमल राय की कार खराब हो गई। गुलजार के गैरेज में आए। गुलजार की किताब देेेेखें,  अगले दिन मिलने को कहा। गुलजार विमल राय के साथ रहने लगे। उनकी प्रतिभा निखारने लगी । 1963 में बंदिनी आई, विमल राय की फिल्म में धर्मेंद्र्र अशोक कुमार नूतन नेे अभिनय किया । इस फिल्म मेंं गीत शैलेंद्र के थे , मगर एक गीत गुलजार के थे।  गुलजार की पहचान  मोरा गोरा रंग लेई से बनी । गुलजार की पुत्री मेघना गुलजार फिल्म निर्देशिका हैं। उन्होंने फिलहाल , राजी , तलवार , छपाक आदि फिल्मोंं का निर्देशन किया।  गुलजारजार के नाम कोई फिल्म फेयर अवार्ड , नेशनल अवार्ड , साहित्य अकादमी , पद्म भूषण सम्मान प्राप्त हुए । 2008 में स्लमडॉग मिलेनियर के गीत जय हो हेतुुु आस्कर आवार्ड मिला । 2012 में दादा साहब फाल्के अवार्ड प्राप्त हुआ। 1973 में अभिनेत्री रााखी से विवाह हुआ , पुत्री  मेघना का जन्म हुआ । इनके द्वारा परिचय , लेकिन, माचिस जैसे यादगार फिल्में बनाई गई। गुलजार के गीत मोरा गोरा रंग लेई ले , दिल तो बच्चा है जी इन्हें कौन भुला सकता है । इनके कथासंग्रह चौरस रात ,  रावीपार ,ड्योढ़ी गुलजार को एक शब्द को दो बार कविता के सक्ल मे ढालने की महारत हासील है  । इनके कविता संग्रह एक चांद , यार जुलाहे मुख्य है। 
निदा फ़ाज़ली  – उर्दू के प्रसिद्ध शायर हैं। निदाा फाजली का जन्म 12 अक्टूबर 1938 को दिल्ली में हुआ । फिल्म रजिया सुल्ताना , सूर, सरफरोश , के गीत इन्हीं के द्वारा लिखे गए।

अफसाना निगार, उर्दू के मशहूर शायर व कथाकार सआदत हसन मंटो -1936 से 1948 तक फिल्मी दुनिया में किसान कन्या सहित कई कहानियां लिखी। इनके मुख गीत इस तरह से मेरी जिंदगी में शामिल है। होश वालों को क्या खबर बेखुदी क्या चीज़ है ‌ 1998 साहित्य अकादमी पुरस्कार एवंं  2003 पद्मश्रीी से सम्मानित हुए । इनकी रचनाएं बू , खोल दो, ठंडा गोश्त आदि  प्रसिद्ध है। इन्होंने मिर्जा गालिब की पटकथाएँ लिखी। गीतकार नीरज –   साहित्य की दुनिया के महान साहित्यकार का जन्म 4 जनवरी 1924 को उत्तर प्रदेश इटावा के  में हुआ । 1991 में पद्मश्री , 2007 में पद्म भूषण , 1972  में फिल्म फेयर अवार्ड से सम्मानित हुए ।फिल्मी दुनिया मे कई फिल्मों के गीत लिखें।  फिल्म नई उमर की नई फसल के मशहूर गीत कारवां गुजर गया गुबार देखते रहे , फिल्म मेरा नाम जोकर  के गीत ए भाई जरा देखकर चलो , कहता हैैै जोकर सारा जमाना , दिल आज शायर है गम आज नगमा है सब ये  ग़ज़ल है सनम , आज मदहोश हुआ जाए रे , लिखे जो खत तुम्हें  , फूलों के रंग से दिल की कलम से , मेघा छाए आधी रात बैरन बन  निंदिया, रंगीला रे तेरे प्यार में रंगा मेरा मन , शोखियों में घोला जाए  , खिलते हैं गुल यहां , बस यही अपराध में हर बार करता हूं काफी प्रसिद्ध रहा।

