Homeउत्तर प्रदेशदेशस्वास्थ्य

लू से बचाव जरूरी, नहीं तो जान पर बन आती है: डॉ.नंदकिशोर साह

कानपुर(यूपी)जलवायु परिवर्तन और तापमान में बढ़ोतरी से लू अब एक गंभीर मौसमी आपदा बन चुकी है। इसे साइलेंट किलर कहा जाता है। लू से शरीर में पानी की कमी हो जाती है। इसका असर बुजुर्गों, बच्चों, गर्भवती महिलाओं, बीमारों, मजदूरों, झोपड़पट्टी में रहने वालों और बेघर लोगों पर ज्यादा होता है। असंगठित क्षेत्रों में काम करने वाले लोग भी ज्यादा जोखिम में रहते हैं।

उत्तर प्रदेश राज्य आपदा प्रबंधन प्राधिकरण की ओर से कानपुर में हुई कार्यशाला में डॉ.डॉ.नंदकिशोर साह ने बताया कि तेज बुखार, लगातार उल्टी और दस्त लू के लक्षण हैं। ऐसे में गीला तौलिया या गमछा सिर पर रखें। चेहरा भीगी कपड़े से पोंछें। आम का पना, सत्तू का घोल, नारियल पानी, ओआरएस और ग्लूकोज का सेवन करें। प्यास न लगे तब भी पानी पीते रहें। ठंडक देने वाले फल और पेय लें। तेज धूप में बाहर न निकलें। निकलना जरूरी हो तो छाता, गमछा और पानी की बोतल साथ रखें।

बुजुर्गों, बच्चों और गर्भवती महिलाओं का खास ध्यान रखें। बच्चों के पेशाब का रंग गहरा हो तो समझें कि शरीर में पानी की कमी है। उन्हें बार-बार पानी पिलाएं। बच्चों को कभी भी धूप में खड़ी गाड़ी में अकेला न छोड़ें। गाड़ी जल्दी गर्म होकर जानलेवा तापमान पैदा कर सकती है।

खरबूज, तरबूज, ककड़ी, खीरा जैसे मौसमी फल खाएं। बेल, सौंफ, पोदीना, धनिया के शर्बत, छाछ, लस्सी और नींबू पानी पिएं। हल्के रंग के ढीले सूती कपड़े पहनें। सिर को गमछा, टोपी या छतरी से ढकें। हाथों को साबुन और साफ पानी से बार-बार धोएं। कार्यस्थल पर ठंडा पानी उपलब्ध कराएं। मजदूरों को धूप से बचाएं। कठिन काम दिन के ठंडे समय में कराएं। दोपहर 12 से 3 बजे के बीच बाहर न निकलें। इस समय कोई भी भारी काम न करें। नंगे पांव धूप में न जाएं। खाना पकाने के लिए हवादार जगह चुनें। दिन में खाना पकाने से बचें। शराब, चाय, कॉफी और कार्बोनेटेड पेय से दूर रहें। ये शरीर को निर्जलित करते हैं। बासी और ज्यादा प्रोटीन वाला खाना न खाएं। घर के अंदर रहें। घर को ठंडा रखें। पर्दे, शटर और शेड का इस्तेमाल करें। खिड़कियां खुली रखें। निचली मंजिल पर रहने की कोशिश करें। पंखा चलाएं। कपड़े गीले करें। ठंडे पानी से नहाएं। कच्चे आम का पना भी पिएं।

अगर मिचली, गला सूखना, बुखार, बेहोशी या कमजोरी लगे तो तुरंत डॉक्टर को दिखाएं। मवेशियों को भी लू से बचाएं। उन्हें घर के अंदर रखें। बंद आश्रय में न रखें। साफ-सफाई रखें। ताजा पानी दें। पानी में बर्फ डालें। दो बर्तन रखें ताकि एक खत्म हो तो दूसरे से पी सकें। खाना धूप में न रखें। छायादार जगह पर रखें। जहां जानवर हों वहां दिनभर छाया बनी रहे। बेचैनी लगे तो ठंडक देने की कोशिश करें।

सामाजिक और प्रशासनिक स्तर पर भी तैयारी जरूरी है। ग्रामीण इलाकों में छायादार जगहों पर प्याऊ लगाएं। खराब हैंडपंप ठीक कराएं। समूह बैठक कर लोगों को लू से बचाव की जानकारी दें। सभी स्कूलों में पानी और पंखे की व्यवस्था हो। बच्चों को लू से बचने की जानकारी दें। अग्निशमन दल हर समय तैयार रहें। आग लगने पर तुरंत कार्रवाई करें। टूटे बिजली के खंभे ठीक कराएं। गौशालाओं में गायों के लिए पानी, छाया, हरा चारा और भूसे की व्यवस्था हो। बीमार और घायल गायों का इलाज हो। मौसम की जानकारी के लिए अखबार पढ़ें, रेडियो सुनें, टीवी देखें। ग्रामीण इलाकों में लू से बचाव के लिए प्रचार-प्रसार हो। इससे लू से बचा जा सकता है और जोखिम कम किया जा सकता है।