बेहतर पोषण एवं स्वास्थ्य समाज के विकास के लिए जरुरी हैं अनुपूरक आहार
बच्चों में कुपोषण रोकने के लिए अनुपूरक आहार की होती हैं अहम भूमिका
6 माह के बाद बच्चों को जरुर दें अनुपूरक आहार
पूर्णिया(बिहार)बच्चों में कुपोषण को कम करने में अनुपूरक आहार की महत्वपूर्ण भूमिका मानी जाती है। क्योंकि 6 माह तक के शिशुओं का वजन लगभग दो गुना ग्रोथ होता है एवं एक वर्ष अंदर तक वजन तीन गुना एवं लम्बाई जन्म के समय से लगभग डेढ़ गुना तक बढ़ जाती है औऱ इन दो वर्षों में शिशुओं की तंत्रिका प्रणाली एवं मस्तिष्क विकास के साथ सभी अंगों में संरचनात्मक एवं कार्यात्मक दृष्टिकोण से बहुत तेजी से ग्रोथ होता है।
मार्च 2018 में बच्चों के बेहतर पोषण एवं स्वास्थ्य समाज की परिकल्पना को पूरा करने के उद्देश्य से प्रधानमंत्री ने पोषण अभियान की शुरुआत किए थे। जिसके तहत 6 माह से लेकर 2 साल तक के शिशुओं के सम्पूर्ण मानसिक एवं शारीरिक विकास के लिए बच्चों को 6 माह के बाद स्तनपान के साथ ही ऊपरी आहार की उपयोगिता काफ़ी बढ़ जाती है।लेकिन अनुपूरक आहार के डाटा इस पर अधिक बल देने की जरूरत को उजागर करता है। बीते दो माह में कोविड-19 के बढ़ते संक्रमण के कारण पोषण की कई गतिविधियां बाधित हुई हैं, जिसका संचालन पुनः करने का फैसला स्वास्थ्य विभाग द्वारा किया गया है।
टीएचआर एवं अन्नप्राशन के द्वारा अनुपूरक आहार पर दिया जाता हैं विशेष बल:
आईसीडीएस डीपीओ शोभा सिन्हा ने बताया 6 माह के बाद स्तनपान के साथ-साथ अनुपूरक आहार की आवश्यकता अधिक होती है। क्योंकि इस दौरान नवजात शिशुओं के शरीर एवं मस्तिष्क का विकास तेजी से होता है। इसे ध्यान में रखते हुए ज़िले के सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर महीने में एक बार अन्नप्राशन दिवस का आयोजन किया जाता है।आयोजित कार्यक्रम के दौरान 6 माह तक के शिशुओं को अनुपूरण आहार खिलाया जाता है।साथ ही उनके माता-पिता को इसके संबंध में जानकारी दी जाती है। इसके अलावे सभी आंगनबाड़ी केन्द्रों पर प्रतिमाह टेक होम राशन (टीएचआर) का वितरण किया जाता है, जिसमें 6 महीने से 2 वर्ष के शिशुओं के लिए चावल, दाल, सोयाबीन या अंडा लाभार्थियों को उपलब्ध कराया जाता है।इसके साथ ही टीएचआर के द्वारा मिले हुए राशन को हमलोग अनुपूरक आहार बनाने की विधि भी सिखाया जाता हैं।
गृह भ्रमण पर दिया जाता हैं अधिक बल:
आंगनबाड़ी सेविका अपने-अपने पोषक क्षेत्रों में पूर्व नियोजित घरों का भ्रमण करती हैं साथ ही वैसे नवजात शिशुओं की पहचान करती हैं।जिनका समय से विकास नहीं होता हैं। 6 माह से अधिक उम्र के बच्चों को अनुपूरक आहार, माताओं में एनीमिया की पहचान एवं रोकथाम के साथ ही शिशुओं में शारीरिक वृद्धि का आंकलन करने का कार्य करती हैं ।
अनुपूरक आहार में इन सभी कर सकते है शामिल:
भारतीय आयुर्विज्ञान अनुसंधान परिषद् से अनुशंसित राष्ट्रीय पोषण संस्थान (हैदराबाद) द्वारा जारी आहार के दिशा निर्देशानुसार शिशु के लिए प्रारंभिक आहार तैयार करने के लिए घर में ही मौजूद मुख्य खाद्य पदार्थों का उपयोग किया जा सकता है।जैसे सूजी, गेहूं का आटा, चावल, रागा, बाजरा आदि की सहायता से हल्का गुनगुना पानी या हल्के गर्म दूध में दलिया बनाया जा सकता है।शिशुओं के आहार में चीनी/गुड को भी शामिल किया जा सकता हैं क्योंकि उन्हें अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है।वसा की आपूर्ति के लिए आहार में एक छोटा चम्मच घी या तेल डाला जा सकता हैं और दलिया के अलावा अंडा, मछली, समय-समय पर मिलने वाले ताज़े फलों एवं सब्जियों जैसे अनुपूरक आहार शिशुओं के स्वास्थ्य विकास में सबसे ज़्यादा सहायक माना जाता हैं।
क्या कहते हैं डाटा:
राष्ट्रीय परिवार स्वास्थ्य सर्वे-4 के अनुसार पूर्णिया जिले में 6 माह से 8 माह तक सिर्फ 18.6 प्रतिशत बच्चे है जिन्हें स्तनपान के साथ पर्याप्त मात्रा में अनुपूरक आहार प्राप्त होता है वहीं 6 माह से 23 माह के बीच कुल केवल 11.7 प्रतिशत बच्चे हैं जिन्हें पर्याप्त आहार प्राप्त मिलता है।
बच्चों के विकास में बाधक है कुपोषण:
कुपोषण के कारण बच्चों का मानसिक और शारीरिक विकास रुक जाता हैं औऱ वे कई तरह की बीमारियों से ग्रसित हो जाते है, जैसे:- वजन कम होना, गंभीर बीमारियों का शिकार हो जाना, सामान्य बच्चों की तरह मानसिक विकास नहीं होना, वजन और शारीरिक क्षमता का कम होना और सामान्य बच्चों की तरह लंबाई का नहीं बढ़ना आदि पोषण की कमी के कारण होने वाली समस्याओं में शामिल हैं।
पोषण को लेकर इन बातों का रखें ध्यान:
6 माह बाद स्तनपान के साथ ही शिशु को अनुपूरक आहार दें।
स्तनपान के अलावे दिन में कम से कम 6 बार शिशुओं को दें सुपाच्य आहार।
शिशुओं को अंकुरित साबुत, आनाज या दाल को सुखाने के बाद पीसकर खिलाना चाहिए।
अंकुरित आहार से शिशुओं को मिलती हैं सबसे अधिक ऊर्जा।
बच्चें अगर अनुपूरक आहार नहीं खाए तो दिन में कई बार खिलाये दो-दो चम्मच आहार।
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