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कोरोना संक्रमण काल में फ्रंटलाइन वर्कर के रूप में महत्वपूर्ण साबित हुई डॉक्टरों की भूमिका

वैश्विक महामारी के दौरान जाति धर्म से ऊपर उठ कर धर्मात्मा बने डॉक्टर: अपर निदेशक
कोरोना काल के दौरान ग्रामीण चिकित्सकों का योगदान काफ़ी सराहनीय: सीएस

पूर्णिया(बिहार)डॉक्टर को यूं ही धरती का भगवान नहीं कहा गया है।उसके पीछे उनकी मेहनत साफ नजर आती है। एक व्यक्ति जब किसी भी बीमारी का शिकार होता है, अगर उसके साथ कोई दुर्घटना होती है या फिर किसी गंभीर बीमारी की चपेट में आ जाता हैं तो ऐसे मुश्किल भरे वक्त में डॉक्टर ही उन्हें ठीक करते हैं और एक नई जिंदगी देने का काम करते हैं। वहीं, इस बार कोरोना काल में तो डॉक्टरों की महत्ता को हर किसी ने पहचाना है। दुनिया ने भी देखा है कि किस तरह से चिकित्सकों ने दिन-रात एक करके मरीजों की जान बचाई है। हम चिकित्सकों की चर्चा इस लिए कर रहे है कि 1 जुलाई को “डॉक्टर्स डे” है। धरती के भगवान कहे जाने वाले के सम्मान में ही प्रतिवर्ष 1 जुलाई को राष्ट्रीय चिकित्सक दिवस मनाया जाता है। कोरोना संक्रमण काल के दौरान संक्रमित रोगियों का इलाज करते-करते न जाने कितने चिकित्सक खुद भी संक्रमित हो गए। जिसमें बहुत से चिकित्सकों की मौत भी हो गई। जबकि कुछ चिकित्सक संक्रमित होने के बाद ठीक भी हो चुके हैं है। इन्होंने कोरोना योद्धा (वारियार) व फ्रंट लाइन वर्कर के रूप में अपनी पहचान बनाई है।

वैश्विक महामारी के बीच जाति धर्म से ऊपर उठ कर धर्मात्मा बने डॉक्टर: अपर निदेशक
स्वास्थ्य विभाग के अपर निदेशक डॉ वीर कुंवर सिंह ने बताया वैश्विक महामारी के बीच जाति धर्म से ऊपर उठ कर धर्मात्मा बने चिकित्सकों ने पूरी तन्मयता के साथ समाज सेवा की जो मिसाल कायम की है वह अद्वितीय है। चिकित्सकीय पेशा हमेशा से समाज सेवा की रही है। लेकिन कोरोना काल में की गई सेवा काफ़ी ऐतिहासिक हो गई है। कर्तव्यों के प्रति पूरी निष्ठा के साथ हर तरह के समुदाय की सेवा करने वाले चिकित्सक किसी योद्धा से कम नहीं है। कोरोना काल में चिकित्सक समुदाय ने अपने घर-परिवार से दूर रहते हुए समाज की सेवा की है। इस कोरोना काल में कुछ सुखद या दुःखद वाक्या जेहन में है। कोरोना काल में हमने अपने कई चिकित्सक साथियों को खो दिए हैं। ऐसे में चिकित्सक समुदाय को सम्मान देकर कर्ज़ उतारने से बेहतर होगा कि आप सभी इन भगवान रूपी इंसान के प्रति अपना आदर करना नहीं भूलें। आगे भी चिकित्सक समुदाय से समाज को काफी आशा है। समाज को स्वस्थ करने में चिकित्सक हमेशा तत्पर रहे हैं। वैश्विक महामारी के इस दौर में अदृश्य शत्रु से मुकाबला करना कोई आसान बात नहीं है। महामारी की रोकथाम में सभी चिकित्सकों की महत्ती भूमिका रही है। उन्होंने ग्रामवासियों द्वारा टीकाकरण में रुचि लेने पर साधुवाद देते हुए कहा कि वैक्सीन से ही हम कोरोना को परास्त कर सकते हैं।

कोरोना काल के दौरान ग्रामीण चिकित्सकों का योगदान काफ़ी सराहनीय: सीएस
सिविल सर्जन डॉ एसके वर्मा ने बताया कोरोना काल में मानवता की रक्षा करने में ग्रामीण चिकित्सकों का बहुत बड़ा योगदान रहा है। मरीजों की रक्षा और प्राथमिक उपचार की भावना को जागृत करने के लिए राज्य सरकार व स्वास्थ्य विभाग द्वारा संयुक्त रूप से समय-समय पर प्रशिक्षण देकर उन्हें जागरूक किया जाता है । सुदूर ग्रामीण क्षेत्रों में किसी की अचानक तबियत बिगड़ जाती है तो उस समय पंजीकृत चिकित्सक ही मरीज़ों की सेवा करने में अपना कीमती समय देते हैं। मलेरिया, कालाजार, चेचक एवं डिसेंट्री जैसी अनेक तरह की जानलेवा बीमारियों से निजात दिलाने में एलोपैथी का स्वर्णिम योगदान रहा है। एलोपैथी चिकित्सा पद्धति के द्वारा लाखों-करोड़ों लोगों की बचाई जा रही है। कोरोना संक्रमण काल के दिनों में निजी चिकित्सकों ने अपने-अपने नर्सिंग होम को बंद कर दिया था। जिस कारण संक्रमित मरीजों की संख्या सरकारी अस्पतालों में लगातार बढ़ रही थी। क्योंकि ज्यादातर लोगों के पास सरकारी अस्पताल ही इलाज के लिए एक मात्र विकल्प बचा हुआ था। कोरोना काल में ज़िले के सभी आयुष, होम्योपैथी, यूनानी या एलोपैथी चिकित्सा पद्धति से जुड़े चिकित्सकों ने अपनी एकजुटता का परिचय देते हुए दिन-रात समर्पण भाव से कार्य किया है।