नवहट्टा प्रखंड निवासी पूनम कुमारी पीएचसी पर इलाज करवा हो रही स्वस्थ:
पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) से निजात के लिए लंबे समय तक करना होता है दवा का सेवन:
सहरसा(बिहार)जिले को कालाजार मुक्त करने की दिशा में सदर अस्पताल सहित जिले में प्रखंड स्तरीय स्वास्थ्य केद्रों पर भी अब कालाजार का इलाज हो रहा है। पूरे प्रदेश में कालाजार उन्मूलन को लेकर सरकार एवं स्वास्थ्य विभाग काफी गंभीर है।इसे सुनिश्चित करने को लेकर हर जरूरी प्रयास किए जा रहे हैं। जिसे सार्थक रूप देने के लिए जिले में स्थानीय स्वास्थ्य विभाग द्वारा जहाँ तमाम गतिविधियों समेत अन्य जरूरी पहल की जा रही है। वही अब पीकेडीएल (चमरा वाला कालाजार) मरीजों का इलाज भी किया जा रहा है।
नौहट्टा प्रखंड के रामनगर भरना ग्राम की निवासी 21 वर्षीया युवती पूनम कुमारी ने कुछ महीने पहले कालाजार से ग्रसित होने के बाद अपना इलाज स्थानीय प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर करवाया। कालाजार से ठीक होने के बाद वह पीकेडीएल की चपेट में आ गई। पूनम कहती है कि उसे पता नहीं चल रहा था कि उसे क्या हो रहा है।उसके चेहरे पर धब्बे एवं फोड़े निकलने शुरू हो गए थे। जब उसने प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नवहट्टा पर जाकर पुनः दिखाया तो उसे बताया गया कि वो पीकेडीएल यानी कालाजार से ठीक होने के बाद होने वाली एक प्रकार के स्किन की बीमारी से पीड़ित हो गई है। पूनम का इलाज जनवरी माह के 7 तारीख को शुरू हुआ। सरकारी स्वास्थ्य केंद्र से प्राप्त दवा का सेवन कर पूनम अब काफी हद तक ठीक हो चुकी है। उसके चेहरे के दाग़ धब्बे अब मिटने लगे हैं।
प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र से इलाज करवा संतुष्ट है पूनम:
पीकेडीएल से पूर्ण रूप से निजात पाने के लिए दवा का सेवन कर रही पूनम कुमारी प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र नवहट्टा के स्वास्थ्य कर्मियों एवं विशेषकर चिकित्सकों को धन्यवाद देती है। पूनम कहती है कि कालाजार से ठीक होने के बाद जब उसके स्किन पर धब्बे निकलने शुरू हुए तो हिम्मत हारने लगी। लेकिन पी एच सी के डॉक्टर के परामर्श पर उसने धैर्य रखा एवं अपना इलाज करवाना शुरू किया। पूनम ने बताया कि उसे डॉक्टर द्वारा दिए गए परामर्श के अनुसार 84 दिनों तक दवा का सेवन करने के लिए कहा गया है।
पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) क्या है?
जिला वेक्टर रोग जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ रविन्द्र कुमार बताते हैं कि पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) एक त्वचा रोग है जो कालाजार के बाद होता है। कालाजार के कुछ रोगियों में बीमारी ठीक हो जाने के बाद भी त्वचा पर अलग प्रकार और रूप के सफेद धब्बे या छोटी-छोटी गांठें बन जाती है। लिश्मेनिया डोनोवानी की उपस्थिति में मानव शरीर में होने वाले बदलाव को पीकेडीएल कहते हैं। पीकेडीएल की यह घटना समान्य रूप से कालाजार होने के एक, दो या कई सालों बाद दिखाई देती है। इस बीमारी के बहुत कम मामलों में यह त्वचा रोग कालाजार प्रारंभिक लक्षणों के बिना ही उजागार होते देखा गया है।पूनम उन्हीं लोगों में से एक है जो इस बीमारी से ग्रसित हुई।अब वो ठीक हो रही है। डाॅ रविन्द्र कुमार बताते हैं कि इस बीमारी से निजात पाने के लिए लंबे समय यथा 84 दिनों तक दवा का सेवन करना पड़ता है। पूनम 7 जनवरी से दवा का सेवन कर रही है जो 1अप्रैल 2022 तक दवा पूर्ण होगा।
पीकेडीएल के मामलों को कैसे पहचाना जाए:
कोई भी व्यक्ति जिसे पहले कालाजार हुआ हो और उसके शरीर के किसी भाग पर हल्के रंग के धब्बे या छोटी-छोटी गांठ दिखाई दे जिन्हें छूने पर महसूस हो, वह व्यक्ति पीकेडीएल का केस हो सकता है।
कालाजार का संदेह कब होता है:
कालाजार प्रभावित क्षेत्र का कोई भी व्यक्ति २ सप्ताह से अधिक समय से बुखार से पीड़ित हो। उसका जिगर और तिल्ली बढ़ गया हो तो उसे कालाजार हो सकता है।
कालाजार से पूरा शरीर कैसे प्रभावित होता है:
कालाजार उत्पन्न करनेवाले परजीवी के संक्रमण से रोगी के शरीर के रोगों से लड़ने की क्षमता घट जाती है।जिसके कारण उसे दूसरे रोगों से संक्रमित होने की संभावना भी बढ़ जाती है।
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