हसरत जयपुरी को टायटल गीत लिखने के लिए याद किया जाता है। 1940 में नौकरी की तलाश में मुंबई आए और बस कंडक्टर बन गए। इस समय कोई 11 रुपया महीना मिलता था । एक मुशायरे के कार्यक्रम में पृथ्वीराज कपूर इन के गीत को सुनकर काफी प्रभावित हुए और राज कपूर से मिलने की सलाह दी। उस समय राज कपूर बरसात के गीत के लिए गीतकार की तलाश में थे। रॉयल अपेरा हाउस में मुलाकात हुई।  उस समय संगीतकार जयकिशन अपने करियर की शुरुआत इसी फिल्म से की थी। 1949 में रिलीज फिल्म बरसात के गीत जिया बेकरार है छाई बहार है हसरत जयपुरी को बुलंदी के मुकाम पर पहुंचा दिया। राज कपूर और हसरत जयपुरी की दोस्ती 1971 तक कायम रही । 1985 में रिलीज फिल्म राम तेरी गंगा मैली के गीत सुन साहिबा के लिए दो बार फिल्म फेयर पुरस्कार मिला।   झनक झनक तोरी बाजे पायलिया हो या ये मेरा प्रेम पत्र पढ़कर तुम नाराज ना होना संगम में लिखा। हसरत जयपुरी द्वारा लिखें कुछ गीत-दीवाना मुझको लोग कहे, दिल एक मंदिर है, रात और दिन दिया जले, तेरे घर के सामने एक घर बनाऊंगा, इन इवनिंग इन पेरिस , गुमनाम है कोई बदनाम है कोई , तुम मुझे यूं भुला ना पाओगे , हसरत जयपुरी द्वारा लिखिए काफी लोकप्रिय गीतों में शामिल है । हसरत जयपुरी अपने फिल्मी कैरियर में 300 से अधिक फिल्मों के लिए लगभग 2000 गीत लिखें।
प्रदीप कवि गीतकार संगीतकार गायक कवि प्रदीप   – प्रदीप कवि गीतकार संगीतकार गायक    का जन्म 6 फरवरी 1915 को हुआ। 1962 में भारत चीन युद्ध के समय सैनिकों को श्रद्धांजलि के लिए – ऐ मेरे वतन के लोगों जरा आंख में भर लो पानी गीत को लिखा। इनका मूल नाम रामचंद्र नारायण द्विवेदी था। जो मध्य प्रदेश उज्जैन से संबंध रखते हैं। 1940 में फिल्म बंधन से पहचान बनी। 1943 में किस्मत के गीत दूर हटो ए दुनिया वालो हिंदुस्तान हमारा है को सुनकर ब्रिटिश सरकार गिरफ्तारी का आदेश दिया, प्रदीप को भूमिगत होना पड़ा। पांच दशक में 71 फिल्मों के 1700 गीत लिखेंफिल्म बंधन 1943 –   चल चल रे नौजवानफिल्म जागृति –  आओ बच्चे तुम्हें दिखाएं , दे दी हमें आजादी बिना खडक बिना ढाल , जय संतोषी मां 1975   – यहां वहां जहां तहां मत पूछो कहां कहां , इस गीत को स्वयं प्रदीप ने गाया। 

फिल्म दशहरा   –  दूसरों का दुख दूर करने वाले ,फिल्म हरी दर्शन  – मारने वाला है भगवान बचाने वाला है भगवानफिल्म नागमणि –  पिंजरे के पंछी रेफिल्म पैगाम –  इंसान से इंसान का हो भाईचाराफिल्म जय संतोषी मां  – मैं तो आरती उतारू रे , करती हूं तुम्हारा व्रत मैंप्रदीप ने जिन फिल्मों में गीत लिखे हैं उनके नाम आंचल ,ज़िंदगीऔर ख्वाब , स्कूल मास्टर, नेताजी सुभाष चंद्र बोस, कभी धूप कभी छांव , अनजान , झूला , किस्मत , साल , बाप बेटी , नास्तिक। नास्तिक के गीत देख तेरे संसार की हालत क्या हो गई भगवान कितना बदल गया इंसान ,। भले यह गीत पुराना हो चुका है , लेकिन मानवता को आज भी जीवित रखने का संदेश देता है। जावेद अख्तर – गीतकार कवि जावेद अख्तर का जन्म 17 जनवरी 1945 ग्वालियर में हुआ ।  