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लॉकडाउन के दौरान कंटेनमेंट जोन ही नहीं, संक्रमित व्यक्ति के घरों तक पहुंचाया गैस सिलिंडर

कोरोना संकट के दौर ने छोटे काम करने वालों की अहमियत को किया साबित

डिलीवरी ब्वॉय ने सफलता पूर्वक निभायी अपनी जिम्मेदारी

अररिया(बिहार)कोरोना संक्रमण काल ने एक तरफ़ स्वास्थ्य कर्मियों की उपयोगिता को उजागर किया तो दूसरी तरफ़ छोटे कामगारों के महत्व को भी सामने लाया है। फिर चाहे वह घर में काम करने वाली बाई हो या कचरा उठाने वाला कर्मचारी व जरूरत के सामान आपके घरों तक पहुंचाने वाला डिलीवरी ब्वॉय. कोरोना संक्रमण का यह दौर कुछ हद तक इनके प्रति लोगों की दृष्टिकोण एवं मानसिकता में बदलाव लाने में कारगर रहा है. वैश्विक महामारी के इस दौर में अधिकांश लोगों को इनका महत्व समझाने में बखूबी सफल रहा. हममें से कई लोगों ने पिछले दिनों इस बारे में जरूर सोचा होगा कि वह व्यक्ति जो हर दिन सुबह शाम हमारे नल की सप्लाई शुरू करता है. जो हर दिन हमारे गली मुहल्ले का कचरा उठाता है. या फिर वह व्यक्ति जो हमारे घरों तक गैस सिलिंडर पहुंचाता है. वह महज कुछ दिनों तक अगर ऐसा करना बंद कर दें तो हमारा क्या होगा. कोरोना संक्रमण के इस दौर में बड़े फैसले व महत्वपूर्ण काम करने वाले ज्यादातर लोग जब अपने घरों में कैद थे. तब भी बहुत से मूलभूत काम पूर्व की तरह ही संचालित हो रहे थे. लॉकडाउन के दौरान लोगों के घरों तक रसोई गैस सिलिंडर की पहुंच सुनिश्चित कराना भी एक ऐसा ही काम था. हम अपने घरों में बैठकर मोबाइल व इंटरनेट की मदद से सिलिंडर बुक कराते थे. फिर इसे घरों तक पहुंचाने का कार्य डिलीवरी ब्वॉय के माध्यम से हो रहा था. बफर जोन या कंटनमेंट जोन या फिर अइसोलेशन सेंटर तक सिलिंडर की उपलब्धता सुनिश्चित कराना इन डिलीवरी ब्वॉय के जिम्मे था. जबकि उन्हें भी हमारी तरह ही सेहत से जुड़ी चिंताएं थी. खुद के संक्रमित हो जाने पर अपने परिजन व घर के छोटे बच्चे की सेहत से जुड़ी चिंताएं उन्हें भी परेशान करता रहता था. बावजूद इसके उन्होंने कभी अपनी जिम्मेदारियों से मूंह नहीं मोड़ा. ताकि आपके घरों का चूल्हा हमेशा जलता रहे. आपके परिवार के बुढ़े-बुजुर्ग व छोटे बच्चों को भूख के कारण परेशानी का सामना नहीं करना पड़े. जिले में जब कोरोना संक्रमण का दौर अपने चरम पर था. उस दौर में भी लोगों के घरों तक गैस सिलिंडर की आपूर्ति पूर्व की तरह ही जारी था. जो इन डिलीवरी ब्वॉज के अथक परिश्रम, अपने कार्य व जिम्मेदारी के प्रति निष्ठा का भाव व लोगों की सेवाओं के प्रति इनकी तत्परता की वजह से ही संभव हो पाया.

