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आलू की फसल को झुलसा रोग से बचाने के लिए किसान मौसम और समय का निगरानी करते रहें:कृषि वैज्ञानिक

भगवानपुर हाट(सीवान)जिले में मौसम में बदलाव और तापमान गिरने से इस समय आलू की फसल में कई तरह के रोग लग जाते हैं। समयानुसार इनका प्रबंधन नहीं किया गया तो आलू की खेती करने वाले किसानों को नुकसान उठाना पड़ सकता है।कृषि विज्ञान केंद्र के वरिष्ठ वैज्ञानिक एवं अध्यक्ष डॉ. अनुराधा रंजन कुमारी ने कहा की बादल होने पर आलू की फसल में फंगस होने का खतरा बढ़ जाता है जो झुलसा रोग का प्रमुख कारण होता है इसलिए किसान भाइयों जैसे ही तापमान में कमी एवं बादल होने लगे तो तुरंत दवाओं का छिड़काव करना चाहिए और इस समय किसानों को चाहिए कि खेत में नमी बनाए रखें और शाम के समय अगर कहीं कोहरा दिखाई दे तो शाम के समय घास फूस इकट्ठा करके आग लगाकर धुआ करना चाहिए।

झुलसा रोग दो तरह के होते हैं अगेती झुलसा और पछेती झुलसा।अगेती झुलसा प्रायः दिसंबर महीने की शुरुआत में लगता है जबकि पछेती झुलसा दिसंबर के अंत से जनवरी के शुरूआत में लगता है। अगेती झुलसा में पत्तियों की सतह पर छोटे-छोटे भूरे रंग के धब्बे बनते हैं। प्रभावित खेत में आलू छोटे व कम बनते हैं पछेती झुलसा आलू के लिए ज्यादा नुकसानदायक होता है । मौसम में बदलाव होने से 4 से 6 दिन में ही फसल बिल्कुल नष्ट हो जाती है पौधों के ऊपर काले-काले चकत्तो के रूप दिखाई देते हैं । दोनों प्रकार की झुलसा बीमारी के प्रबंधन के लिए किसान को मौसम एवं फसल की निगरानी करते रहना चाहिए,मैनकोज़ेब, साईमोक्सनील + मैनकोज़ेब युक्त (0.2%) फफूंदनाशक रसायन को 500 से 1000 लीटर पानी में मिलाकर सुरक्षात्मक छिड़काव करें। यदि आवश्यक हो तो ऊपर बताए गए फफूंदनाशको पुनः 7 से 15 दिन के अंतराल पर छिड़काव दोहराएं।