4 अक्टूबर 1964 को मुंबई आए, संवाद लेखक के रूप में कैरियर शुरू किया , फिर स्क्रिप्ट राइटर और गीतकार बने ।फिल्म सरहदी  लुटेरे के सेट पर सलीम खान से मुलाकात हुई। इस जोड़ी ने जंजीर दीवार शोले जैसी शानदार फिल्में दी। पांच बार नेशनल अवॉर्ड , पद्मश्री, पद्मभूषण, साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित हुए। कैफ़ी आज़मी की बेटी शबाना आजमी है। इनके बेटे फरहान एवं बेटी जोया हैं । इन्होंने शुरुआती 6 सालों में लगातार 12 सुपर हिट फिल्में दी। फिल्म सागर, सिलसिला , ओम शांति ओम , धड़कने दो , गली बॉय के गीत लिखे। इन्हें पद्मश्री , पद्म भूषण , पांच राष्ट्रीय फिल्म पुरस्कार व कई फिल्म फेयर पुरस्कार से सम्मानित हुए हैं। 
समीर गीतकार -समीर ने फिल्म आशिकी, दिल , साजन , दिलवाले , राजा हिंदुस्तानी के गीत लिखे । फिल्म आशिकी के गीत नजर के सामने जिगर के पास के लिए फिल्म फेयर का पुरस्कार मिला।

गीतकार बागी शायर  रूमानी दिलकश गीतकार साहिर लुधियानवी का जन्म 8 मार्च 1921 को हुआ। पिता फजल मोहम्मद चौधरी अमीर और जमींदार थे। मां पिता की यह 11वी पत्नी थी। बाद में मां पिता से अलग हो गई । साहिर का बचपन कठिनाइयों में बीता। साहिर  ने लुधियाना खालसा हाई स्कूल से स्नातक किया। अमृता प्रीतम इनके गजल नज्मो  की मुरीद हो गई थी । अमृता प्रीतम के पिता को साहिर के नज़दीकियों पर एतराज था, इसलिए कॉलेज से निष्कासित कर दिए गए। बंटवारा  से उत्पन्न पलायन में मां गांव वालों के साथ पाकिस्तान चली गई तो शाहिद मां को ढूंंढने लाहौर चले  आएं। पत्रिका तल्ख़ियां निकाला । सबेरा में क्रांतिकारी विचार को ले  पाकिस्तान सरकार द्वारा गिरफ्तारी का वारंट निकाला गया। 1950 में मुंबई आ गए हैं  । 1950 में आजादी की राह पर में पहला गीत लिखा। साहिर  संप्रदायिक सद्भाव के  भी जबरदस्त समर्थक थे ।  मुंबई जब दोबारा आए तो उनकी पहली फिल्म नौजवान 1951 के गीत ठंडी हवाएं लहरा के आएं को लोगों ने सराहा । देवानंद की फिल्म बाजी 1951 व 1952 में जाल के गीत हिट होने पर साहिरा स्थापित गीतकार बन गए। 1951 में रिलीज गुरु दत्त की फिल्म प्यासा ने रही सही कमी को साहिल को ऊंचाई दे दी। अब वे सफलता के पश्चात शर्तों के साथ गीत लिखे । खय्याम साहिर लुधियानवी की जोड़ी ने  1976 में फिल्म कभी कभी के गीत तैयार किया।  1963 की फिल्म ताजमहल के गीत जो वादा किया है निभाना पड़ेगा सर्व श्रेष्ठ गीतकार का फिल्म फेयर पुरस्कार मिला। बी आर चोपड़ा के साथ नया दौर, धूल का फूल , धर्मपुत्र, वक्त जमीर के गीत लिए काम किया ।