फसल जलाने पर योजनाओं से वंचित हो सकते हैं किसान
सिवान:जिलाधिकारी मुकुल कुमार गुप्ता की अध्यक्षता में समाहरणालय स्थित कार्यालय कक्ष में फसल अवशेष प्रबंधन को लेकर अंतर विभागीय कार्य समूह की बैठक हुई। जिलाधिकारी ने कहा, खेतों में फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की उर्वरा शक्ति घटती है। मानव स्वास्थ्य पर भी बुरा असर पड़ता है। सांस लेने में तकलीफ, आंखों में जलन, नाक और गले की समस्या बढ़ती है। मिट्टी का तापमान बढ़ने से उसमें मौजूद सूक्ष्म जीवाणु और केंचुए नष्ट हो जाते हैं। जैविक कार्बन भी जलकर खत्म हो जाता है।

उन्होंने कहा, एक टन व्हीट स्ट्रॉ जलाने से 3 किलोग्राम पार्टिकुलेट मैटर, 60 किलोग्राम कार्बन मोनोऑक्साइड, 1460 किलोग्राम कार्बन डाइऑक्साइड, 199 किलोग्राम राख और 2 किलोग्राम सल्फर डाइऑक्साइड उत्सर्जित होता है। इससे पर्यावरण प्रदूषित होता है। जिलाधिकारी ने कहा, फसल अवशेष जलाने वाले किसानों को कृषि कल्याणकारी योजनाओं का लाभ नहीं मिलेगा।

उन्होंने निर्देश दिया कि किसान चौपालों में कृषि वैज्ञानिकों की उपस्थिति में किसानों को पराली प्रबंधन की जानकारी दी जाए। विद्यालयों में बच्चों को भी फसल अवशेष प्रबंधन की जानकारी दी जाए। उन्होंने बताया, एक टन व्हीट स्ट्रॉ को जलाने के बजाय मिट्टी में मिलाने से 20 से 30 किलोग्राम नाइट्रोजन, 60 से 100 किलोग्राम पोटाश, 5 से 7 किलोग्राम सल्फर और 600 किलोग्राम ऑर्गेनिक कार्बन मिलता है।

जिलाधिकारी ने कहा, कृषि विभाग द्वारा स्ट्रॉ बेलर, हैप्पी सीडर, जीरो टिल सीड-कम-फर्टिलाइजर ड्रिल, रीपर-कम-बाइंडर, स्ट्रॉ रीपर, रोटरी मल्चर जैसे यंत्रों पर अनुदान की राशि बढ़ा दी गई है। उन्होंने किसानों से अपील की कि हार्वेस्टर से कटनी के बाद खेत में बचे व्हीट स्ट्रॉ और भूसे को जलाने के बजाय बेलर मशीन से खेत की सफाई करें। फसल अवशेष को वर्मी कंपोस्ट बनाकर या मिट्टी में मिलाकर उपयोग करें। पलवार विधि से खेती कर मिट्टी को बचाएं और टिकाऊ कृषि पद्धति में योगदान दें।

