कालाजार से बचाव को 69987 घरों में हुआ छिड़काव
सिवान:जिले में कालाजार से बचाव को चल रहे छिड़काव अभियान का विभागीय अधिकारियों ने औचक निरीक्षण किया। गोरेयाकोठी प्रखंड के सिसई गांव में अधिकारियों की टीम ने घर-घर जाकर छिड़काव की स्थिति देखी। लोगों को बताया गया कि नमी और अंधेरे वाली जगहों पर बालू मक्खियां पनपती हैं। इन्हीं से कालाजार फैलता है। यह बीमारी एक व्यक्ति से दूसरे में भी फैल सकती है। इलाज संभव है, लेकिन जागरूकता जरूरी है।

जिला वेक्टर जनित रोग नियंत्रण पदाधिकारी डॉ ओम प्रकाश लाल ने बताया कि दरौली, आंदर और हसनपुरा को छोड़कर बाकी 16 प्रखंडों के 135 गांवों में छिड़काव अभियान चल रहा है। 26 टीमों को घर-घर जाकर सिंथेटिक पैराथायराइड दवा का छिड़काव करने की जिम्मेदारी दी गई है। भगवानपुर हाट प्रखंड के माघर और रतौली गांवों में सैकड़ों घरों का निरीक्षण किया गया। जहां पिछले तीन सालों में कालाजार के मरीज मिले थे, वहां विशेष ध्यान दिया जा रहा है।

जिला वेक्टर जनित रोग सलाहकार नीरज कुमार सिंह ने बताया कि मार्च से शुरू हुआ छिड़काव अभियान अब अंतिम चरण में है। पांच मई तक 135 लक्षित गांवों के 87395 घरों में से 109 गांवों के 69987 घरों में छिड़काव हो चुका है। पहला चरण 20 मई तक चलेगा। दूसरा चरण जून और जुलाई में होगा। गोरेयाकोठी और भगवानपुर हाट के कई गांवों में टीम ने दौरा कर कार्य का मूल्यांकन किया है।

फिलहाल जिले में विसरल लीशमैनियासिस (वीएल) के 7 और पोस्ट कालाजार डरमल लिश्मैनियासिस (पीकेडीएल) के 8 मरीजों का इलाज चल रहा है। निरीक्षण के दौरान डॉ ओम प्रकाश लाल, नीरज कुमार सिंह, विकास कुमार, पीरामल स्वास्थ्य के सोनू सिंह सहित स्वास्थ्य विभाग के कई अधिकारी मौजूद रहे।

कालाजार के लक्षणों में दो सप्ताह से अधिक बुखार, पेट बढ़ना, भूख न लगना, उल्टी और त्वचा का रंग काला होना शामिल है। ऐसे मरीजों को वीएल श्रेणी में रखा जाता है। इलाज के बाद भी सावधानी जरूरी है। देर से इलाज कराने पर हाथ, पैर और पेट की त्वचा काली हो जाती है। इसे पीकेडीएल कहा जाता है। यह त्वचा रोग है जो कालाजार के बाद होता है। जिले के सभी स्वास्थ्य केंद्रों में इसका इलाज संभव है।

