a cup of tea - my friend
जब लड़कियां एक साथ खड़ी हो जाती हैं, तो ये समाज डरने क्यों लगता है? पता है क्यों होता है ऐसा, क्योंकि लड़कियों और औरतों को हमेशा अकेला समझा जाता है। वे किसी पर भी हद से ज़्यादा विश्वास कर लेती हैं और जिंदगी में सब कुछ भुला कर किसी एक इंसान को ही सब कुछ मान बैठती हैं, उनका उठना-बैठना, खाना-पीना सब उसी एक इंसान तक सीमित रह जाता है। इसके बाद अगर उनके साथ कुछ गलत होता है तो उनके पास कोई नहीं होता, जिसके साथ वो बात कर सकें और अपने मन को हल्का कर सकें। दूसरा ये की लड़कियों को इस विषय में समाज में एक अलग नजर से देखा जाता है, इसलिए भी वे किसी से कुछ कह नहीं पाती। हरियाणा में एक कहावत है – ” शर्म वाला शर्म में मर गया, बेशर्म सोच रहा है तुझसे डर गया”। इसलिए ऐसे लड़के बहुत कॉंफिडेंट होते हैं कि ये किसी को कुछ नहीं कहेगी। अगर गुस्से में किसी को बोल भी दिया तो सिर्फ़ उसी इंसान को जिस पर वो भरोसा कर रही हैं।
ज़्यादातर देखने में आता है कि लड़के दिखाते हैं कि उनकी बहुत अच्छी बॉन्डिंग है, वो आपस में दोस्त न कहकर एक-दूसरे को “भाई” कहकर बुलाते हैं। ऐसा क्यों है? क्योंकि वो आपस में हर बात शेयर करते हैं चाहे वह किसी भी तरह की बातचीत हो। वो जो भी करते हैं, उसमें एक-दूसरे का साथ देते हैं। दूसरी तरफ लड़कियों को इस तरह प्रिपेयर किया जाता है कि वो दूसरी लड़कियों से अलग है, वो दूसरी लड़कियों जैसी नहीं है, मतलब लड़कियों को कैटेगराइज कर दिया जाता है, और लड़कियां भी ये ही मान बैठती हैं कि वो कुछ अलग हैं और अपने आप को दूसरी लड़कियों से अलग रखने लगती हैं, जिसका खामियाजा उन्हें बाद में भुगतना पड़ता है। अगर लड़कियों की बॉन्डिंग अच्छी हो और शेयरिंग अच्छी हो तो उन्हें उनके मूर्ख बनाने वालों का पता चल जाएगा। शायद इसीलिए उनको एक दूसरे के अगेंस्ट खड़ा करने की कोशिशें हमेशा जारी रहती हैं, इसके बाद आसानी से ये कह कर पल्ला झाड़ लिया जाता है कि “औरतें ही औरतों की दुश्मन होती हैं”।
मैंने बहुत देखा है कि लड़के लड़कियों को बेवकूफ़ बना जाते हैं। ऐसा नहीं है कि लड़कियां नहीं बनाती, वो भी बनाती हैं।लेकिन ना तो सब लड़के एक जैसे होते और ना ही सब लड़कियां एक जैसी होती। यहां मैं बात कर रही हूँ उन लड़कों की, जो बहुत स्मार्ट बनते हैं और ऐसी लड़कियों की, जो बेवकूफ बन जाती हैं, अंधा-विश्वास कर लेती हैं। उपर्युक्त जगजाहिर कहावत आपने सुनी ही होगी कि “एक औरत ही औरत की दुश्मन होती है”। आप कुछ उदाहरण अगर ख़ुद की ज़िन्दगी में देखोगे तो सच भी मानोगे। मैं भी बहुत हद तक यही मानती थी। लेकिन ज़िन्दगी के अनुभवों ने सिखाया कि, ये सिर्फ एक झूठ ही नहीं है बल्कि पितृसत्तात्मक समाज की, औरत को औरत के विरुद्ध खड़ा करने की, एक साजिश भी है। यह धारणा दूसरी समाजिक बुराइयों जैसी ही एक सामाजिक बुराई है और इसका समाधान भी इसी समाज में रह रहे लोग हैं।
तो मेरी प्यारी सहेलियों यह समाज बहुत ही शातिर है, कहीं न कहीं हम इसके शिकार हो जाते हैं। ये जो कुछ मानुष प्राणी हैं जिनको हम आदमी बोलते हैं कुछ आदमी बड़े हरामी होते हैं, जो एक समय में बहुत सी कलियों के साथ खेल जाते हैं। एक जेंडर का दूसरे जेंडर के प्रति आकर्षित होना बिल्कुल प्राकृतिक है। लेकिन किसी इंसान की भावनाओं के साथ खेलना बहुत ग़लत है।
मैं साफ़-साफ़ शब्दों में कहूँ, तो मेरा मतलब संभोग से है। आजकल यह सब बहुत चलन में है कि लोग मल्टी रिलेशन रखते हैं। जिसमें उनकी बीवी या प्रेमिका को बहुत बार पता नहीं होता। पता लगने पर मनमुटाव हो जाते हैं या सुलह हो जाती है। लेकिन हमें ध्यान इस बात पर देना चाहिए कि जो लड़के एक लड़की के साथ ‘संभोग’ कर लेते हैं और बाद में बाकि दोस्तो को बोल देते हैं कि “उसका चरित्र ख़राब हैं, वो तो इतने- इतने लड़को के साथ कर चुकी है”। मेरा उन लोगों से यह सवाल है कि क्या उसने अकेली ने ही कर लिया सेक्स? तुम भी तो थे साथ में, फिर उस अकेली का चरित्र क्यों ख़राब हुआ?
फ़िर एक लड़की के बाद वो दूसरी लड़की पर जाएंगे, ओर उसके बारे में भी यही बोलेंगे। लेकिन लड़कियां आपस में बातें शेयर नहीं करती और यह उनकी सबसे बड़ी ग़लती है। जिस दिन लड़कियां एक साथ रहने लगेंगी, तब ज़िन्दगी की गुत्थियां अपने आप सुलझने लगेंगी, तो मुझे नहीं लगता कि वो किसी की वजह से डिप्रेशन में जाएंगी। बल्कि और ज़्यादा हिम्मत आएगी, स्ट्रांग बनेंगी। लड़कियों को एक कप चाय पर बैठकर इन सब बातों पर विचार-विमर्श करना चाहिए जिससे एक बदलाव आएगा, जो बहुत अच्छा होगा। जिससे सिर्फ लड़कियों का ही फायदा नहीं होगा, बल्कि लड़कों का भी फायदा होगा। क्योंकि फिर उनको भी अपने कुकर्म छुपाने के लिए मेहनत नहीं करनी पड़ेगी और हर समय इस डर में नही रहना पड़ेगा कि कहीं किसी को कुछ पता न चल जाये।
इस लेख मे जो भी विचार है वह लेखक का निजी विचार है इससे गौरीकिरण न्यूज पोर्टल का कोई संबंध नहीं है
लेखक स्वतंत्र पत्रकार ज्योति सिंह जैनी एम.एस.सी मास कम्युनिकेशन, कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्
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