हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय मानव संसाधन विकास मंत्रालय, भारत सरकार द्वारा तैयार राष्ट्रीय शिक्षा नीति को अंतिम रूप देने की प्रक्रिया जारी है। इस नीति का प्रारूप तैयार है और इसके संबंध में विभिन्न सहभागियों से उनके सुझाव आमंत्रित किए गए हैं। राष्ट्रीय शिक्षा नीति -2019 के इसी प्रारूप पर गुरुवार, 25 जुलाई को हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ में एक दिवसीय कार्यशाला के माध्यम से चर्चा की गई।
विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर आर.सी. कुहाड़ के मार्गदर्शन व निर्देशन में शिक्षा पीठ की ओर से आयोजित इस कार्यशाला में विद्यार्थियो , शोधार्थियों, शिक्षकों, विभाग प्रभारियों, अधिष्ठाताओं सहित स्थानीय स्कूलो के प्रतिनिधियों ने विस्तार से विचार-विमर्श किया और संशोधन व समायोजन से संबंधित विभिन्न पहलुओं पर सहमति बनाने का प्रयास किया।
प्रो. कुहाड़ ने अपने संदेश के माध्यम से कहा कि यह शिक्षा नीति नए भारत के निर्माण में अग्रणी भूमिका अदा करने का काम करेगी। उन्होंने कहा कि मानव संसाधन विकास मंत्रालय की ओर से जिस प्रकार इस नीति पर आमजन की राय एकत्र की जा रही है, उससे स्पष्ट है कि सरकार इस नीति में विभिन्न पक्षों को ध्यान में रखते हुए मूर्त रूप देने की पक्षधर है। इस कार्यशाला में विशेषज्ञ वक्ता के रूप में कुरुक्षेत्र विश्वविद्यालय, कुरुक्षेत्र में शिक्षा पीठ की अधिष्ठाता प्रोफेसर संगीता उपस्थित रही।
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की पंडित मदन मोहन मालवीय नेशनल मिशन ऑन टीचर्स एंड टीचिंग (पीएमएमएमएनएमटीटी) योजना के अंतर्गत आयोजित इस कार्यशाला को संबोधित करते हुए प्रोफेसर संगीता ने स्कूली शिक्षा व उच्च शिक्षा के बीच अंतरसंबंध स्थापित करने की आवश्यकता पर जोर दिया। उन्होने कहा कि जब तक यह दोनों एक-दूसरे से नहीं जुडे़गे विद्यार्थियों को निरंतर विकास के विकल्प उपलब्ध नहीं होंगे। इसी तरह उन्होंने नई शिक्षा नीति के विभिन्न पक्षों पर विस्तार से प्रकाश डालते हुए जोर दिया कि योजनागत स्तर पर भले ही हम कितने ही मजबूत क्यों न हो, लेकिन किसी भी योजना की सफलता उसके सफल क्रियान्वयन पर निर्भर करती है। प्रोफेसर संगीता ने नई शिक्षा नीति के अंतर्गत मॉनिटरिंग के लिए प्रस्तावित विभिन्न उपायों पर भी चर्चा करते हुए कहा कि इस नीति के सफलतम क्रियान्वयन के लिए जरूरी है कि निगरानी एजेंसी की भूमिका स्पष्ट हो।
इस एक दिवसीय कार्यशाला का स्वागत भाषण प्रोफेसर सारिका शर्मा ने दिया जबकि कार्यशला की रूपरेखा डॉ. प्रमोद कुमार ने प्रस्तुत की। उन्होंने बताया कि दो अलग-अलग सत्रों में प्रतिभागियों ने विस्तार से शिक्षा नीति के विभिन्न पक्षों पर चर्चा की ओर ऐसे सुझाव प्रस्तुत किए जिनके माध्यम से इस नीति को बेहतर बनाया जा सकता है और इसके उद्देश्य का अधिकतम पूर्ण किया जा सकता है।
प्रातःकालीन सत्र की अध्यक्षता स्वामी दयानंद सरस्वती पीठ के प्रोफेसर रणबीर सिंह ने की और उन्होंने अपने संबोधन में शिक्षा सभी के लिए उपलब्ध हो और उसका लाभ न सिर्फ शहरी बल्कि दूर-दराज के गांवांे तक भी पहुंचे। प्रोफेसर रणबीर सिंह ने कहा कि बेहतर शिक्षा का लक्ष्य तभी प्राप्त किया जा सकता है जबकि हर विद्यार्थी को अपनी प्रतिभा के विकास के लिए समान अवसर उपलब्ध हो फिर वो चाहे छोटे से कस्बे का निवासी हो या फिर किसी बडे़ शहर का। कार्यशाला के दूसरे सत्र में विभिन्न संकायों के अधिष्ठाताओं, विभाग प्रमुखों, शिक्षकों, विद्यार्थियों व शोधार्थियों ने विस्तार से विचार मंथन किया। इस आयोजन में प्रोफेसर राजेश मलिक, प्रोफेसर नीलम सांगवान, प्रोफेसर दीपक पंत, प्रोफेसर अमर सिंह, कुलसचिव रामदत्त व परीक्षा नियंत्रक डॉ.विपुल यादव सहित विभिन्न विभागों के शिक्षक, विद्यार्थी व शोधार्थी प्रमुख रूप से शामिल हुए।
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