अररिया जिले के पहले व एकमात्र प्लाज्मा डोनर ने कहा कि सौभाग्य से मिलता है लोगों की मदद का मौका
ईश्वर से चाहूंगा कि वे मुझे ऐसे अवसर बार-बार मुहैया करायें ताकि मैं लोगों के कुछ काम आ सकूं
अररिया(बिहार)कोरोना काल में लोगों के आपसी रिश्ते काफी मजबूत हुए हैं। संकट के इस दौर में कई लोग ऐसे हैं एक दूसरे को उबारने में बेहद मददगार साबित हुए हैं । लोग आपसी रिश्ता , बिना किसी पूर्व जान-पहचान व परिचय के भी एक दूसरे की मदद के लिये आगे आये। कुछ ने इस मुश्किल घड़ी में लोगों की मदद कर उनकी जान बचाने के साथ उनके हंसते – खेलते परिवार को उजड़ने से बचाने में एक मसीहा की भूमिका निभाई। ऐसा ही एक शख्स हैं गोपाल कुमार चौधरी। उन्होंने कोरोना संक्रमण से जूझ रहे एक मरीज को बिना किसी पूर्व पहचान के अपना प्लाज्मा दान कर उनकी जान बचाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई। गोपाल जी अबतक जिले के पहले व एकमात्र प्लाज्मा दाता हैं ।
पौष्टिक आहार व नियमित योगाभ्यास से दी कोरोना को मात
गोपाल बताते हैं कि वे बीते अगस्त माह में अपने कामकाज के दौरान वे संक्रमण की चपेट में आ गये थे । उनके साथ उनके कई सहकर्मी भी संक्रमित हुए थे। संक्रमण की पुष्टि होने के उन्हें बेहद घबराहट हुई। वे बेहद निराश भी हुए। चिकित्सकों ने उन्हें होम आइसोलेशन में रहने की सलाह दी। पूरे 14 दिनों तक वे होम आइसोलेशन में रहे। इस दौरान नियमित खान-पान पौष्टिक आहार का सेवन, इम्यूनिटी सिस्टम बढ़ाने वाले पेय व नियमित योगाभ्यास पर पूरी तरह फोकस किया। ताकि किसी तरह का नाकारात्मक विचार उनके मन में अपनी जगह नहीं बना सके। अंतत: कोरोना ने हार मान ली। गोपाल पूरी तरह स्वस्थ होकर अपने काम में जुट गये हैं ।
नहीं जानते थे कि किसे देना है प्लाज्मा
बकौल गोपाल सितंबर के शुरुआती सप्ताह में वे ऑफिस में अपने कार्यों में व्यस्त थे। इस दौरान उनके मोबाइल पर एक कॉल आया। इसमें किसी गंभीर रूप बीमार व्यक्ति को रोग से बचाव के लिये प्लाज्मा के जरूरत होने की बात बतायी गयी। गोपाल बताते हैं कि तब तक उन्हें प्लाज्मा डोनेट करने के संबंध में कोई जानकारी नहीं थी। शुरू में थोड़ा डर भी लगा लेकिन इसे जीवन में एक अवसर मानते हुए उन्होंने प्लाज्मा डोनेट करने का निर्णय लिया। प्लाज्मा किसे देना है. इस संबंध में उन्हें कोई जानकारी नहीं थी। ये पता था कि इसके लिये उन्हें पटना स्थित एम्स जाना होगा। गोपाल कहते हैं कि मेरे साथ ऑफिस के कई अन्य लोग भी संक्रमित हुए थे लेकिन कॉल सिर्फ उन्हें आया था। लिहाजा उन्होंने इसे एक अवसर मानते हुए पटना जाकर प्लाज्मा दान करने का निर्णय लिया।
सौभाग्य से मिला प्लाज्मा दान करने का मौका
पटना पहुंचने के बाद वे रोगग्रस्त व्यक्ति के परिजन से मिले। रोगी के परिजन उन्हें देख बेहद खुश हुए। फिर पटना एम्स पहुंचने पर इसे लेकर जरूरी तैयारियां शुरू हो गयी। गोपाल कहते हैं वे प्लाज्मा डोनेट करते तनिक भी नहीं घबराये। वे पूरी तरह आत्मविश्वास से भरे थे। आमतौर पर लोग प्लाज्मा डोनेट करने से हिचकते हैं। लेकिन मेरे लिये ये किसी सौभाग्य से कम नहीं था। मैं किसी बीमार व्यक्ति की सहायता के लिये अस्पताल में था। यही सोच कर मुझे खुशी हो रही थी। प्लाज्मा डोनेट कर वापस घर लौट जाने के बाद उन्हें परिजनों द्वारा रोगी की सेहत में सुधार होने का पता चला। वे ये जान कर बेहद खुश हुए और एक तरह का आत्मसंतोष के भाव से भर उठे। गोपाल कहते हैं मुझे नहीं पता मेरा प्लाज्मा किस व्यक्ति को दिया गया। बाद में पता चला कि वे अररिया के ही रहने वाले हैं।
मैं कभी गंवाना नहीं चाहूंगा लोगों की मदद का मौका
गोपाल बताते हैं कि प्लाज्मा दान करने का अवसर मेरे लिये किसी सौभाग्य से कम न था। इस बहाने मेरी जिंदगी किसे के तो काम आई। मैं तो ऐसा कोई मौका कभी भी गंवाना नहीं चाहूंगा। ईश्वर से चाहूंगा कि मुझे ऐसे अवसर बार बार उपलब्ध करायें ताकि अपने जीवन को सही अर्थों में सार्थक बनाया जा सके। आदमी का तो काम ही है लोगो के काम आना। बिना इस राज को जाने हमारा जीवन कभी सार्थक नहीं हो सकता है।
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