क्राइम बीट बनती जा रही है विधान मंडल की रिपोर्टिंग17वीं विधान का अंतिम सत्र बना अखाड़ा
यादव, राजपूत और भूमिहारों ने सदन को बनाया बंधक
अपने-अपने नेता के सामने बांह चढ़ाते रहे विधायक
वीरेंद्र यादव, वरिष्ठ पत्रकार के कलम से…
बिहार:21 से 25 जुलाई। विधान सभा का मानसून सत्र। सत्रहवीं विधान सभा का विदाई सत्र भी था। हम विधान सभा का विदाई सत्र कह रहे हैं, विधायकों की विदाई की बात नहीं कर रहे हैं। 2005 के विधान सभा चुनाव से विधायकों की पुनरावृत्ति का अध्ययन किया तो यह बात सामने आयी है कि हर विधान सभा के 55-60 फीसदी सदस्य की वापसी होती है। जबकि 40 से 45 फीसदी विधायक विदाई के शिकार हो जाते हैं। विदाई की वजह चुनाव हार जाना या चुनाव से बाहर रह जाना है। चुनाव से बाहर रहने के भी अलग-अलग कारण हैं।
पांच दिवसीय मानसून सत्र में विधायकों पर चुनाव का भूत हावी था। विधायकों की मंशा थी कि कुछ ऐसा करें कि जनता भी वाह-वाह करे और पार्टी नेता भी पीठ थपथपाएं। इस फेर में सदन नेता एवं मुख्यमंत्री नीतीश कुमार और नेता प्रतिपक्ष तेजस्वी यादव के सामने उनके विधायक बांह चढ़ाकर दूसरे पक्ष पर चढ़ जाना चाहते थे। वेल संसदीय मर्यादा की सीमा नहीं, बल्कि सत्ता और विपक्ष के लिए अखाड़ा बना रहा। विपक्ष की ओर से हंगामा करना और वेल में आना प्रचलन में है, लेकिन इस बार सत्ता पक्ष के लोग ही हंगामा में विपक्ष पर भारी पड़ रहे थे। एक समय ऐसा भी आया, जब पूरा ट्रेजरी बेंच ही कोलाहल का अड्डा बन गया था। स्पीकर नंद किशोर यादव के निर्देश के बाद भी हाउस आउट ऑफ कंट्रोल हो गया। उस समय मुख्यमंत्री खुद अपनी सीट पर आसीन थे। स्थिति अनियंत्रित होता देख स्पीकर ने बैठक स्थगित कर दी और नाराज मुद्रा में अपने चैंबर की ओर प्रस्थान कर गये। उन्होंने जाते-जाते कहा कि सत्ता पक्ष का यह आचरण उचित नहीं है।
अब आप सोच रहे होंगे कि आउट ऑफ कंट्रोल और स्थिति अनियंत्रित जैसे पुलिसिया शब्द का इस्तेमाल विधान मंडल की कार्यवाही में क्या जरूरत पड़ गयी। दरअसल विधान सभा का पांच दिन का दृश्य यह बताने के लिए काफी है कि विधायकों के आचरण और पार्टी नेताओं की विवशता ऐसी ही बनी रही तो विधान मंडल की रिपोर्टिंग राजनीति की जगह अपराध यानी क्राईम बीट बन जाएगा। यह चिंता की नहीं, शर्म की बात है। सदन की कार्यवाही के दौरान बिहार को लोकतंत्र की जननी बताने वाले विधायक ही गणतंत्र का चिरहरण करते नहीं थक रहे थे। महाभारत में एक मात्र व्यक्ति चिरहरण की कुचेष्टा कर रहा था, लेकिन बिहार विधान सभा में सत्ता और विपक्ष में बैठा हर एक व्यक्ति लोकतंत्र को निर्वस्त्र कर अठहास कर रहा था। महाभारत में चिरहरण प्रकरण के दौरान कुछ लोग खुद को लज्जित महसूस कर रहे थे। लेकिन विधान सभा में चिरहरण के हर प्रयास पर दोनों पक्ष के अगुआ आनंदित हो रहे थे। हालांकि स्पीकर नंद किशोर यादव हंगामा और उत्पात के बीच विधायी कार्य संपन्न करवाते रहे। विधायक और मंत्रियों के आचरण पर स्पीकर ने कई बार नाराजगी जतायी, लेकिन कोई सुनने को तैयार नहीं होता था।
अगर हम विधायकों की बात करें तो यादव, राजपूत और भूमिहारों ने पांच दिनों तक सदन को बंधक बनाये रखा था। हर बार आग लगाने और घी डालने का काम इन्हीं तीन जाति के विधायकों ने किया। अन्य जाति के विधायक तो हवन कुंड में गोईठा भर डाल रहे थे। एक बात और स्पष्ट हुई कि टेबुल और कुर्सी पलटने की कोशिश में यादव के साथ कोईरी विधायक भी जुटे थे।
पांच दिनों में विधान मंडल की कार्यवाही और हंगामा देश भर में सुर्खियां बनती रहीं। कार्यवाही का सीधा प्रसारण इस अवधारणा के साथ शुरू हुई थी कि विधायक अपने आचरण को मर्यादित और संयमित बनाये रखेंगे। जनता का उन्हें डर होगा। लेकिन हुआ ठीक इसके उलट। अब विधायकों का अमर्यादित और असंयमित हरकत ही सुर्खियां बनती हैं। विधायी कार्य अखबारों की सूचना भर होता है, हंगामा और कुर्सी पलट ही जगह पाती है। एक परंपरा है कि स्पीकर कार्यवाही के दौरान किसी भी शब्द या वाक्यांश को कार्यवाही से हटाने का निर्देश दे सकते हैं। लेकिन जब सीधा प्रसारण हो रहा है तो ऐसी व्यवस्था ही अप्रासंगिक हो गयी है। इस प्रसंग में विधायकों के शब्द या वाक्यांश को हटाये जाने के निर्देश आमतौर पर दिये जाते हैं, लेकिन सत्रहवीं विधान सभा में कम से कम तीन बार मुख्यमंत्री के वक्तव्य को कार्यवाही से हटाने की कार्रवाई की गयी है।
सत्रहवीं विधान सभा अपने अवसान की ओर बढ़ रही है। इसका शेष कार्यकाल अधिकतम 120 दिनों का है। विधायक पूरा पांच साल चुनाव मैदान में ही रहते हैं, लेकिन अगला चार महीना अग्निपथ पर चलने के समान है। पहली चुनौती अपनी पार्टी से फिर टिकट हासिल करना है। इसके बाद जनता को पिछले पांच सालों का हिसाब देना भी है। इस चुनौतियों को पार पाने के लिए हर व्यक्ति के लिए अपनी-अपनी राह और संभावना है। इसी दरम्यान में पार्टियों के बीच गठबंधन का दौर भी चलेगा। कौन सी सीट गठबंधन की भेंट चढ़ जाएगी और कौन सी सीट किसके खाते में जाएगी। अभी सभी खेमों में इसी पर मंथन चल रहा है। राजनीति के गलियारे में उम्मीदों की अंधी यात्रा में शामिल हर व्यक्ति का मंजिल विधान सभा में पहुंचना ही है।