समय से पूर्व प्रसव मां व बच्चा दोनों के लिये खतरनाक
गलत खानपान व अनियमित जीवनशैली है प्री मेच्योर डिलीवरी की वजह
अररिया(बिहार)गर्भावस्था किसी महिला के लिये उत्साह व खुशियों से भरा होता है। लेकिन दोषपूर्ण जीवनशैली व गलत खानपान की वजह से कई महिलाओं को इस दौरान कुछ जटिलताओं का सामना करना पड़ता है। प्री मैच्योर डिलीवरी यानि समय से पूर्व प्रसव भी इन्हीं जटिलताओं में शामिल है। समय पूर्व प्रसव संबंधी मामले में बच्चा व मां दोनों के जान को खतरा होता है। जिले में प्रति वर्ष लगभग पांच फीसदी बच्चे समय से पूर्व जन्म ले रहे हैं। समय से पूर्व जन्म लेने वाले लगभग 20 फीसदी बच्चे प्रति वर्ष असमय मौत के शिकार होते हैं।
प्री मैच्योर बर्थ नवजात मृत्यु का सबसे बड़ा कारण
सिविल सर्जन डॉ. विधानचंद्र सिंह ने कहा कि जब किसी महिला का प्रसव गर्भावस्था के 37 हफ्ता पूरा होने से पूर्व होता है। तो इसे प्री मैच्योर डिलीवरी या समय से पूर्व प्रसव कहते हैं। उन्होंने कहा कि सामान्य गर्भवस्था 40 हफ्तों में पूरी होती है। लेकिन 37 हफ्ते तक भ्रूण का संपूर्ण विकास हो चुका होता है। इसलिये 37 हफ्ते बाद शिशु के जन्म को सुरक्षित माना जाता है। उन्होंने कहा कि गर्भावस्था पूर्ण होने से जितने सप्ताह पूर्व प्रसव होगा मां व बच्चे उतना ही असुरक्षित होंगे। उन्होंने कहा कि प्रीमैच्योर बर्थ नवजात मृत्यु का सबसे बड़ा कारण है।
प्री मैच्योर डिलीवरी के हो सकते हैं कई वजह
सदर अस्पताल के वरीय चिकित्सक डॉ.राजेंद्र कुमार ने बताया कि प्री मैच्योर डिलीवरी के कई वजह हो सकते हैं। 18 साल से कम व 35 साल से अधिक उम्र में गर्भधारण करना, पूर्व में प्री मैच्योर डिलीवरी का होना,गर्भ में जुड़वा या उससे ज्यादा भ्रूण होना, मधुमेह, हाई ब्लड प्रेशर,अनियमित दिनचर्या,पोषक तत्वों की कमी के साथ-साथ अनुवांशिक प्रभाव व संक्रमण इसके प्रमुख कारणों में से एक है। अस्पताल अधीक्षक जीतेद्र प्रसाद ने बताया कि सही उम्र में गर्भधारण, गर्भावस्था के दौरान वजन का ध्यान, संतुलित व नियमित व्यायाम,जरूरी पोषक तत्वों का ख्याल,गर्भवस्था के बीच दो साल का अंतर, नसीले पदार्थ का सेवन से दूरी सहित ऐसे कई जरूरी उपायों पर अमल से प्री मैच्योर डिलीवरी की संभावनाओं को सीमित किया जा सकता है।
बचाव के लिये निर्धारित समय पर एएनसी जांच जरूरी
डीपीएम स्वास्थ्य रेहान अशरफ ने बताया कि हाल के दिनों में प्री मैच्योर डिलीवरी के मामले में काफी कमी आयी है। जिले में हर साल औसतन एक लाख 10 हजार बच्चे जन्म लेते हैं। इसमें 5500 के करीब बच्चे समय से पूर्व जन्म लेते हैं। इसमें कमी लाने के लिये नियमित समयांतराल पर प्रसव पूर्व चार जांच महत्वपूर्ण माना जाता है। जांच के क्रम में महिलाएं अपने शारीरिक व मानसिक अवस्था के संबंध में चिकित्सकों को सही और पूरी जानकारी दें। तनाव व चिंता से दूर रहकर इससे जुड़ी चुनौतियों को काफी हद तक कम किया जा सकता है।
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