धूल का फूल के गीत तू हिंदू बनेगा ना मुसलमान बनेगा, अल्लाह तेरे नाम ईश्वर तेरे ,नाम , छू लेने दो नाजुक होठों को, नीले गगन के तले – हमराज , मैं पल दो पल का शायर हूं , जिंदगी भर नहीं भूलेगी वो बरसात की रात , रंग और नूर की बारात किसे पेश करूं,  हम इंतजार करेंगे तेरा कयामत तक,  पांव छू लेने दो फूलों की इनायत होगी,  अभी ना जाओ छोड़ कर के दिल अभी भरा नहीं,  फिल्म वक्त के गीत आगे भी जाने ना तू फिल्म आंखें के गीत मिलती है जिंदगी में के रचयिता साहिर लुधियानवी ही थें। ये महलों ये तख्तों ये ताजों की दुनिया ये इंसा के दुश्मन समाजों की दुनिया ये दुनिया अगर मिल भी जाए तो क्या है फिल्म प्यासा  औरत ने जनम दिया मर्दों को फिल्म साधना इन काली सदियों के सर से जब रात का आंचल ढलकेगा ,जब दुख के बादल पिघलेंगे जब सुख का सागर झलकेगा जब अंबर झूम के नाचेगा जब धरती नगमे गाएंगे वह सुबह कभी तो आएगी फिल्म फिर सुबह होगी काबे में रहो या काशी में निस्बत तो उसी की जात से है तुम राम कहो या रहीम कहो मतलब तो उसी के बात से है फिल्म धर्मपुत्रएक से एक मिले तो कतरा बन जाता है दरियाएक से एक मिले तो जर्रा बन जाता है सेहराएक से एक मिले तो राई बन सकता है पर्वतएक से एक मिले तो इंसा बस में कर ले किस्मत यह भी साहिर लुधियानवी का ही कलाम है । 
आनंद बक्शी गीतकार का जन्म 21 जुलाई 1930 को रावलपिंडी में हुआ। परिवार का नाम आनंद प्रकाश था। बचपन में फिल्मों में काम करने का शौक था , मगर उपहास के कारण कभी जाहिर नहीं किए । सपने पूरा करने हेतु 14 वर्ष की आयु में घर से भागकर मुंबई आए, रॉयल इंडियन नेवी में कैटर्ड के पद पर 2 वर्ष तक काम किए । विवाद के कारण नौकरी छोड़ दी। 1965 में जब जब फूल खिले के गीत परदेसियों से ना अखियां मिलाना काफी हिट हुआ। ये  समा  समा है ये प्यार का, एक था गुल और एक थी बुलबुल से इनको पहचान मिली। गीतकार आनंद बक्शी का पहला गीत मोम की गुड़िया के लिए  गाया , लेकिन यह गीत प्रसिद्ध नहीं हुआ ।भगवान दादा ने फिल्म बड़ा आदमी के लिए पहली बार इनसे गीत गवाया। फिल्म बॉबी,  फर्ज,  कटी पतंग, अमर प्रेम  , मिलन के गीत लिखे। लगभग लगभग 4 दशक में 500 फिल्मों के लिए 4000 से अधिक गीत लिखें। आनंद बख्शी को चार बार फिल्म फेयर पुरस्कार भी मिला। 

  शैलेंद्र  इनका असली नाम  शंकर सिंह शैलेंद्र था। शैलेंद्र का जन्म 30 अगस्त 1923 को रावलपिंडी में हुआ। पिता ब्रिटिश सेना के कैप्टन मैनेजर केसरी लाल सिंह थे। पैतृक घर बिहार के भोजपुर जिले में था , स्थानीय जमींदारों से तंग आकर पिता रावलपिंडी में रहने लगे ।अवकाश प्राप्त करने के बाद मथुरा में बस गए। शैलेन्द्र मथुरा में कवि सम्मेलन में भाग  लेने लगे ।आर्थिक स्थिति के कारण मथुरा के रेलवे वर्कशॉप में वेल्डर की नौकरी की ।पहली कविता 1941 में साधना में छपी। इनका मथुरा से तबादला मुंबई हो गया । शैलेंद्र ने केवल हिंदी ही नहीं बिहार की  भोजपुरी फिल्म हे गंगा मैया तोहे पियरी चढ़इबो के भी गीत लिखे । इनके एक गीत बड़ा ही फेमस हैैै — जिंदगी मुझे तेरा ऐतबार ना रहा।  1948 ईस्वी में कवि मजदूर नेता के रूप में इन्होंने अपनी पहचान बना ली थी। इप्टा के नाटकों के लिए प्रेरक गीत भी लिखें । राज कपूर ने इन्हें कवि सम्मेलन में सुना फिल्म आग के गीत लिखने का आग्रह किया,  जिसे शैलेंद्र ने ठुकरा दिया । जब आर्थिक मुश्किलें बढ़ी तो राज कपूर के पास आएं और बरसात के गीत लिखें । बरसात के गीत  – बरसात में हमसे मिले तुम बड़ा ही प्रसिद्ध हुआ।  