Home

सिर्फ संविधान तक सीमित नहीं है अम्बेडकर

संयुक्त राष्ट्र संघ ने आज तक 3 व्यक्तियों की जयंती को मनाया है. किंग जूनियर मार्टिन लूथर, नेल्सन मंडेला और डॉक्टर भीमराव अंबेडकर.ये वो लोग रहे हैं जिन्होंने अपने-अपने देशों में एक ऐसे तबके के लिए संघर्ष किया था, जिनको समाज में निम्न दर्जे से भी नीचे समझा जाता था. इन लोगों ने उन पिछड़े लोगों के लिए संघर्ष ही नहीं किया बल्कि तब तक व्यवस्था से लड़ते रहे जब तक इन हाशिए पर गए हुए लोगों को उनके अधिकार नहीं मिल गए. आज के दिन 14 अप्रैल 1891 को एक ऐसे ही शक्श का जन्म हुआ था. मैं बात कर रहा हूं डॉक्टर भीमराव अंबेडकर की, जो संविधान सभा की प्रारूप समिति के अध्यक्ष बनाए गए थे. भारत के पहले कानून मंत्री बनाए गए थे. केवल यही दो योगदान सुनने को मिलते हैं समाज में अंबेडकर के बारे में. लेकिन इससे ज्यादा जानने वाले लोग भी मौजूद हैं लेकिन समाज में कहीं पर नजर नहीं आते.


जवाहरलाल नेहरू ने डॉक्टर अंबेडकर के बारे में कहा था “वह हिंदू समाज के अत्याचार पूर्ण तत्वों के प्रति विद्रोह का प्रतीक है उन्होंने हिंदुओं में अछूत मानी जाने वाली जातियों के उद्धार का प्रयत्न किया तथा दलित वर्ग को आत्मसम्मान दिलाने हेतु आंदोलन का सूत्रपात किया”. इस वाक्य को एक बार दोबारा पढ़ो और पता करो कि कहीं पर भी इसमें संविधान का जिक्र आया है? नहीं आया है! लेकिन आज डॉ भीमराव अंबेडकर को संविधान तक समेटने की कोशिश की जा रही है. मुझे लगता है कि कहीं ना कहीं तक हम लोगों का यह मानसिक भ्रम साबित भी हो गया है. क्या कोई भी किसी किताब में, आज तक हुई परीक्षाओं में, यह पूछा हुआ दिखा सकता है कि डॉक्टर बी आर अंबेडकर ने ही संविधान लिखा था. अंबेडकरवादी लोगों को शायद मेरी बात चुभनी शुरू हो जाए कि कैसी बात कर रहा है! संविधान तो डॉक्टर साहब ने ही लिखा था !

मैंने आज तक जितनी भी परीक्षाएं दी हैं या देखी हैं या संविधान के बारे में पढ़ता है तो वहां पर उनको सिर्फ संविधान की ड्राफ्टिंग कमेटी का अध्यक्ष बताया गया है. हाँ अगर किताबों का जिक्र करूं तो जाति उन्मूलन, सामाजिक न्याय, बुद्धा और धम्मा, और भारतीय समाज में जाति और अछूत. इस तरह की किताबों के बारे में तो सुना है लेकिन इनको पढ़ने के लिए कहीं पर कोई मुहिम या सक्रियता दिखाई नहीं देती. केवल संविधान पढ़ लो और अधिकारों के बारे में जान लो. इससे आगे पढ़ना नहीं चाहते या पढ़ने नहीं दिया जाता? सवाल यहीं पर आकर खड़ा हो जाता है, और मेरी मुख्य बात भी यहीं से शुरू होती है.


