हिंदुस्तान की किसी भी पार्टी में इतनी जगह नहीं है कि वे भगतसिंह सरीखे नौजवान को जगह दे दे।
कुलदीप
स्वतंत्र पत्रकार
भगतसिंह आजादी के आंदोलन के सिर्फ एक क्रांति के परवाने ही नहीं है।
भगतसिंह एक सोच है।
भगतसिंह एक विचार है।
भगतसिंह एक नारा है।
भगतसिंह एक ऐसा विचार है जो विरोध करते है।
” मनुष्य के द्वारा मनुष्य का शोषण”
”एक राष्ट्र के द्वारा राष्ट्र का शोषण ”
भगतसिंह की जेल डायरी से अगर हम उनका लेख ” सांप्रदायिक दंगे और उनका ईलाज पढें तो साफ पता चलेगा कि भगतसिंह सभी सांप्रदायिकता और कट्टरता का कैसे मुखर होकर विरोध करते है। वो सभी धर्मों व जातियों के लोगों को एक इंसान के रूप में देखते है।
वो काले अंग्रेजों और गोरे अंग्रेजों में कोई फर्क नहीं मानते क्योंकि आम जनता को लुटते दोनों है।
ऐसे में जो पार्टियां पूंजीपतियों की दलाल है व सांप्रदायिक राजनीति करती है।वो भगतसिंह को कैसे सहन कर सकते हैं।भगतसिंह का पक्ष बिल्कुल साफ था कि वे धार्मिक हिंसा व सांप्रदायिक हिंसा के बिल्कुल खिलाफ थे।
आज कल पार्टियां भगतसिंह को सिर्फ इसलिए पोस्टर पर जगह देती है क्योंकि भगतसिंह युवाओं के प्रेरणा स्रोत है। वो करोड़ों युवाओं के लिए आज भी हौसला है। सिर्फ युवाओं को अपने पक्ष में करने के लिए पार्टियाँ भगतसिंह का फोटो लगाती है।
किसानों,मजदूरों,महिलाओं,नौजवानों व आम जनता की समस्याओं से किसी भी पार्टी को कुछ लेना देना नहीं है।
भगतसिंह को उनकी 113 वीं जयंती पर शत-शत नमन!
(इस लेख के सभी विचार लेखक का है।गौरीकिरण का कोई संबंध नहीं है।)
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