पूर्णिया(बिहार)सामुदायिक स्तर पर कुपोषित और अतिकुपोषित बच्चों की पहचान कर उनके स्वास्थ्य को सुदृढ़ीकरण करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा संवर्धन कार्यक्रम के तहत जिले के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों (सीएचओ) को तीन दिवसीय कार्यशाला के तहत प्रशिक्षण दिया गया। इसके तहत अब ग्रामीण क्षेत्रों में कार्यरत अतिरिक्त प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र और हेल्थ एंड वेलनेस सेंटर के चिकित्सकों को कुपोषित बच्चों की पहचान करते हुए उन्हें समुदाय स्तर पर और अतिकुपोषित बच्चों को प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र एवं जिला पोषण पुनर्वास केंद्र के मध्यम से सुपोषित करने की जानकारी दी गई है। राजकीय चिकित्सा महाविद्यालय एवं अस्पताल (जीएमसीएच) के आरटीपीसीआर केंद्र में आयोजित कार्यशाला में यूनिसेफ राज्य पोषण सलाहकार द्वारा सभी अधिकारियों को कुपोषित बच्चों की समय पर पहचान करते हुए उन्हें आवश्यकता अनुरूप चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने की जानकारी दी गई। कार्यशाला में सिविल सर्जन डॉ. अभय प्रकाश चौधरी द्वारा सभी सीएचओ को निर्देशित करते हुए कहा गया कि अतिकुपोषित और कुपोषित बच्चों की पहचान अतिआवश्यक है। सही समय से समुदाय स्तर पर ऐसे बच्चों की पहचान कर उन्हें स्वस्थ रखने के लिए सभी को संवर्धन कार्यक्रम के द्वारा प्रशिक्षण दिया जा रहा है। अब समुदाय स्तर पर ऐसे बच्चों को चिकित्सकीय सहायता प्रदान की जाएगी। जिससे कि कुपोषण के आधार पर शिशु मृत्यु को रोका जा सके। कार्यशाला में जिला स्वास्थ्य प्रबंधक सोरेंद्र कुमार दास, जिला कार्यक्रम समन्यवक डॉ सुधांशु शेखर, यूनिसेफ राज्य पोषण सलाहकार गगन गौतम, यूनिसेफ जिला रिसोर्स पर्सन कमल किशोर, आरपीसीएसी पोषण कन्सल्टेंट निधि भारती सहित सभी प्रखंड के समुदाय स्वास्थ्य अधिकारी उपस्थित रहे।
अब पूरे जिले में चलाया जाएगा संवर्धन कार्यक्रम :
जिला कार्यक्रम प्रबंधक सोरेंद्र कुमार दास ने बताया कि कुपोषित बच्चों को सुपोषित करने के लिए यूनिसेफ द्वारा समय- समय पर संवर्धन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। दिसंबर 2018 से संवर्धन कार्यक्रम पूर्णिया जिले के के.नगर प्रखंड में पायलट प्रोजेक्ट के रूप में चलाया जा रहा था। इसकी सफलता को देखते हुए 2020 में राज्य के पांच जिलों (अररिया, कटिहार, बेगूसराय, सीतामढ़ी और शेखपुरा) के कुछ प्रखंडों में चलाया गया। सभी जगह इस कार्यक्रम के सफल संयोजन को देखते हुए इसे पूरे राज्य में सभी जिलों में चलाया जाएगा। इसकी शुरुआत भी पूर्णिया जिले सें की गयी है। यहां के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को इसके लिए प्रशिक्षित किया जा रहा है। जिससे कि जिले के ग्रामीण क्षेत्र तक कुपोषित बच्चों की पहचान कर उनका इलाज उपलब्ध कराया जा सके।
वजन, लंबाई व ऊंचाई के आधार पर होती है कुपोषित बच्चों की पहचान :
जिला कार्यक्रम समन्यवक डॉ. सुधांशु शेखर ने बताया कि जन्म के बाद से ही नवजात शिशुओं का सही देखभाल आवश्यक है। ऐसा नहीं होने पर बच्चे कुपोषण का शिकार हो जाते हैं। कुपोषित बच्चों की समय पर पहचान कर उन्हें आवश्यक चिकित्सकीय सहायता प्रदान करने के लिए स्वास्थ्य विभाग द्वारा यूनिसेफ के सहयोग से संवर्धन कार्यक्रम चलाया जाता है। इसके तहत नवजात शिशुओं का जन्म के साथ वजन लंबाई व ऊंचाई के आधार पर उनके पोषण स्थिति की पहचान की जाती है। सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्रों द्वारा सही समय से ऐसे बच्चों की पहचान करते हुए उन्हें चिकित्सकीय सहायता प्रदान की जा सकती है। इसके लिए सभी प्रखंड के सभी सामुदायिक स्वास्थ्य अधिकारियों को प्रशिक्षित किया गया है जिससे कि ज्यादा से ज्यादा कुपोषित बच्चों को सुपोषित किया जा सके।
दो स्तर से कुपोषित बच्चों का हो सकता है इलाज :
यूनिसेफ जिला रिसोर्स पर्सन कमल किशोर ने बताया कि कुपोषित बच्चों की समय से पहचान कर उनका इलाज दो स्तर पर किया जा सकता है। ऐसे कुपोषित बच्चे जिन्हें केवल शारीरिक कमजोरी है लेकिन चिकित्सकीय समस्या नहीं है संवर्धन कार्यक्रम के तहत उनका इलाज समुदाय स्तर पर संचालित टीकाकरण केंद्र, आंगनबाड़ी केंद्र में आवश्यक जानकारी और चिकित्सकीय सहायता प्रदान कर किया जा सकता है। लेकिन जो बच्चे अतिकुपोषित पाए जाते हैं उसे चिकित्सक द्वारा देखरेख कर इलाज कराया जाता है। ऐसे बच्चों को दोनों पैरों में गड्ढे पड़ने वाले सूजन (इडिमा), भूख लगने की कमी के साथ अन्य चिकित्सकीय जटिलता पाई जाती है। ऐसे बच्चों को बेहतर इलाज के लिए प्राथमिक स्वास्थ्य केन्द्र या पोषण पुनर्वास केंद्र में चिकित्सकीय निगरानी में रखा जाता है। ऐसे बच्चों को चिह्नित करते हुए उन्हें समय पर इलाज उपलब्ध कराने के लिए सीएचओ को प्रशिक्षित किया जा रहा है जिससे कि कुपोषित बच्चों की मृत्यु को रोका जा सके।
सामान्य बच्चों की तुलना में अतिकुपोषित बच्चा मृत्यु दर नौ गुना अधिक :
आरपीसीएसी पोषण कन्सल्टेंट निधि भारती ने बताया कि सामान्य बच्चों की तुलना में गंभीर अतिकुपोषित बच्चों की मृत्यु का खतरा नौ गुना अधिक होता है। 100 में 80-85 प्रतिशत ऐसे कुपोषित बच्चे पाए जाते हैं जिनका चिकित्सकीय सहायता समुदाय स्तर पर किया जा सकता है। 10-15 प्रतिशत बच्चों को ही पोषण पुनर्वास केंद्र भेजने की जरूरत होती है। ऐसे बच्चों की समय से पहचान कर उनका इलाज करने से कुपोषण के कारण होने वाले बच्चों की मृत्यु को खत्म किया जा सकता है।
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