1951 में आवारा के गीत ने इन्हें अंतरराष्ट्रीय गीतकार बना दिया । आवारा हूं भारत चीन और अरब सोवियत संघ में काफी लोकप्रिय हुआ । 1955 में श्री 420 मेरे मेरा जूता है जापानी के अलावा अन्य गीत किसी की मुस्कुराहटों पे हो निसार साथ ही, आज फिर जीने की तमन्ना है के अलावा फिल्म सीमा के गीत तू प्यार का सागर है अनारी के गीत किसी के चाहतों पे हो निसार मधुमति के गीत मैं नदिया फिर भी प्यासी सूरत और सीरत के गीत बहुत दिया है देने वाले ने मुझको मेरा नाम जोकर के गीत जीना यहां मरना यहां   , दो बीघा जमीन के गीत धरती कहे पुकार के फिल्म यहूदी के गीत ये मेरा दीवानापन है, फिल्म अनारी के गीत सब कुछ सीखा हमने , फिल्म ब्रह्मचारी के गीत मैं गांउ तू सो जा फिल्म तीसरी कसम के गीत सजन रे झूठ मत बोलो कौन भूल सकता है ।  फिल्म तीसरी कसम की कहानी – अपने मित्र निर्देशक बिमल राय के दमाद बसु भट्टाचार्य के साथ फणीश्वर नाथ रेणु की कहानी मारे गए गुलफाम को  सुनने के बाद इस कहानी पर फिल्म बनाने का शैलेंद्र में निर्णय लिया 1960 में इमेज मेकर्स प्रोडक्शन की स्थापना शैलेंद्र ने की । फिल्म तीसरी कसम के  कहानी के लिए रेनू जी ने 5000 की मांग की , जबकि शैलेंद्र जी ने 10,000 देने का प्रस्ताव दिया । फिल्म का आरंभिक बजा 3 लाख का था जो बढ़कर 23 लाख हो गया  शुरू में नूतन इस फिल्म की अभिनेत्री चुनी गई थी,  स्वास्थ्य कारणों को लेकर वहीदा रहमान को लिया गया , जो हीराबाई बनी। वह अपने मित्र राज कपूर को फिल्म का अभिनेता बनाएं।   14 जनवरी 1961 को फिल्म का मुहूर्त पूर्णिया बिहार में हुआ । दिसंबर 1966 को फिल्म रिलीज हुई । नवेन्दू घोष  के संवाद  शंकर जयकिशन  के संगीत  एवं निर्देशन की कमान बासु भट्टाचार्य के हाथों में था। शैलेंद्र के निधन के बाद 1966 में फिल्म तीसरी कसम को सर्वश्रेष्ठ फिल्म का राष्ट्रीय पुरस्कार प्राप्त हुआ।  जिस उम्मीद से शैलेंद्र ने इस फिल्म का निर्माण किया था ,  खरी नहीं उतरी।  शैलेंद्र विचलित हो गए इस फिल्म से उन्हें काफी आर्थिक नुकसान उठाना पड़ा।  इस फिल्म में बिहार के गांव देहात खेत खलियान बैलगाड़ी आदि का चित्र बहुत ही बेहतरीन ढंग से किया गया था । भले ही यह फिल्म नहीं चल पाई , लेकिन इस फिल्म के गीत काफी प्रसिद्ध हुए। शैलेंद्र के  काव्य संग्रह न्योता और चुनौती, इसमें 32 या 19 कविताएं हैं प्रकाशित हुई हैं ।  शैलेंद्र के मुख्य कविता तू जिंदा है तो जिंदगी की जीत पर यकीन कर काफी मशहूर है। शैलेंद्र वंचित और शोषित व मजदूरों के हमदर्द जनवादी कवि मार्क्सवाद से प्रभावित थे ।

लेखक फिरोज शाह (शिक्षक )  बनियापुर सारण बिहार  

(इस लेख मे जो भी विचार है लेखक का निजी है इसका गौरीकिरण किसी प्रकार का समर्थन नहीं करता है )