विश्व की अधिकांश देश में उसकी अपनी एक राष्ट्रभाषा है। जैसे :- चीन में मंदारिन भाषा, सोवियत संघ रूस में रुसी, फ़्रांस में फ्रेंच भाषा, जापान में जापानी भाषा और इंग्लैंड तथा संयुक्त राज्य अमेरिका में अंग्रेजी उनकी राष्ट्रभाषा हैं।
चुकी भारत में हर एक 20 कि.मी. दुरी पे भाषा व्यवहार जीवन शैली खान-पान रहन-सहन आचार विचार बदल जाती है। कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तथा गुजरात से लेकर मिजोरम तक भारत विशाल रूप में भौगोलिक रूप से विस्तृत रूप से फैला हुआ है। जिसमें पाँच सौ से अत्यधिक भाषाएँ, बोली एवं समझी जाती है। जब 16 ई.वी. में ईस्ट इंडिया कम्पनी भारत आई, व्यापार करने के लिए और अपनी संस्कृती भाषा व्यवस्था लेकर आई और उसके बाद धीरे-धीरे भारत में एक मजबूत ब्रिटिश शासन के अधीन एक सामराज्य की नींव रखी तथपश्चात अंग्रेजी का बोल बाला प्रचार-प्रसार शासन व्यवस्था की भाषा तथा भारतीय भाषा की उपेक्षा निरंतर की गई जिसका दुष्परिणाम भारतीय समाज को उठाना पड़ा भारतीय भाषा क्रमश:-हिंदी, उर्दू, जैसी गंगा-जमुनी तहज़ीब की भाषा मृत्यु प्राय: होने लगी।
नन्द लाल सिंह महाविद्यालय में मना हिन्दी दिवस महोत्सव
बड़े-बड़े विद्वानों ने कहाँ है कि किसी समाज की संस्कृति सभ्यता मनुष्यता जीवन शैली को बर्बाद करनी है तो उसकी शिक्षा व्यवस्था में सेंध लगानी होगी वही काम ब्रिटिश शासक ने भारतीय शिक्षा व्यवस्था के साथ किया। भारत के प्राचीन शिक्षा व्यवस्था क्रमश: वैदिक शिक्षा (संस्कृत), वैदिक कालीन शिक्षा (पाली) मुस्लीम शिक्षा (उर्दू, फ़ारसी, अरबी, हिन्दी) जैसी शिक्षा व्यवस्था को ब्रिटिश सरकार नकारते हुए मैकाल्य (अंग्रेजी) की शिक्षा व्यवस्था भारतीयों पर थोप दिया गया जब भारत 15 अगस्त 1947 में स्वतंत्रत हुआ तो भारतीय समाज पर ब्रिटिश कालीन शिक्षा (अंग्रेजी) व्यवस्था 250 साल की गहरी छाप छोड़ चुकी थी जिसका प्रत्यक्ष परिणाम था भारत के दक्षिण के राज्य और पूर्वोत्तर भारत के राज्य स्वतंत्रता के बाद भारत में यह मांगे उठने लगी की भारत की राष्ट्रभाषा हिंदी हो, तब दक्षिण के राज्य तथा पूर्वोत्तर के राज्य से यह आवाज उठने लगी की हम हिंदी को राष्ट्रभाषा नहीं मान सकते परन्तु उत्तर भारत के अधिकांश जनसंख्या हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाने में अडिक रही।
परन्तु भारत की लोकतंत्र की संरचना में हर मनुष्य की हर क्षेत्र की विरोध को मान्यता मिली हुई है जिसके वजह से हिंदी पूर्ण कालीन भारतीय राष्ट्रभाषा नहीं बन सकी परन्तु समय-समय पर यह मांग उठती रहती है कि हिंदी को राष्ट्रभाषा बनाई जाये। अब भारत के शिक्षा व्यवस्था और शासन व्यवस्था में यह बात की कमी महसूस होने लगी की कौन ऐसी भाषा अपनाई जाय जो संम्पूर्ण भारत को आपस में संप्रेषित किया जाए। तब चूँकि भारत की शासन व्यवस्था में अंग्रेजीदा लोग हावी थे जिसके कारण शासन व्यवस्था की और शिक्षा व्यवस्था की अंग्रेजीकरण हो गया। जिसको भारत की दक्षिण राज्य और पूर्वोत्तर राज्य और उत्तर भारत के उच्च स्तरीय लोग सहर्ष रूप से स्वीकार कर लिया जिसका दुष्परिणाम यह हुआ की आज़ादी के 75 साल बाद भी हिंदी तथा उर्दू विषय, साहित्य, अदब, मृत्यु प्राय: होने लगी कहा जाता है की जिसकी