छपरा(बिहार)सारण के महान संत रूपकला जी महाराज बिहार प्रांत के सारण जिला अंतर्गत मढ़ौरा प्रखंड में एक प्रसिद्ध गांव है मुबारकपुर जहाँ देश के महान संत रूपकला जी महाराज का जन्म हुआ था ।बचपन से ही रूपकला जी महाराज का मन आध्यात्मिक चिंतन ,ईश्वर की भक्ति एवम सत्संग में लगा रहता था। इनका जन्म एक कायस्थ परिवार में हुआ था और बचपन में वे पढ़ने में बहुत तेज थे ।परिणामस्वरूप अंग्रेज के जमाने में भी डिप्टी इंस्पेक्टर अर्थात स्कूल के निरीक्षक के पद पर बक्सर में कार्यरत थे।
परंतु इनका अधिकांश समय ईश्वर चिंतन, मनन और भजन में गुजरता रहता था। वे प्रायः ध्यान मग्न हो जाते थे और समाधि की स्थिति में चले जाते थे। ईश्वर में उनकी इतनी निष्ठाऔर तन्मयता थी की भगवान स्वयं उनकी सहायता करने के लिए आते थे। एक बार ऐसा हुआ कि जब वह बक्सर में विद्यालय निरीक्षक के पद पर कार्यरत थे तो पटना में राज्य स्तरीय एक मीटिंग में उनको जाना था। उस समय कोई अंग्रेज अधिकारी राज्य विद्यालय शिक्षा का प्रमुख था। पटना में उसने सभी डिप्टी इंस्पेक्टरों की एक मीटिंग बुलाई।
परंतु रूप काला जी महाराज भगवान की भक्ति में इतने लीन हो गए थे की इनकी ट्रेन छूट गई और वे समय से वहां नहीं पहुंच पाए ।जब बाद में वहां गए तो उस समय मीटिंग खत्म हो गई थी। रूपकला जी महाराज लेट से पहुंचे ।उन्होंने उस अंग्रेज अफसर से क्षमा प्रार्थना मांगी कि वे सही समय पर नहीं आ पाए,तो उल्टे में उस अफसर ने उन्हें डांट लगाया और कहा कि तुम मुझे मूर्ख बना रहे हो? देखो तो यह किसका सिगनेचर है? तुम तो स्वयं यहां बैठे हुए थे और तुमने इस रजिस्टर पर सिग्नेचर भी किया है।
यह बात सुनते हैं रूप कला जी महाराज को बहुत आश्चर्य हुआ और उन्हें समझ में आ गया की वह व्यक्ति जो वहां बैठा था और जिसने रजिस्टर पर सिग्नेचर किया था ,वह कोई और नहीं बल्कि उनके आराध्य भगवान श्रीराम थे , क्योंकि वे तो वहाँ आए ही नहीं थे। उन्हें लगा कि भगवान को मेरे लिए बहुत कष्ट उठाना पड़ा। अतः उसी क्षण संत रूपकला जी महाराज ने अपनी नौकरी से इस्तीफ़ा दे दिया और सोचने लगे की मेरे काम के लिए भगवान स्वयं अयोध्या से मेरे पास आए, उनको इतना कष्ट उठाना पड़ा अयोध्या से आने में, तो क्यों नहीं मैं अयोध्या चला जाऊं ।फिर वे अयोध्या चले गए और वहीं पर आश्रम बनाकर रहने लगे और पूर्ण रूप से भगवान की भक्ति और प्रेम के दीवाने हो गए। वहीं भक्तिप्रवचन करने लगे और भगवान की सेवा करने लगे ।आज भी अयोध्या में नागेश्वर स्थान के बगल में रूप कला जी महाराज का आश्रम है । इस पंथ के भक्तगण श्री राम को अपना दुल्हा मानते है और हर साल वहाँ राम सीता विवाह का आयोजन होता है।भक्ति भाव में ईश्वर को रिझाने के लिए अपने को पत्नी और भगवान को पति मानते हैं ।
भक्ति परंपरा में बहुत से ऐसे कवि हुए हैं जिन्होंने ईश्वर की आराधना अलग अलग तरीके से की हैं। संत कबीर दास ने निर्गुण भाव से ईश्वर को व्यक्त किया है ।सूरदास ने भगवान की आराधना वात्सल्य भाव से किया है। मीराबाई ने ईश्वर की आराधना माधुर्य भाव में किया है और संत कवि तुलसीदास ने ईश्वर का गुणगान एक भक्त के रूप में किया है। इसी प्रकार सारण प्रमंडल के अंतर्गत गोपालगंज जिला अंतर्गत तेरूवां मठ है जहां रूपकला जी महाराज के पहले एक-दूसरे महान संत कवि लक्ष्मी सखी जी महाराज का समाधि स्थल है जिनकी चार प्रसिद्ध महान भोजपुरी भाषा में ग्रंथ हैं १.अमर सीढ़ी २.अमर कहानी ३.अमर विलास ४.अमर फरास। इन चारों महान ग्रंथों के माध्यम से संत लक्ष्मी सखी जी महाराज ने भी ईश्वर की आराधना पति के रूप में किया है,अर्थात भगवान स्वयं पति हैं और भक्त पत्नी है। उन्होंने अपने हर पद के अंत में लिखा है ” लक्ष्मी सखी के सुन्दर पियवा”।रूपकला जी महाराज का जीवन और दर्शन बहुत हद तक इसी परंपरा से मिलता जुलता है। इनका साहित्य भोजपुरी और हिन्दी भाषा का एक धरोहर है जिसको अयोध्या के आश्रम में देखा जा सकता है। गत वर्ष मैं वहां गया था।अपने महान रचनाओं के माध्यम से संत कवि रूपकला जी महाराज ने ईश्वर की बहुत ही सुंदर व्याख्या प्रस्तुत की है जो कला के धागे में बुनकर व्यक्त हुआ है।
आज मुझे रूपकला जी महाराज के गृह स्थान मुबारकपुर जाने का दैविक सौभाग्य प्राप्त हुआ।इस पुनीत कार्य में मेरा सहयोग दिया बगल के गांव के मेरे शोधार्थी डॉ चंदन कुमार राकेश, मेरे विद्यार्थी राजीव कुमार चौबे,इस गांव के रहने वाले फिलोसॉफी के सेवानिवृत्त व्याख्याता श्री सरोज कुमार, अंग्रेजी व्याख्याता श्री जयनाथ राय , पूर्व प्रमुख श्री संजय सिंह तथा अन्य ग्रामीण भक्त जन।
लेखक:प्रो. डॉ अमरनाथ प्रसाद
अंग्रेजी विभागाध्यक्ष
जगदम महाविद्यालय ,छपरा, बिहार
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