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भारत में उच्च शिक्षा को सुदृढ़ बनाने में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद का प्रयास बहुत ही सराहनीय – प्रो. आर. सी. कुहाड़

महेंद्रगढ़(हरियाणा)अप्रैल का महीना चल रहा है, कोरोना महामारी की दूसरी लहर चरम पर है। यदि ऐसा न होता, तो विश्वविद्यालयों में प्रवेश प्रक्रिया प्रारम्भ हो गई होती। इन विपरीत परिस्थितियों में भारत सरकार का विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, उच्च शिक्षा में गुणवत्ता को बनाए रखने के लिए निरंतर प्रयत्नशील रहा है। उसी के परिणाम स्वरूप नामांकन प्रक्रिया से लेकर दीक्षांत और उसके बाद पूर्व विद्यार्थियों के मिलन समारोह के लिए भी विश्वविद्यालय अनुदान आयोग ने अपनी मार्ग-दर्शिका बनाई हुई है। जब भी कभी मार्गदर्शन की बात आती है और मार्गदर्शन के लिए जो कुछ सामग्री तैयार करनी होती है, तो उसे, उस क्षेत्र से संबंधित निष्णात विद्वानों की सहायता से तैयार किया जाता है। हम सब जानते हैं कि कोई भी कार्य धरातल पर तब उतरता है, जब उसके पीछे कभी उस कार्य को करने के लिए विचार किया गया होता है। विचार मस्तिष्क में आते हैं, मस्तिष्क में आए हुए विचारों को लिपिबद्ध किया जाता है। उन्हें एक स्वरूप और नाम दिया जाता है। उसके बाद उन्हें धरातल पर लाने के लिए संबंधित संस्थाओं के सुपुर्द कर दिया जाता है। अब यह जिम्मेदारी उन संस्थाओं की है, जिनके लिए यह मार्गदर्शिका तैयार की गई है। यह मार्गदर्शिका तैयार की गई है, विश्वविद्यालयों के लिए, महाविद्यालयों के लिए, उच्च शिक्षण संस्थानों के लिए, इसलिए यह जिम्मेदारी भी बनती है कि विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद ने इतना परिश्रम करके जिन मार्गदर्शिकाओं को शिक्षा की गुणवत्ता में सुधार लाने के लिए बनाया है। उसको कार्य रूप में परिणत करने की जिम्मेदारी उच्च शिक्षा संस्थानों, महाविद्यालयों और विश्वविद्यालयों की है। इसमें शिक्षकों और उच्च शिक्षण संस्थानों में पढ़ने वाले विद्यार्थियों दोनों के लिए जरूरी मार्गदर्शन है। इसी तथ्य को ध्यान में रखते हुए हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय ने यह फैसला लिया है कि आने वाले समय में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग द्वारा उच्च शिक्षा में गुणवत्ता हेतु जो मार्गदर्शिकाएँ तैयार की गई हैं। उनके बारे में विद्यार्थियों, अभिभावकों, हितधारकों और शिक्षकों के लिए समाचार माध्यमों से हम आप तक पहुंचाते रहेंगे।
