पूर्णियाँ(बिहार)सदर अस्पताल परिसर स्थित सभागार में सिविल सर्जन डॉ. उमेश शर्मा, एसीएमओ डॉ. एसके वर्मा, डीएमओ डॉ. आरपी मंडल व डब्लूएचओ के जिला समन्यवयक डॉ. दिलीप कुमार झा ने संयुक्त रूप से फाइलेरिया के पांच महिला मरीजों को फाइलेरिया ग्रसित अंगों की देखभाल व सफाई करने के लिए एक-एक किट का वितरण किया. प्रति किट के रूप में एक टब, एक मग, कॉटन बंडल, तौलिया, डेटॉल साबुन, एंटीसेप्टिक क्रीम दिया गया हैं. साथ ही हाथी पांव से ग्रसित महिलाओं को फाइलेरिया के बचाव व सुरक्षित रहने संबंधी जानकारी भी दी गई है.
सिविल सर्जन डॉ. उमेश शर्मा ने बताया फाइलेरिया क्यूलैक्स फैंटीगंस मादा मच्छर के काटने से फैलता है। जब यह मादा मच्छर जब किसी स्वस्थ व्यक्ति को काटती है, तो उसके शरीर में माइक्रोफाइलेरिया परजीवी पहुंच जाते हैं। तो वह संक्रमित हो जाता है। छह माह से दो साल के भीतर माइक्रोफाइलेरिया परजीवी परिपक्व होकर कृमि में बदल जाता है और प्रजनन कर अपनी तादाद बढ़ाता है। तब संक्रमित व्यक्ति में फाइलेरिया के लक्षण दिखना शुरू होते हैं। यह परजीवी रात नौ से दो के बीच ज्यादा सक्रिय होता है। इसलिए इसकी जांच भी रात नौ बजे के बाद ही होती है। उन्होंने बताया अधिकांशत किशोरावस्था में यह संक्रमण प्रारंभ होता है। इससे उनमें कमजोरी, काम में रुचि न लेना, थकान, खेलने-कूदने में मन न लगना जैसे लक्षण दिखाई पड़ने लगते हैं।
फाइलेरिया बीमारी से बचाव ही एक मात्र हैं उपाय:
फाइलेरिया एक ऐसा रोग है, जिसके लक्षण संक्रमित होने के छह महीने या साल भर बाद दिखाई देता हैं, इसलिए यह रोग शुरुआती समय से ज्यादा घातक हो जाता है, इससे बचाव के लिए मच्छरजनक कारकों को तो नष्ट करना ही चाहिए, साथ ही सरकार द्वारा वितरित की जाने वाली दवा का भी सेवन करना चाहिए, और यह दवा एक साल में सिर्फ एक बार ही खानी पड़ती है. यदि तीन से पांच साल तक दवा का सेवन करते रहें तो फाइलेरिया जैसी घातक बीमारी से आजीवन भर के लिए मुक्ति मिल सकती है.
ज़िले में 2930 हाथी पांव के हैं मरीज़ :
ज़िला फलेरिया पदाधिकारी डॉ. आरपी मंडल ने बताया की ज़िले में 2930 फाइलेरिया (हाथी पांव) के मरीजों की पहचान की गई है. जिसका ईलाज किया जा रहा हैं. यह एक ऐसी गंभीर बीमारी है जो किसी की जान तो नहीं लेती है, लेकिन जिंदा आदमी को मृत समान बना देती है. जल जमाव या स्थिर पानी होने के कारण संक्रमित मच्छर के काटने से कृमि लसिका तंत्र की नलियों में बहुत छोटे आकार के कृमि शरीर में प्रवेश कर जाता हैं. और उन्हें बंद कर देता हैं. इस बीमारी को हाथीपांव के नाम से भी जाना जाता है. अगर समय रहते फाइलेरिया की पहचान कर ली जाए तो जल्द ही इसका इलाज शुरू कर इसे जड़ से खत्म किया जा सकता है.
इस अवसर पर सिविल सर्जन डॉ. उमेश शर्मा, एसीएमओ डॉ. एसके वर्मा, ज़िला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी ( डीएमओ) डॉ. आरपी मंडल, विडीसीएम रवि नंदन सिंह, डब्लूएचओ के जिला कोऑर्डिनेटर डॉ. दिलीप कुमार झा, केयर इंडिया के डीपीओं चंदन कुमार, भीबीडी कंसल्टेंट रणधीर कुमार, अजय प्रसाद सिंह, अशोक राय, मनीष कुमार, अमरेंद्र कुमार, आमोद नारायण झा, रामकृष्ण सहित कई अन्य पदाधिकारी व फलेरिया कर्मी मौजूद थे।
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