मातृ दिवस
हम होली – दिवाली मनाने वाले, ईद में सेंवइयां खाने वाले, बड़े दिन पर चर्च को जाने वाले, गुरुद्वारे में लंगर खाने वाले, झंडा फहराने वाले, मातृ और पितृ दिवस नहीं मनाने वाले पर उनकी हर आज्ञा अपनाने वाले, भावों से हमने हर रिश्ते को जोड़ा है। परिस्थिति के अनुसार सदैव स्वयं को मोड़ा है। दिवस कुछ सुने – अनसुने से है, सबकी आंखों में हर दिवस के कुछ सपने बुने से है, प्रत्येक दिवस की छटा कुछ स्मरणीय है। विशेष होने पर प्रत्येक दिवस अभिनंदनीय है, कर्म करो ऐसा की दिवस अनुकरणीय बन जाए। आपके विस को मनाने जनमानस एक नया दिवस मनाए..!
स्वरचित:
रश्मि दुबे (शिक्षिका)
प्रेमनगर, जिला बरेली
उत्तर प्रदेश
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