कोरोना काल में व्यक्तिगत साफ-सफाई ही नहीं मास्क व सोशल डिस्टैंस के प्रति भी सतर्क हैं बच्चे
अररिया(बिहार)कोरोना संक्रमण काल में छोटे उम्र के बच्चे खासा प्रभावित हुए हैं.कोरोना संक्रमण की संभावनाओं को देखते हुए उनके स्कूल व कोचिंग संस्थानों में अब तक ताला जड़ा हुआ है. तो लॉकडाउन की लंबी अवधि से लेकर अब तक उनकी व्यक्तिगत दिनचर्या भी प्रभावित है. बच्चे अधिकांश समयों तक अपने घरों में कैद रहने के लिये मजबूर हैं. तो बाहर निकलने पर भी उन्हें संक्रमण से बचाव संबंधी विभिन्न उपायों पर अमल करने के लिये विवश होना पड़ रहा है. अलग बात है कि कोरोना संक्रमण को लेकर छोटे उम्र के बच्चे भी खासा जागरूक व सतर्क हैं. इसमें कितने तो ऐसे हैं जिन्होंने व्यक्तिगत साफ-सफाई व बचाव संबंधी अन्य उपायों को अपने जीवन में शुमार करते हुए इस वैश्विक महामारी को मात देने की मुहिम में जुटे हैं.
हमें अब नहीं लगता कोरोना से डर:
बच्चे अपनी दैनिक आदतों में बदलाव के साथ-साथ अपने व्यवहार में जरूरी बदलाव लाकर कोरोना संक्रमण चैन को तोड़ने में अपनी मजबूत भागीदारी निभा रहे हैं. सातवीं कक्षा की छात्रा कोमल ने बताया कि शुरूआती दौर में इस महामारी को लेकर मन में कई भ्रांतियां थी. संक्रमण के खतरों को लेकर एक तरह का डर हमेशा परेशान करता रहता था. ऐसे मुश्किल दौर में मम्मी-पापा व परिवार के अन्य बुजुर्गों का भरपूर साथ मिला. उन्होंने समझाया कि कोरोना भी सर्दी-खांसी व अन्य फ्लू जैसी बीमारियों की तरह ही है. मास्क के नियमित उपयोग, व्यक्तिगत साफ-सफाई का विशेष ध्यान और लोगों से मेल-जोल के दौरान आपसी दूरी व स्वस्थ जीवन शैली के साथ-साथ नियमित दिनचर्या के माध्यम से इससे अपना व अपने जैसे अन्य लोगों का बचाव किया जा सकता है. हमने इन चीजों का अपनी दैनिक जीवन में शुमार किया. शुरू-शुरू में थोड़ी परेशानी हुई लेकिन बीतते समय के साथ ये बदलाव हमारे दैनिक जीवन में अच्छी तरह शामिल हो चुका है. अब हमें कोरोना से डर नहीं लगता है.
दादी मां की कहानियों को सुनकर आया मजा:
कक्षा पांच की छात्रा ब्यूटी, खुशी, तितली सहित अन्य ने बताया कि लॉकडाउन के दौरान मम्मी-पापा व अन्य परिजनों के साथ काफी व्यक्त बिताने का मौका मिला. जो इससे पहले शायद ही कभी संभव हो पाया था. इस दौरान काफी समय घर पर बिताना होता था. तो इस दौरान घर के बड़ों से काफी कुछ सीखने का मौका मिला. ड्राइिंग, पेंटिंग में बहुत रूचि थी. तो बड़े भाई बहनों ने इसमें काफी कुछ सीखाया. मोबाइल टीबी से मन उब जाने के बाद दादी मां के किस्से सुनने में भी काफी मजा आया.
खाना देखते ही मन में आता है हाथ धोने का ख्याल:
कक्षा पांच के आयुष,अर्णव व तुषार बताते हैं कि अब वे चॉकलेट, ट्रॉफी के लिये जिद नहीं करते, बाजार में फास्ट-फूड की दुकान देखकर भी अब उनका मन नहीं ललचाता. जानता हूं कि बाजारू चीज एक तो पौष्टिकता के लिहाज से कमतर होते हैं. तो दूसरा यहां साफ-सफाई का ध्यान रखना मुश्किल होता है. इसलिये अब हम घर पर बने खानों को रूचि से खाते हैं. पहले दूध पीने व फल व हरी सब्जी खाने को लेकर हर दिन मम्मी को जोर जबरदस्ती करनी पड़ती थी. लेकिन संक्रमण काल में हमने भी इन चीजों के महत्व को समझ कर अपने दैनिक खान-पान में इसे शामिल कर लिया है. अब गलती से भी बिना हाथ थोये खाना खाने की आदतें खत्म हो गयी हैं. खाना सामने आते ही पहले हाथ धोने का ख्याल मन में आ जाता है. हम समझ चुके हैं अपनी आदतों में बदलाव लाकर ही संक्रमण के खतरों से बचा जा सकता है.
कोरोना को मात देने के लिये व्यवहार में बदलाव जरूरी:
अब तक ये तथ्य पूरी तरह साबित हो चुके हैं कि कोरोना संक्रमण के खतरों से सख्ती पूर्वक निपटने के लिये हमें अपने व्यवहार में मामूली तब्दीली लानी होगी. जैसे हमें एक दूसरे से मेल-जोल के वक्त आपसी दूरी का ध्यान रखना होगा, बिना मास्क पहने घर से बाहर निकलने से परहेज करना होगा. तो व्यक्तिगत साफ-सफाई, पौष्टिक आहार का सेवन व नियमित अंतराल पर अपने हाथों की सफाई पर हमें विशेष ध्यान देने की जरूरत है. संक्रमण काल में हमने इससे जुड़ी अपनी आदतें बदली है. आम लोगों को भी इसके प्रति जागरूक होकर अपनी आदतों में बदलाव को लेकर साकारात्मक रवैया दिखाना होगा. ताकि हम इस वैश्विक महामारी को करारी शिकस्त दे सकें.
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