लेखक:धर्मेंद्र रस्तोगी
छपरा:विश्व प्रसिद्ध हरिहर क्षेत्र सोनपुर मेला, जिसे पहले छत्तर मेला के नाम से जाना जाता था, भारत के इतिहास और संस्कृति का एक महत्वपूर्ण प्रतीक है। गंडक नदी के तट पर स्थित सोनपुर में लगने वाला यह मेला देश के पशु मेलों को एक नई पहचान देने वाला आयोजन रहा है। कार्तिक पूर्णिमा के पवित्र स्नान के बाद शुरू होने वाला यह मेला एशिया का सबसे बड़ा पशु मेला माना जाता है, और इसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई है।
इतिहास के पन्नों से जुड़ी गूंज:
एक समय ऐसा था जब इस मेले में मध्य एशिया से व्यापारी हाथियों, घोड़ों और अन्य पशुओं का व्यापार करने के लिए आते थे। मौर्य साम्राज्य के संस्थापक चन्द्रगुप्त मौर्य, मुगल सम्राट अकबर और 1857 की क्रांति के नायक वीर कुँवर सिंह ने यहां से जंगी हाथियों की खरीदारी की थी। मौर्यकाल से लेकर औपनिवेशिक युग तक, यह मेला सामरिक और आर्थिक गतिविधियों का केंद्र बना रहा। 1803 में, अंग्रेज अधिकारी रॉबर्ट क्लाइव ने यहां घोड़ों के लिए एक बड़ा अस्तबल बनवाया था, जो इस मेले के महत्व को और बढ़ाता है।
संस्कृति और परंपरा का संगम:
सोनपुर मेला केवल व्यापार का केंद्र नहीं, बल्कि सांस्कृतिक गतिविधियों का भी गढ़ रहा है। नौटंकी, नाच और मल्लिका गुलाब बाई जैसी मशहूर कलाकारों के कार्यक्रमों ने इसे मनोरंजन का केंद्र बना दिया। आज भी इस मेले में नौटंकी और लोक कला का आकर्षण लाखों लोगों को खींचता है।
आधुनिकता और परंपरा का अद्भुत मेल:
समय के साथ भले ही मेले की संरचना और प्राथमिकताएं बदली हों, लेकिन इसका ऐतिहासिक महत्व और सांस्कृतिक धरोहर आज भी बरकरार है। सोनपुर मेला न केवल भारत की समृद्ध सांस्कृतिक विरासत को संजोए हुए है, बल्कि नई पीढ़ी को अपनी जड़ों से जोड़ने का माध्यम भी बन रहा है।
सोनपुर का यह मेला एक जीवंत दस्तावेज़ है, जो भारतीय इतिहास, परंपरा और आधुनिकता के अनूठे संगम को दर्शाता है। यह मेला हर साल न केवल पर्यटकों, बल्कि इतिहास और संस्कृति के प्रेमियों के लिए भी एक अद्भुत आकर्षण बनकर सामने आता है।
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