मातृ एवं शिशु मृत्यु सर्विलांस व रिपोर्टिंग पर आयोजित की गयी कार्यशाला:
गया(बिहार)जिला में होने वाली मातृ एवं शिशु मृत्यु की सही रिपोर्टिंग की जाये। सही तरीके से और नियमित रूप गर्भवस्था, प्रसव के दौरान या इसके बाद होने वाली मातृ एवं शिशु मृत्यु की रिपोर्टिं करना महत्वपूर्ण है ताकि भविष्य में इसकी रोकथाम की जा सके। संबंधित स्वास्थ्यकर्मियों को उपलब्ध कराये गये फॉर्मेट में मृत्यु की कारणों की विस्तृत जानकारी स्वास्थ्य विभाग को देनी है।इस कार्य में सामुदायिक स्तर पर आशा तथा संस्थागत स्तर पर अस्पताल के चिकित्सा पदाधिकारी और एएनएम की भूमिक महत्वपूर्ण है और इस कार्य में किसी प्रकार की लापरवाही नहीं बरती जानी चाहिए। यह बातें जिला स्वास्थ्य समिति के सभागार में सिविल सर्जन डॉ कमल किशोर राय ने मातृ एवं शिशु मृत्यु सर्विलांस एवं रिपोर्टिंग विषय पर आयोजित एक प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान कही।
स्वास्थ्य विभाग तथा यूनिसेफ द्वारा आयोजित इस प्रशिक्षण कार्यशाला के दौरान डीपीएम नीलेश कुमार, जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ एहतेशामुल हक, डीपीसी शैलेंद्र कुमार, यूनिसेफ से डॉ तारीक अहमद, स्टेट चाइल्ड हेल्थ कंसल्टेंट डॉ अनुपमा तथा डॉ नलिनकांत त्रिपाठी, एवं प्रभावती तथा जेपीएन अस्पताल से महिला एवं प्रसूति रोग विशेषज्ञ तथा एएनम सहित सभी प्रखंडों के प्रभारी चिकित्सा पदाधिकारी मौजूद रहे।
प्रशिक्षण के दौरान सिविल सर्जन ने कहा कि यदि मातृ एवं शिशु मृत्यु की सही रिपोर्टिंग की जायेगी तभी आवश्यक रणनीति बनायी जा सकती है।वर्तमान में सिर्फ 7 मातृ मृत्यु दर कम है और ऐसा प्रतीत होता है कि इसकी भलीभांति रिपोर्टिंग नहीं की जा रही है।
रिपोर्टिंग से मौत के कारणों को समझना होगा आसान:
इस मौके पर डॉ नलिनकांत त्रिपाठी ने बताया कि सर्विलांस तथा रिपोर्टिंग से मातृ एवं शिशु मृत्यु के कारणों और उससे जुड़ी समस्याओं को बेहतर तरीके से समझा जा सकता है। मृत्यु की रोकथाम के लिए आवश्यक उपाय किये जाने में सहूलियत होती है। उन्होंने बिहार में होने वाली मातृ मृत्य के आंकड़ों को साझा करते हुए कहा कि मातृ मृत्यु के बड़ों कारणों में संक्रमण, प्रसव के समय अधिक रक्तस्राव तथा उच्च रक्तचाप आदि शामिल हैं।साथ ही उच्च जोखिम गर्भावस्था वाले मामले में गर्भवती का देर से अस्पताल पहुंचाना भी एक बड़ा कारण है। ऐसे में यदि कोई मातृ मृत्यु होती है तो आशा को इसकी खबर संंबंधित विभाग के अधिकारी को आवश्यक रूप से देना है।उन्होंने एमडीआर ऑपरेशन गाइडलाइन के एक डाटा का जिक्र करते हुए बताया कि मातृ मृत्यु होने के कुल संख्या का 20 प्रतिशत मौतें गर्भावस्था के दौरान होती है। जबकि पांच प्रतिशत मृत्यु प्रसव के दौरान तथा 50 प्रतिशत मौत प्रसव के 24 घंटे के भीतर होती है। डॉ अनुपमा ने बताया शिशु मृत्यु सर्विलांस तथा रिपोर्टिंग के संबंध में बताया कि इससे शिशु की मौत के मेडिकल कारणों तथा सामाजिक कारकों को जानने और स्वास्थ्य सेवाओं की उपलब्धता में कमी को समझने में मदद मिल सकेगी।
समुदाय के लोग भी मातृ मृत्यु की कर सकते हैं रिपोर्टिग:
डॉ एमई हक ने बताया किन्हीं कारणों से गर्भवस्था या प्रसव के दौरान अथवा प्रसवोपरांत होने वाली मृत्यु की जानकारी समुदाय के लोग भी दे सकते हैं. इसके लिए 104 नंबर पर कॉल कर मृत्यु की जानकारी देनी होती है। इसके लिए सूचना देने वाले व्यक्ति को 1000 रुपये देने का भी प्रावधान है। सूचना मिलने पर इसकी जानकारी जिला स्तर पर दी जाती है और आवश्यक रिपोर्टिंग संबंधी कार्य संपादित किये जाते हैं। उन्होंने बताया सर्विलासं और रिपोर्टिंग को मजबूत करने की जरूरत है।शिशु मृत्यु दर में कमी लाने के लिए स्वास्थ्य सेवाओं को गुणवत्तापूर्ण बनाया जा रहा है। डॉ तारीक अहमद ने बताया एक आकलन के मुताबिक एक लाख 35 हजार जन्म होते हैं लेकिन इस अनुपात में होने वाली मौतों की संख्या बहुत कम होती है। और सही सूचना नहीं मिल पाने के कारण सही संख्या की जानकारी नहीं मिल पाती है।
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