पत्रकारिता विश्वविद्यालय परिसर में स्थापित होगा ब्रह्मोस मिसाइल का मॉडल
भारत में प्रौद्योगिकी रिसर्च और डिजाइनिंग से बढ़ेगा रिवेन्यू और रोजगार -डॉ. सुधीर कुमार
विज्ञान संचार पत्रकारिता में पाठ्यक्रम शुरू करेगा विश्वविद्यालय -प्रो. के.जी. सुरेश
भोपाल(एमपी)पत्रकारिता विश्वविद्यालय अपने नए परिसर में भारत की आत्मनिर्भरता, आत्मसम्मान और आत्मरक्षा की प्रतीक दुनिया की सबसे घातक मिसाइल ब्रह्मोस का मॉडल स्थापित करेगी, जिससे विद्यार्थी प्रेरणा ले सकें। बहुचर्चित ब्रह्मोस मिसाइल परियोजना के मुख्य कार्यकारी अधिकारी और प्रबंध निदेशक डॉ. सुधीर कुमार मिश्रा ने विश्वविद्यालय को मिसाइल की प्रतिकृति प्रदान करने के संबंध में आश्वस्त किया। कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने घोषणा की कि विज्ञान संचार को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय विज्ञान संचार आधारित एक सर्टिफिकेट कार्यक्रम चलाएगा।
मंगलवार को माखनलाल चतुर्वेदी राष्ट्रीय पत्रकारिता एवं संचार विश्वविद्यालय, राष्ट्रीय विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी संचार परिषद नई दिल्ली एवं म.प्र. विज्ञान एवं प्रौद्योगिकी परिषद के सहयोग से आयोजित राष्ट्रीय विज्ञान दिवस उत्सव के अवसर पर डॉ. मिश्रा ने कहा सुपरसोनिक क्रूज ब्रह्मोस मिसाइल विश्व की सबसे आधुनिक मिसाइल है जो भारत के स्वाभिमान, आत्मनिर्भरता और क्षमता की एक सफल कहानी है। 1001 करोड़ रुपए की पूंजी से प्रारंभ हुई यह ब्रह्मोस परियोजना आज 20 हजार लोगों को रोजगार दे रही है, 40000 करोड़ का टर्नओवर है और 4000 करोड़ टैक्स का सरकार को दे रही है। भारत का स्पेस साइंस और फार्मा सेक्टर तेजी से बढ़ रहा है। रिसर्च और डिजाइनिंग को मिशन बनाकर हम रेवेन्यू और रोजगार दोनों प्राप्त कर सकेंगे। विज्ञान और तकनीक में कड़ी मेहनत से ही भारत आत्मनिर्भर और सशक्त भी हो सकता है। राष्ट्रीय विज्ञान दिवस उत्सव आयोजन में विशेष वक्ता के रूप में सीएसआईआर की निदेशक डॉ. रंजना अग्रवाल ने कहा कि कोविड काल में भारत ने विज्ञान और तकनीक में साहसिक और उल्लेखनीय काम किया है, जो बताता है कि भारत विश्व का नेतृत्व कर सकता है। विशेष अतिथि के रूप में विज्ञान प्रसार भारत सरकार के वैज्ञानिक अरविंद रानाडे ने कहा कि भारतीय समाज में वैज्ञानिक दृष्टि और वैज्ञानिक शोध को बढ़ावा देने की आवश्यकता है, यही हमारे आत्मनिर्भर भारत की कुंजी है। कार्यक्रम की अध्यक्षता कर रहे विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. केजी सुरेश ने कहा कि हमारे देश में जहां विज्ञान की परंपरा रही है वहीं अंधविश्वास ने नुकसान भी पहुंचाया है। अब हमें वैज्ञानिक दृष्टिकोण बनाने की आवश्यकता है। साइंस टेक्नोलॉजी और इनोवेशन का शिक्षा एवं कौशल विकास में महत्वपूर्ण योगदान लिया जा सकता है। प्रो. सुरेश ने कहा कि एक समय हमारे देश में पीपीई किट और वेंटिलेटर नहीं बनते थे, लेकिन कोरोना काल में हमने इस चुनौती का सामना किया और अब ये सामान हम निर्यात कर रहे हैं। हमारी वैक्सीन भी दुनिया के कई देशों में पहुंच रही है जो गर्व की बात है। कुलपति प्रो. सुरेश ने घोषणा की कि विज्ञान पत्रकारिता को बढ़ावा देने के लिए विश्वविद्यालय एक विज्ञान संचार आधारित एक सर्टिफिकेट कार्यक्रम चलाएगा।
विज्ञान दिवस कार्यक्रम का समन्वय डॉ. राकेश पांडे ने किया एवं कार्यक्रम के अंत में कुलसचिव प्रो. अविनाश वाजपेई ने आभार व्यक्त किया। कार्यक्रम में विश्वविद्यालय के शिक्षक एवं अधिकारीगण एवं विद्यार्थी उपस्थित थे। ऑनलाइन रूप से भी विश्वविद्यालय के कई परिसर इस कार्यक्रम से जुड़े रहे।
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