टीबी होने पर घबराने की जगह नजदीकी अस्पताल में अपना इलाज कराने की है जरूरत
नियमित दवाओं के सेवन से बहुत कम समय में टीबी से निजात पाना संभव
अररिया(बिहार)टीबी एक गंभीर संक्रामक बीमारी है। लिहाजा सरकारी स्तर पर रोग की जांच से इलाज तक का मुफ्त इंतजाम किया गया है। इलाज की सुविधा सभी सरकारी चिकित्सा संस्थानों में उपलब्ध है। इसलिये किसी भी व्यक्ति को टीबी से जुड़ी शिकायत होने पर घबराने की जगह नजदीकी अस्पताल पहुंच कर अपनी जांच व इलाज कराने की जरूरत है। मिलिनियम डेवलपमेंट गोल के तहत वर्ष 2025 तक देश को टीबी मुक्त करने का लक्ष्य निर्धारित है। इसे लेकर सरकार विभिन्न स्तरों पर प्रयासरत है। टीबी की जांच व इसका इलाज ही नहीं कई स्तरों पर टीबी मरीजों को जरूरी मदद उपलब्ध कराने वाले लोगों को निर्धारित प्रोत्साहन राशि का भुगतान किया जा रहा है।
रोग के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये होता निक्षय दिवस का आयोजन:
टीबी रोग के उन्मूलन को लेकर किये जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए जिला संचारी रोग पदाधिकारी डॉ वाईपी सिंह ने कहा हर माह के दूसरे सोमवार को जिले के सभी चिकित्सा केंद्र व ग्रामीण इलाकों में निक्षय दिवस का आयोजन किया जाता है। इसका मूल उद्देश्य लोगों को रोग के प्रति जागरूक करना है। इस दौरान लोगों को टीबी रोग के लक्षण, इसके उपचार के साथ-साथ संभावित मरीजों को नजदीकी चिकित्सा केंद्र में जांच के लिये प्रेरित किया जाता है। निक्षय योजना के तहत टीबी रोगियों को पोषण युक्त आहार के सेवन के लिये पांच सौ रुपये प्रति माह उपलब्ध कराने का प्रावधान है। इतना ही नहीं टीबी रोगियों को दवा सेवन में जरूरी मदद उपलब्ध कराने वाले को दवा का पूरा डोज छह महीना तक देने के लिये 1000 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है।
डॉट प्रोवाइटर यानि दवा खिलाने वाले को मिलती है प्रोत्साहन राशि:
टीबी रोगियों से जुड़ी अन्य सुविधाओं की जानकारी देते हुए जिला टीबी व एड्स कोर्डिनेटर दामोदर शर्मा ने कहा कि वैसे प्राइवेट चिकित्सक जो टीबी रोगियों को चिह्नित करते हुए सरकारी अस्पताल में इलाज के लिये प्रेरित करते हैं, उन्हें प्रति रोगी 500 रुपये की प्रोत्साहन राशि दी जाती है। मरीज के पूरी तरह ठीक होने के बाद उन्हें अतिरिक्त 500 रुपये का भुगतान किया जाता है। इतना ही नहीं टीबी के एमडीआर मरीज को इलाज के लिये नोडल डीआर टीबी सेंटर भागलपुर आने-जाने का किराया भी दिया जाता है। एडीआर टीबी रोगियों को निक्षय पोषण योजना के तहत 500 रुपये प्रति माह देने का प्रावधान है। एमडीआर रोगियों को नौ-दस माह तक दवा खिलाने वालों को प्रोत्साहन राशि के रूप में 1000 हजार रुपये व 18 से 21 माह तक दवा खिलाने वाले को पांच हजार रुपये बतौर प्रोत्साहन राशि देने का प्रावधान है। इन्हें डॉट प्रोवाइडर के नाम से जाना जाता है।
रोगियों की खोज के लिए विशेष अभियान संचालित किया जाता:
टीबी रोगियों की खोज के लिये ग्रामीण स्तर पर हर छह माह बाद एसीएफ यानि एक्टिव केस फाइडिंग अभियान का संचालन किया जाता है। जिला टीबी कोर्डिनेटर ने बताया कि इस अभियान में टीबी उन्मूलन की दिशा में काम करने वाले एनजीओ व विभाग के एसटीएस व एसटीआईएस के माध्यम से ग्रामीण इलाकों में सघन अभियान का संचालन कर रोगियों की खोज की जाती है। इस क्रम में चिह्नित रोगियों को उपचार के लिये नजदीकी स्वास्थ्य केंद्र से संपर्क स्थापित करने के लिये प्रेरित व जागरूक किया जाता है।
जिले में लगातार कम हो रहे टीबी के मामले:
बीते कुछ सालों से जिले में टीबी के मामलों में कमी आयी है। सीडीओ डॉ वाईपी सिंह ने बताया कि वर्ष 2019 में जहां जिले में एडीआर टीबी के 76 मामले सामने आये तो 2020 में एमडीआर टीबी के 54 मामले सामने आये हैं। उन्होंने बताया कि वर्ष 2020 में सरकारी चिकित्सा संस्थानों के माध्यम से कुल 1396 टीबी रोगियों की पहचान की गयी, तो प्राइवेट संस्थानों के माध्यम से 613 रोगियों की खोज किये जाने की जानकारी उन्होंने दी।
एमडीआर टीबी के बारे में जानना जरूरी:
सीडीओ डॉ वाईपी सिंह ने बताया कि एमडीआर टीबी सामान्य टीबी की एक गंभीर अवस्था है। एमडीआर यानि मल्टीप्ल ड्रग रेजिस्टेंस टीबी में टीबी उपचार की प्रथम लाइन मेडिसिन बेअसर हो जाती है। यह सामान्य टीबी की तुलना में अधिक गंभीर होता है। इसके उपचार में अधिक समय लग सकता है एवं सही समय में उचित उपचार नहीं मिलने की दशा में रोगी की हालत ख़राब भी हो सकती हैं। एमडीआर होने के पीछे टीबी रोग की सम्पूर्ण ख़ुराक नहीं खाना एवं बिना चिकित्सक की सलाह के दवा खाना जैसे कारण हो सकते हैं।
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