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विश्व टीबी दिवस पर कार्यशाला का आयोजन, टीबी को जड़ से मिटाने का लिया गया संकल्प


टीबी के मरीज़ों की खोजी अभियान में ग्रामीण चिकित्सकों की भूमिका बेहद खास
रोगमुक्त मरीजों के 90 प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करने में एसटीएस की भूमिका महत्वपूर्ण

पूर्णिया(बिहार)2025 तक भारत से टीबी को जड़ से खत्म करने के लिए स्वास्थ्य कर्मी व निजी क्षेत्र में कार्य करने वाले एक साथ आएंगे और सभी का सहयोग मिलेगा, तभी “टीबी हारेगा- देश जीतेगा” की सार्थकता साबित होगी। सरकारी अस्पतालों में रैपिड मॉलिक्यूलर टेस्ट के माध्यम से निःशुल्क परीक्षण को बढ़ावा देने के लिए स्वास्थ्य विभाग प्रतिबद्ध है। साथ ही टीबी मरीजों को निःशुल्क उपचार, उच्च गुणवत्ता वाली दवाएं, वित्तीय और पोषण से संबंधित सहायता और गैर सरकारी एजेंसियों और निजी क्षेत्र की सहभागिता से इस प्रयास को और तेज करने के लिए स्वास्थ्य विभाग से जुड़े कर्मियों की भूमिका ज्यादा रहती है । हमलोगों के प्रयास से हमारा जिला ही नहीं बल्कि राज्य व देश के साथ ही विश्व भी टीबी मुक्त हो सकता है हैं। विश्व यक्ष्मा (टीबी) दिवस के अवसर पर आयोजित कार्यक्रम में वक्ताओं ने यह बातें कहीं | आयोजन डीआईओ सभागार में किया गया था। कार्यक्रम के दौरान जीत कार्यक्रम के वरीय फील्ड ऑफिसर रंजीत कुमार व अन्य के द्वारा सिविल सर्जन को मोमेंटो भेंट किया गया। कार्यक्रम में सीएस डॉ एसके वर्मा, सीडीओ डॉ महमद साबिर, डीपीएम ब्रजेश कुमार सिंह, एपिडेमियोलॉजिस्ट नीरज कुमार निराला, एसटीएलएस अरविंद अमर, डीपीएस राजेश शर्मा, डीटीसी एसटीएस अनिलानंद झा, ज़िले के सभी एसटीएस, ग्रामीण चिकित्सक, एलटी व टीबी चैंपियन उपस्थित थे।

महान वैज्ञानिक डॉ रॉबर्ट कोच की याद में मनाया जाता हैं टीबी दिवस:
सिविल सर्जन डॉ संतोष कुमार वर्मा ने कहा महान वैज्ञानिक डॉ रॉबर्ट कोच के द्वारा 139 वर्ष पहले 24 मार्च 1882 को टीबी बीमारी के जीवाणु “माइको बैक्टीरियम ट्यूबरक्लोसिस” की खोज की गई थी। इसे यादगार पल बनाने के लिए पूरे विश्व में विश्व यक्ष्मा दिवस मनाया जाता हैं। विश्व से टीबी जैसी बीमारी को जड़ से मिटाने के लिए जागरूकता लाने के उद्देश्य से संकल्प लिया जाता है । केंद्र सरकार की ओर से राष्ट्रीय टीबी उन्मूलन कार्यक्रम के अंतर्गत देश को वर्ष 2025 तक टीबी मुक्त करने का लक्ष्य रखा गया है। इसे पूरा करने के लिए ही राष्ट्रीय यक्ष्मा उन्मूलन कार्यक्रम चलाया जा रहा है। कहा प्रत्येक महीने विभिन्न प्रखंडों के कम से कम दो पंचायतों में घर-घर जाकर जांच करायी जाए। घर के किसी सदस्य को दो सप्ताह से लगातार खांसी, छाती में दर्द, बुखार जैसी शिकायत हो तो उस व्यक्ति के साथ ही उस घर के सभी सदस्यों को बलगम की जांच सीबीनेट के माध्यम से भी कराना सुनिश्चित किया जाए। ताकि जिले को टीबी मुक्त किया जा सके।

टीबी के मरीज़ों की खोजी अभियान में ग्रामीण चिकित्सकों की भूमिका बेहद खास: सीडीओ
संचारी रोग पदाधिकारी (यक्ष्मा ) डॉ मोहमद साबिर ने बताया राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम के तहत ज़िले के सरकारी अस्पतालों को 2709 मरीज़ों की जांच का लक्ष्य रखा गया था। जिसमें 1948 टीबी के मरीज़ों की जांच की गई । वहीं निजी चिकित्सकों के द्वारा 4064 लक्ष्य को पूरा करते हुए 2631 मरीज़ों की जांच कराई गई है । ज़िले के 90721 मरीज़ों की बलगम की धनात्मक जांच की गई है जिसमें 998 मरीज़ों को संक्रमित पाया गया । वर्ष 2019 में 4453 मरीज़ों का समय से उपचार किया गया जिसमें 3755 मरीज़ दवा खाने के बाद रोगमुक्त हुए हैं । यह बहुत बड़ी सफलता है । अभी तक 1524 मरीज़ों की जांच सीवीनेट के तहत जांच कराई गई है । जिसमें मात्र 42 मरीज ही संक्रमित पाए गए थे। जिसमें 38 मरीज़ों का उपचार समय से किया जा रहा है । हालांकि टीबी के मरीज़ों की संख्या में लगातार कमी आ रही है। इसके साथ ही टीबी प्रभावित मरीजों की मृत्यु दर में भी कमी हो रही है। राष्ट्रीय क्षय उन्मूलन कार्यक्रम (एनटीईपी) के द्वारा ग्रामीण चिकित्सकों के साथ समन्वय स्थापित कर इस अभियान को मजबूत करने के लिए जिला से लेकर प्रखण्ड तक स्वास्थ्य विभाग के अधिकारियों व कर्मियों के सहयोग से रोग मुक्त मरीज़ों के माध्यम से सामुदायिक स्तर पर बैठक आयोजित कर संक्रमित रोगियों से मिलकर उनको समय से दवा खाने की सलाह दी जाएगी ।

रोगमुक्त मरीजों के 90 प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करने में एसटीएस की भूमिका महत्वपूर्ण: डीपीएम
डीपीएम ब्रजेश कुमार सिंह ने कहा विगत वर्ष टीबी से मुक्त हुए मरीज़ों का प्रतिशत 84 था लेकिन अब इसे 90 प्रतिशत करने का लक्ष्य रखा गया है | ताकि जिले को टीबी मुक्त अभियान में जिले को राज्य में उच्च स्थान मिल सके। इसके लिए ज़िले के सभी एसटीएस की भूमिका काफ़ी महत्वपूर्ण होती हैं। क्योंकि टीबी के मरीज़ों की खोज करना व उसकी जांच कराने की जिम्मेदारी एसटीएस की होती है । जब तक जांच नहीं , तब तक मरीज़ों को उचित समय पर दवा का वितरण नहीं किया जा सकता है । ज़िले को टीबी मुक्त बनाने के लिए शत प्रतिशत लक्ष्य को पूरा करना अनिवार्य हैं। तभी इसकी सार्थकता हो सकती हैं अन्यथा नहीं।

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