कंटेनमेंट जोन व संक्रमित के घरों तक सिलिंडर पहुंचाने की थी चुनौती

संक्रमण काल के उस दौर को याद करते हुए सिलिंडर डिलीवरी का काम करने वाले दिलीप कुमार बताते हैं कि लॉकडाउन की घोषणा के बाद से ही सिलिंडर की मांग काफी बढ़ गयी. सिलिंडर के लिये हर दिन सैकड़ों लोगों का फोन आता था. एक बार में मुश्किल से दस-बारह सिलिंडर की डिलीवरी के लिये ले जाया जा सकता था. तो ऐसे में कई बार एजेंसी के गोदाम से भरे सिलिंडर का उठाव कर लोगों के घरों तक इसे पहुंचाना होता था. सुबह नौ बजे से शाम पांच-छह बजे तक यह सिलसिला अनवतर चलता रहता था. इस क्रम में उन्हें किसी संक्रमित व्यक्ति के घर तो कंटेनमेंट जोन वाले इलाकों में भी डिलीवरी देनी होती थी. लेकिन लोगों को इस मुश्किल घड़ी में ऐसे ही नहीं छोड़ा जा सकता था. संक्रमण का खतरा हमेशा बरकरार रहता था. अपने स्तर से संक्रमण से बचाव के लिये जो बन पाता था करने के बावजूद घर में बीबी, बाल-बच्चे व बुजुर्ग माता-पिता की चिंता भी परेशान करता रहता था. वह बताते हैं उन्हें यह भी डर होता था कि उनकी वजह से उनके घर वाले महामारी की चपेट में नहीं आ जायें. लेकिन इन सारी चिंताओं का दरकिनार करते हुए अपना काम जिम्मेदारी पूर्वक करता रहा. ताकि कहीं किसी घर में कोई बुजुर्ग या बच्चे को भूखा न रहना पड़े.

लोगों का तिरस्कार झेलते हुए भी निभायी अपनी जिम्मेदारी

सिलिंडर डिलीवरी का काम करने वाले दिलीप, राजकुमार एवं मो मंजूर सहित ने बताया कि संक्रमण के उस दौर में कई बार उन्हें सिलिंडर डिलीवरी देने क्रम में लोगों के तिरस्कार व अपमान का सामना करना पड़ा. डिलीवरी लेकर लोगों के घर पहुंचने पर वह बाहर ही रूकने पर जोर देते थे. इतना ही नहीं लोग पैसा हमारे आगे फेंक कर दिया करते थे. कुछ तो ऐसे भी होते थे कि वह सिलिंडर का उचित दाम देने व हमें अपना मेहनताना देने में भी आनाकानी करते थे. लेकिन कभी किसी बात को लेकर मन में किसी तरह का मलाल नहीं पाला. उन्होंने बताया कि उन्हें अपनी जिम्मेदारी व काम का निवर्हन निष्ठा पूर्वक करना था. डिलीवरी के लिेये सुबह घर से सोच कर निकलता था कि किसी भी बात का बूरा नहीं मानना है. सिर्फ अपने काम पर ध्यान देना है. कुछ लोग ऐसे भी होते थे कि समय पर उनके घर डिलीवरी पहुंचाने पर वे आशीष व शुभकामनाएं भी देते थे. भले ही ऐसे लोग संख्या में कम थे. लेकिन उनकी बातें व व्यवहार से मन खुश हो जाया करता था.

फिलहाल टला नहीं है संकट का दौर, है विशेष सावधानी की जरूरत

संक्रमण का वह दौर हम सभी के लिेये बेहद चुनौतीपूर्ण था. कोरोना संक्रमण का दौर फिलहाल टला नहीं है. इसलिये इसे लेकर अब भी पर्याप्त सावधानी बरतने की जरूरत है. दिलीप कहते हैं – वह अपने काम के दौरान अब भी संक्रमण से बचाव के तौर-तरीकों का पूरा ध्यान रखते हैं. हर लोगों को ऐसा करना चाहिये. उन्हें नियमित रूप से मास्क का सेवन, थोड़े-थोड़े समयांतराल बाद अपने हाथों की सफाई, भीड़-भाड़ वाले स्थानों से परहेज करने की जरूरत तब तक है. जब तक कोरोना बीमारी का कोई सफल इलाज सामने नहीं आ जाता है.