समाप्ति होने लगती है उसे याद किया जाता है। इसी का परिणाम हैं की हिंदी तथा उर्दू भाषा के लिए प्रचार-प्रसार करने के लिय संसद के विशेष अधिनियम के द्वारा पारित हिंदी विषय में 1997 ई. में महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविधालय वर्धा (महाराष्ट्र) तथा सन 1998 ई. में मौलाना आज़ाद नेशनल उर्दू यूनिवर्सिटी (हैदराबाद) तेलंगाना की स्थापना की गयी जो हिंदी, उर्दू भाषा में क्रमश: पुरे भारत वर्ष में इस भाषा का प्रतिनिधित्व कराती है।
कुछ साल की पहले की बात है BBC हिंदी में एक हिंदी विषय पर एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट तैयार की थी जिसमें यह बात उभर कर सामने आई की हिंदी को प्रचार-प्रसार करने के लिए इसे (पेट की भाषा) अर्थात रोजगार उन्मुखी भाषा बनानी होगी। विश्व में मोरिसस तथा फ़िजी में अधिकतर लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते है। यह बात हिंदी भाषा के लिए सुखद है। भारत में एक आंकड़े के तहत 50 कड़ोर से अधिक हिंदी भाषा बोलने एवं समझने वाले लोग निवास करते है ये साकारात्मक तथ्य है। सन् 25 जुलाई 1991 को तत्कालीन वित्त मंत्री डॉ.मनमोहन सिंह तथा तत्कालीन प्रधानमंत्री वि.पी. नरसिम्हा राव की सरकार ने ऐतिहासिक फैसला लिया जो उध्दारीकरण के नाम से पुरे विश्व में भूमंडलीकरण के दौड़ में भारत प्रवेश किया तब जा कर पुरे विश्व को एक नया बाजार भारत मिला चूँकि भारत में अधिकांश लोग हिंदी भाषा का प्रयोग करते है। इसलिए बहु-राष्ट्रीय कम्पनी हिंदी भाषा को ध्यान में रखते हुए अपने उत्पादन को बाजार में उतरा और विश्व भारत में हिंदी का प्रचार-प्रसार इन्टरनेट के माध्यम से रोजगार के माध्यम से उद्योआज भारत में हिंदी पूर्णत: उभरता जा रहा है सकारात्मक तत्थ ये है की दक्षिण के राज्य तथा पूर्वोत्तर के राज्यों में भी हिंदी बोली एवं समझी जाने लगी है। तथा सहर्ष रूप से इन राज्यों में अपनाया जा रहा है। इसमें महत्वपूर्ण भूमिका सोसल मिडिया, न्यूज चैनल, प्रिंट मिडिया, रेडिओ, का सकारात्मक भूमिका है आज हिंदी के क्षेत्र में हिंदी सिनेमा तथा जनसंचार एवं शिक्षा जगत सर्वाधिक रोजगार उन्मुखी केंद्र हैं साथ ही हिंदी के क्षेत्र में अनुवाद प्रौधोगिकी की अतुलनीय योगदान है।
लेखक मोहम्मद आफताब हुसैन (MPhil (translation study) महात्मा गाँधी अंतर्राष्ट्रीय हिंदी विश्वविधालय वर्धा महाराष्ट्र
इस लेख मे जो भी विचार है लेखक का निजी है इसका गौरीकिरण किसी प्रकार का समर्थन नहीं करता है
बेकरी कार्य में रोजगार की असीम संभावनाएं- नेहा दास लक्ष्मीकांत प्रसाद- कटिहारआधुनिकता के दौर में…
2023 में रूस-यूक्रेन युद्ध, इज़राइल-हमास युद्ध और कई अंतरराष्ट्रीय विवादों जैसे संघर्षों में 33,000 से…
भगवानपुर हाट(सीवान)बीडीओ डॉ. कुंदन का तबादला समस्तीपुर के शाहपुर पटोरी के बीडीओ के पद पर…
सीवान(बिहार)जिले के भगवानपुर हाट थाना क्षेत्र के हिलसर पेट्रोल पंप के पास एनएच 331 पर…
On 17th February, the international peace organization, Heavenly Culture, World Peace, Restoration of Light (HWPL),…
20 जनवरी को, विभिन्न अफ्रीकी देशों में अंतर्राष्ट्रीय शांति संगठन, HWPL द्वारा '2024 HWPL अफ्रीका…
Leave a Comment