किसी भी राष्ट्र की उन्नति उसकी शिक्षा और अनुसंधान पर आधारित होती है। शिक्षा प्राथमिक विद्यालयों से होती हुई विश्वविद्यालयों तक की यात्रा तय करती है। विश्वविद्यालय अनुसंधान कार्य के लिए जिम्मेदार होते और उसी से उनकी पहचान होती है। एक जिम्मेदार संस्था के वरिष्ठ और उच्च शिक्षित व्यक्तियों के समूह की सामूहिक जिम्मेदारी है कि वे सब उच्च शिक्षा में एक अच्छा शैक्षणिक माहौल बनाने का प्रयास करें। यह निश्चित रूप से शिक्षण की गुणवत्ता में सुधार, वैज्ञानिक वातावरण व अनुसंधान के विकास में सहायक सिद्ध होगा। यह सभी संस्थानों में शैक्षणिक सुधार और नेतृत्व के लिए पृष्ठभूमि तैयार करेगा। जिसे विभिन्न श्रेणियों के संदर्भ में मापा जाना चाहिए। उच्च शिक्षा क्षेत्र में मूल्यों की स्थापना और शैक्षिक वातावरण के निर्माण से विद्यार्थियों को व्यक्तिगत व सामाजिक रूप से विकसित होने का मौका मिलेगा, जिससे उनके नेतृत्व क्षमता का विकास होगा और वे अपने चरित्र को अच्छी तरीके से विकसित कर सकेंगे।
उच्च शिक्षा की गुणवत्ता किसी भी देश के भविष्य को तय करने के लिए सबसे महत्वपूर्ण कारक है और विशेष रूप से भारत जैसे विकासशील राष्ट्र में, संभावित परिणामों के लिए अत्यधिक ध्यान और निरंतर मूल्यांकन की आवश्यकता है। स्कूली शिक्षा, जो उच्च शिक्षा के लिए आधार रेखा है, को मूल रूप से उच्च शिक्षा के साथ एकीकृत किया जाना चाहिए। स्वामी विवेकानंद ने कहा था कि हम चाहते हैं कि शिक्षा जिसके द्वारा चरित्र का निर्माण हो, मन की शक्ति बढ़े, बुद्धि का विस्तार हो, और जिसके द्वारा व्यक्ति अपने पैरों पर खड़ा हो सके। शिक्षा की गुणवत्ता को सुधारने में शिक्षकों की भूमिका सबसे महत्वपूर्ण संचालक की है। मुख्यधारा की उच्च शिक्षा विद्यार्थियों के मन, मस्तिष्क, चरित्र और संवेदनशीलता को युगानुकूल निर्मित करे ऐसा प्रयास शिक्षकों से अपेक्षित है। विश्वविद्यालय अनुदान आयोग और अखिल भारतीय तकनीकी शिक्षा परिषद, छात्रों के सर्वांगीण विकास के लिए सदैव प्रयत्नशील रहा है और वर्तमान समय में इस कार्यक्रम में अत्यधिक विकास हुआ है। आयोग द्वारा महाविद्यालयों, उच्च शिक्षण संस्थानों और विश्वविद्यालयों को मार्गदर्शन देने हेतु शैक्षिक और शोध आचार नीति सह-संघ, उच्चतर शिक्षा संस्थानों में मूल्यांकन सुधार, शिक्षण प्रेरण कार्यक्रम, उच्च शिक्षा संस्थानों में मानवीय मूल्य एवं व्यवसायिक आचार नीति (मूल्य प्रवाह) सतत (उच्चतर शिक्षण संस्थान परिसरों में पर्यावरण अनुकूल सतत विकास की रूपरेखा) जीवन कौशल हेतु पाठ्यक्रम, दीक्षारंभ (छात्र प्रेरण कार्यक्रम हेतु मार्गदर्शिका) और परामर्श आदि के नाम से तैयार की गई हैं जो कि हिंदी और इंग्लिश दोनों भाषाओं में विश्वविद्यालय अनुदान आयोग की वेबसाइट पर उपलब्ध हैं।
कुलपति प्रो. आर. सी. कुहाड़ ने कहा कि भारत में उच्च शिक्षा के क्षेत्र में असीम संभावनाएं हैं। विश्व के परिदृश्य को देखते हुए भारत उच्च शिक्षण में काफी पीछे है। भारत सरकार ने 2030 तक भारत के 50 प्रतिशत युवाओं को उच्च शिक्षा प्राप्त नागरिक बनाने का लक्ष्य रखा है। जिसे पूरा करना हम सब की सामूहिक जिम्मेदारी और आवश्यकता भी है, ताकि हम ऐसे ऐसे समावेशी विकास, लोकतांत्रिक शासन और सतत विकास के लक्ष्यों को सार्थक रूप से सामाजिक विकास में उच्च शिक्षा के संस्थानों की भागीदारी सुनिश्चित करके प्राप्त कर सकें जो 21वीं सदी की आवश्यकताएं को पूरा करने में सक्षम हों।