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किसान,उपभोक्ता और पर्यावरण के लिए जरूरी जैविक खेती:राज नंदनी सिंह

भगवानपुर हाट(सीवान)वर्तमान समय में जैविक खेती सिर्फ एक विकल्प नहीं, बल्कि आवश्यकता बन गई है। अभी किसान खरीफ फसल लगा रहे है या फिर लगा दिए है।जिसमें खासकर धान जैसी प्रमुख फसल के लिए, जैविक तरीका कई मायनों में जरूरी है – किसान, उपभोक्ता और पर्यावरण – तीनों के लिए लाभकारी।

1.मिट्टी की सेहत बचाने के लिए:रासायनिक खादों और कीटनाशकों के अत्यधिक प्रयोग से किसान मित्र कीटों का नुकसान होने से मिट्टी की उर्वरकता घटती जा रही है।इधर,
जैविक खेती में गोबर, हरी खाद, वर्मी कम्पोस्ट, जीवामृत जैसे उत्पाद मिट्टी को जैविक कार्बन से भरपूर बनाते हैं।
इससे मिट्टी की जलधारण क्षमता और सूक्ष्मजीवों की संख्या बढ़ती है, जो फसल के लिए जरूरी हैं।

  1. स्वस्थ और सुरक्षित अनाज के लिए:रासायनिक खेती से उगाए गए धान में अवशेष (residues) रहते हैं, जो मानव स्वास्थ्य को नुकसान पहुंचा सकते हैं।जबकि
    जैविक तरीके से उगाए गए धान में कोई हानिकारक रसायन नहीं होता, जिससे उपभोक्ताओं को स्वस्थ और सुरक्षित चावल मिलता है।
  2. पर्यावरण की रक्षा के लिए:रासायनिक कीटनाशक और यूरिया जैसे उर्वरक नदी, तालाब और भूजल को प्रदूषित करते हैं।जबकि जैविक खेती से प्राकृतिक संतुल बना रहता है, कीटों के प्राकृतिक दुश्मन जीवित रहत हैं, और जलवायु परिवर्तन के प्रभाव को कम किया जा सकता है।
  3. किसान की आय बढ़ाने के लिए:जैविक चावल की बाजार में अच्छी कीमत मिलती है – खासकर घरेलू और विदेशी जैविक बाजारों में।जैविक खेती करने से लागत में भारी कमी और उच्च मूल्य से कुल लाभ बढ़ता है।
  4. दीर्घकालिक खेती के लिए टिकाऊ समाधान:जैविक खेती से मिट्टी की गुणवत्ता बरकरार रहती है, जिससे एक ही खेत में बार-बार अच्छी फसल ली जा सकती है।इससे कृषि भूमि की उम्र बढ़ती है, और आगामी पीढ़ियों के लिए भी उपजाऊ जमीन बनी रहती है।
  5. रासायनिक खेती के दुष्प्रभावों से बचने के लिए : सायनिक खेती और जैविक खेती में अंतर है।जिसमें रासायनिक खेती में मिट्टी की उर्वरकता घटती है।जैविक खेती से मिट्टी की उर्वरकता बढ़ती है।रासायनिक कीटनाशकों से पर्यावरण प्रदूषित होती है।जबकि प्राकृतिक तरीके से कीट नियंत्रण से पर्यावरण के साथ ही साथ स्वास्थ्य भी ठीक रहता है।

7.जैविक खेती को सरकार द्वारा बढ़ावा देना :यह उद्देश्य कई स्तरों पर है, जो किसान, उपभोक्ता, पर्यावरण और राष्ट्र के व्यापक हित से जुड़ा हुआ है।सरकार का मुख्य उद्देश्य आत्मनिर्भर भारत की दिशा में कदम स्वदेशी संसाधनों (जैसे गोबर, वर्मी कम्पोस्ट, जैविक खाद)नीम,आक,धातुरा,मदार जैसे पौधों के पत्तों से रोग लगे हुए फैसलों में प्रयोग करने से फसल और मिट्टी बेहतर होती हैं साथ ही किसान बाहरी चीजों पर निर्भर नहीं रहेगें, जिससे देश की कृषि अर्थव्यवस्था मजबूत होगी ।
निष्कर्ष:जैविक धान की खेती न केवल किसान और उपभोक्ता दोनों के लिए फायदेमंद है, बल्कि यह प्राकृतिक संसाधनों और पर्यावरण की सुरक्षा के लिए भी जरूरी है। यह खेती का एक ऐसा तरीका है जो वर्तमान की जरूरतों को पूरा करते हुए भविष्य की पीढ़ियों के लिए रास्ता बनाता है।

लेखक परिचय:एमएसी कृषि बुंदेलखंड विश्विद्यालय झाँसी ।