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गर्भवती महिलाओं की मृत्यु दर को कम करने को स्वास्थ्य विभाग उठा रहा बेहतर कदम

सिविल सर्जन की अध्यक्षता में महिला रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की की हुई अहम बैठक 

  • मातृ मृत्यु दर रोकने के लिए हाई रिस्क मामलों की होगी पहचान

पूर्णिया(बिहार)गर्भवती महिला की प्रसव होने के बाद किसी गंभीर बीमारी के कारण या प्रसव होने के 42 दिनों के अंदर मौत हो जाए तो वह मातृ मृत्यु (मैटरनल डेथ) की श्रेणी में आता हैं। गर्भावस्था और प्रसव के दौरान होने वाली जटिलताएं मातृ मृत्यु के लिए अधिक जिम्मेदार होती हैं। इसके अलावा महिलाओं की मृत्यु के पीछे कई कारण भी हो सकते हैं। महिलाएं अगर मातृ मृत्यु के कारणों के संबंध में सही समय पर जानकारी ले और समय रहते अपना इलाज कराए तो मातृ मृत्यु की दर में काफ़ी कमी लाई जा सकती है। मातृ मृत्यु को रोकने के लिए हाई रिस्क गर्भवती महिलाओं की पहचान कर मेडिकल स्पैशलिस्ट से जांच करवाने के लिए भेजना चाहिए। इससे मातृ मृत्यू (मैटरनल डेथ) केसों को रोका जा सकता है। उक्त बातें महिला स्वास्थ्य की राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ सरिता ने मातृत्व मृत्यु रीव्यू एवं महिला स्वास्थ्य सर्विलांस रिस्पांस कैपेसिटी को लेकर आयोजित बैठक में कही। बैठक यूनीसेफ एवं राज्य स्वास्थ्य समिति बिहार पटना के तत्वावधान में होटल सेंटर पॉइंट सभागार में आयोजित हुई। जिसमें सिविल सर्जन डॉ उमेश शर्मा, महिला स्वास्थ्य की राज्य कार्यक्रम पदाधिकारी डॉ सरिता, बिहार राज्य एड्स कॉन्ट्रोल सोसाइटी के एपीडी डॉ अभय प्रसाद, इंडियन मेडिकल एसोसिएशन के जिलाध्यक्ष डॉ मुकेश, ओबीएस एंड गायनो की जिलाध्यक्ष डॉ विभा झा, डॉ सुधांशु, एसीएमओ डॉ एसके वर्मा, डॉ निकहत फ़तिमा, डॉ रेणुका सक्सेना, यूनिसेफ की ओर से स्टेट मेटरनल हेल्थ कंसल्टेंट वाहिद अली, क्षेत्रीय कार्यक्रम प्रबंधक नजमुल होदा, पूर्णिया के यूनीसेफ कंसल्टेंट शिव शेखर आनंद, डॉ पूनम प्रभा, डॉ आभा प्रसाद, डॉ अपर्णा डे सहित कई अन्य महिला रोग विशेषज्ञ आदि मौजूद रहीं।

सिविल सर्जन की अध्यक्षता में निजी महिला रोग विशेषज्ञ चिकित्सकों की हुई अहम बैठक : 

सिविल सर्जन डॉ उमेश शर्मा ने बताया गर्भवती महिलाएं या प्रसव के दौरान होने वाली मृत्यु की बात करें तो लगभग 40 प्रतिशत महिलाओं की मृत्यु प्रसव के दौरान खून व ब्लड प्रेशर की समस्या से होती हैं। हालांकि समय पर इसका उपचार किया जाए तो काफ़ी हद तक इन मृत्यु को रोका जा सकता है,लेकिन इसके लिए जमीनी स्तर पर कार्यरत एएनएम व आशा कार्यकर्ताओं की सबसे ज्यादे जिम्मेदारी बनती है कि गर्भवती महिलाओं का पंजीकरण गर्भ धारण के 12 सप्ताह के अंदर कराना सुनिश्चित करें और इसी बीच ब्लड प्रेशर, खून की कमी, की जांच कम से कम चार बार कराये। अगर खून की कमी होती हैं तो उसे आयरन फोलिक एसिड की गोलियां दे ताकि समय रहते हर तरह की परिस्थितियों से निबटा जाए। गर्भवती महिलाओं की मृत्यु की जांच व सर्वे रिपोर्ट की जानकारी सर्वे फॉर्म को पूरी जानकारी के साथ भर कर प्रतिमाह स्थानीय स्तर पर स्वास्थ्य विभाग को देना सुनिश्चित करें ताकि मौत के कारणों का पता लगाकर भविष्य में ऐसी घटना न हो उसे रोका जा सके। इसके लिए ग्रामीण स्तर पर आशा कार्यकर्ताओं के माध्यम से लोगों को जागरूक करने की जरूरत है। साथ ही लोगों को सरकारी अस्पतालों में प्रसव करवाने से लाभ के संबंध में जागरूक करना होगा, इसके साथ ही साथ सरकारी अस्पतालों में प्रसव कराने आई महिलाओं व परिजनों के साथ अपनापन व हमदर्दी वाला व्यवहार भी रखना होगा।

मातृ मृत्यु को रोकने के लिए हाई रिस्क केसों की होगी पहचान:

फेडरेशन ऑफ़ ऑब्सटेट्रिक एंड गायनोकोलॉजी सोसायटी के जिला सचिव सह पूर्णिया की महिला रोग विशेषज्ञ
डॉ अनुराधा सिंहा ने बताया प्रसव के समय या बाद में लगातार खून का बहना मातृ मृत्यु का मुख्य कारण होता है. क्योंकि खून की मात्रा गर्भवती महिलाओं के शरीर से नुकसान हो जाता है। अमूमन ऐसा देखा जाता है कि जानकारी के अभाव में कुछ वैसी भी महिलाएं होती हैं जो प्रसव से पूर्व किसी तरह की जांच या मनमानी करती है ,खास तौर से उसी तरह की महिलाओं की मृत्यु रक्तस्राव के कारण हो जाती है। दूसरा सबसे प्रमुख कारण यह भी होता हैं कि महिलाओं में असुरक्षित प्रसव आदि से संक्रमण फैलने के कारण मैटरनल डेथ में बढ़ोतरी होती है। इसके पीछे व्यक्तिगत स्वच्छता की जानकारी की कमी देखी जाती हैं। महिलाओं में हाई ब्लड प्रेशर, यूरिन में प्रोटीन, अचानक वजन का बढ़ना, हार्ट की बीमारी, हेपेटाइटिस सहित कई अन्य तरह की बीमारियों से बचना तो है ही साथ ही साथ इसका इलाज भी बहुत जरूरी होता हैं ।अगर ऐसा नही किया जाता हैं तो संस्थागत प्रसव के दौरान या बाद में भी महिलाओं की मौत होती है। जिसे हम मातृ मृत्यु का कारण मानते है। इसे रोकने के लिए हम सभी महिलाओं को इसके प्रति सजग व सावधान होना पड़ेगा।