अंबेडकर को संविधान तक सीमित क्यों किया जा रहा है? जहां तक समाज और आंदोलन की दिशा और राजनीतिक इच्छा को देख पाया हूं तो यह एक सोची-समझी साजिश नजर आती है. हम सभी जानते हैं कि भारत में कानून और संविधान की इज्जत क्या है? अगर कोई आपको जातिसूचक गाली देकर थप्पड़ मार देगा तो आप साबित नहीं कर सकते कि आपके साथ ऐसा हुआ है. संविधान को सिर्फ डॉक्टर अंबेडकर की रचना बताना उनके द्वारा चलाए आंदोलन को दबाकर रखना है. मैं यह नहीं कहना चाहता हूं कि सविधान को बिल्कुल नकार दो. लेकिन संविधान ने जो अधिकार दिए गए हैं उस सामाजिक जीवन से जुड़े बहुत सारे अनुभव जानता हूं. अगर गांव में कोई पंचायत दलितों को लेकर होती है तो मैं दावे के साथ कहता हूं सिर नीचे करके वापस आना पड़ेगा बिना गलती के भी. संविधान आपको यह सामाजिक न्याय नहीं दिला सकता, सिर्फ नौकरी दिलवा सकता है. ‘जब तक आत्मसम्मान नहीं मिलता तब तक राजनीतिक न्याय सिर्फ एक छलावा है बिना सामाजिक न्याय के’ यह मैं नहीं कहता, डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा बोला गया है.

मंदिरों के अंदर प्रवेश करने तक का अधिकार नहीं है. आज भी हमारी सारी की सारी बस्तियां सड़कों पर हैं. सरपंच का चुनाव भी हो जाए तो अपनी बारी आये बगैर तो खड़े भी नहीं हो सकते, आज भी ऐसे परिवार हैं जो सिर्फ मेला उठाकर गांव में रहते हैं, किसी ऊंची जाति के चारपाई के सिरहाने पर नहीं बैठ सकते हैं, किसी सामंती विचार वाले घर में जाकर आप लोग पानी नहीं पी सकते हैं, अगर पी भी लेते हैं तो आपके जाने के बाद घड़ों को फोड़ दिया जाता है, गांव में आप लोगों के शमशान तक अलग होते हैं. आईएएस, आईपीएस, एमपी, एमएलए बनने के बाद भी सामाजिक न्याय से अक्षर दूर होते देखा है लोगों को मैंने.

शिक्षण संस्थानों में गहरा जातिवाद आपको देखने को मिल जाएगा. आखिर यह सामाजिक न्याय कौन दिलाएगा? क्या डॉक्टर अंबेडकर ने संविधान के लिए लड़ाई लड़ी? या फिर समाज में आत्म सम्मान के लिए संघर्ष किया? इतना कुछ लिखा, इतना कुछ बोला, इतने आंदोलन किए, लेकिन क्या इसलिए कि आप लोग आगे आकर वोट की राजनीति में फंसकर सिर्फ संविधान की राजनीति करें. हमारे प्रतिनिधि हमें पूछने तक नहीं आते हैं और अपने बड़े बड़े महलों में बंगलों में घुस जाते हैं. क्या इन लोगों के लिए डॉक्टर साहब ने अपने चार बच्चों की कुर्बानी दी? नहीं !सिर्फ पिछड़े हुए लोगों को ऊपर उठाने के लिए. जो लोग संसद में या विधानसभा में चले जाते हैं या फिर जो लोग आईएएस, आईपीएस बन जाते हैं या फिर कोई दूसरी नौकरी में चले जाते हैं वह लोग इसे संविधान की लड़ाई मान सकते हैं और वो शायद चाहते भी ऐसा ही हैं.

कुछ अपवाद हो सकते हैं जो ऐसा नहीं सोचते हो. क्योंकि अगर आप लोगों ने अंबेडकर को पढ़ कर सवाल कर दिया तो आप लोग उन लोगों की चाल को समझ जाएंगे. इतना सब होने के बाद भी हम सभी संविधान को हाथ में लिए खड़े हैं. किसी के खेत में पशुओं का चारा लेने चले जाते हैं और और गलियां खाकर वापस आ जाते हैं. कुछ अपवाद हैं जो समाज में इन सभी को नजरअंदाज करते हैं और साथ बैठने देते हैं, लेकिन यह अपवाद सिर्फ उनकी अच्छी शिक्षा और समझ के कारण हैं. किसी संविधान के कारण नहीं है. व्यवस्था भी यही चाहती है कि अंबेडकर को पढ़ा ना जाए, क्योंकि अगर उसको पढ़ा गया तो समाज में धार्मिक और सत्ता के एजेंडे को आसानी से समझा जा सकता है और इसके खिलाफ बगावत खड़ी की जा सकती है.

अंबेडकर ने जो आंदोलन किए और जो उन्होंने लिखा है, उसको बदला नहीं जा सकता है. लेकिन संविधान एक लचीला ढांचा है जो बहुमत से कभी बदला जा सकता है.हमारी कमी है कि आरक्षण के नाम पर अंबेडकर को गाली मिलती हैं. अगर हम लोग संविधान तक अंबेडकर को मानते रहे तो एक दिन यह सविधान छुपा दिया जाएगा या पूर्ण तौर पर संशोधित कर दिया जाएगा और डॉक्टर अंबेडकर का अस्तित्व समाप्त कर दिया जाएगा. इसलिए जरूरत है अंबेडकर के द्वारा लिखा गया मूल साहित्य पढ़ने की. जिस दिन हम लोगों ने पढ़ लिया उस दिन इस सामाजिक न्याय के खिलाफ आंदोलन खड़ा हो जाएगा. अभी तक सिर्फ वोट के लोकतंत्र के कारण हमारा इस्तेमाल हो रहा है और हमारे वोट बाबू नेता समझौते से चलकर हमारे वोटो तक को बेच देते हैं. याद रखना संविधान नियंत्रण कर सकता है, बदलाव कभी नहीं कर सकता.

मैं चाहूंगा कि इस लेख को पढ़ने वाले इन किताबों को जरूर पढ़ें. ‘जूठन’ ओमप्रकाश वाल्मीकि के द्वारा लिखी गई किताब है. ‘जाति उन्मूलन’ डॉक्टर अंबेडकर के द्वारा लिखी गई किताब, ‘गुलामगिरी’ महात्मा ज्योतिबा फुले के द्वारा लिखी गयी किताब. आप लोगों से निवेदन है कि आप लोग इन तीनों को जरूर पढ़ें और संविधान तक सीमित ना रहे. बाबा साहब बहुत बड़ी शख्सियत है. बाबा साहब ने जो आंदोलन किए हैं हमें आंदोलन को समझना है. आंदोलन को खड़ा करना है. यह लड़ाई है, जो बिना पढ़े और समझें जितना मुश्किल है. बाकी आपकी मर्जी है जो चाहो पढ़ सकते हो.

इस लेख में जो भी विचार है वह लेखक का है ‘गौरी किरण’ का इससे कोई सम्बन्ध नहीं है

लेखक -अनिल कुमार (छात्र -राजनीतिशास्त्र विभाग महर्षि दयानन्द विश्वविधालय रोहतक )

Nagmani Sharma

Leave a Comment

Recent Posts

कटिहार में दास बेकर्स के रिटेल काउंटर का उदघाटन

बेकरी कार्य में रोजगार की असीम संभावनाएं- नेहा दास लक्ष्मीकांत प्रसाद- कटिहारआधुनिकता के दौर में…

1 month ago

विश्व में शांति स्थापित करने के लिए सभी धर्म के लोगों को एक साथ आना होगा

2023 में रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास युद्ध और कई अंतरराष्ट्रीय विवादों जैसे संघर्षों में 33,000 से…

1 month ago

बीडीओ के तबादला होने पर हुआ विदाई सह सम्मान समारोह आयोजित

भगवानपुर हाट(सीवान)बीडीओ डॉ. कुंदन का तबादला समस्तीपुर के शाहपुर पटोरी के बीडीओ के पद पर…

2 months ago

तेज रफ्तार वाहन के धक्का मरने से बाइक सवार पिता पुत्र घायल,सीवान रेफर

सीवान(बिहार)जिले के भगवानपुर हाट थाना क्षेत्र के हिलसर पेट्रोल पंप के पास एनएच 331 पर…

2 months ago

Beyond Headlines: Global Journalists United for Peace Journalism amidst theChallenges of the Unstable International Situation

On 17th February, the international peace organization, Heavenly Culture, World Peace, Restoration of Light (HWPL),…

2 months ago

विश्व में शांति निर्माण को लेकर ऑनलाइन बैठक

20 जनवरी को, विभिन्न अफ्रीकी देशों में अंतर्राष्ट्रीय शांति संगठन, HWPL द्वारा '2024 HWPL अफ्रीका…

3 months ago