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शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष: किसान, ग्रामीण और शहरी गरीब समाजिक परिपेक्ष्य में अव्यवहारिक फैसला

देश:पिछले कुछ वर्षो से भारतीय लोकतंत्र अपने बुरे दौर से गुजर रहा है। जिसमे शहरी सोच वाली केंद्र सरकार अपने को महान दिखाने के कुचक्र में लगातार तुगलकी फैसलों से देश को भ्रमित कर रही है।एक वर्ष चले किसान आंदोलन के वजह से तानाशाही तरीके व छद्म उदेश्य से लागू साहुकारों को जमाखोरी – कालाबाजारी की खुली कानुनी अनुमती देने वाले काले कृषि कानुन रदद् होने व प्रधानमंत्री द्वारा मजबुरन किसानों से माफी मांगने से लगातार गिरती लोकप्रियता से डरी हुई, सरकार अब लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 21 वर्ष करके झूठी वाहवाही लूटना चाह रही है । जो भारतीय समाज खास तौर पर किसान व ग्रामीण समाज के लिए समाजिक, कानुनी व वैज्ञानिक तौर पर अव्यहवारिक और गलत फैसला है। जो किसानों और ग्रामीणो के समाजिक जीवन व मान्यताओं के बारे मे शहरी सोच वाली सरकार की अज्ञानता को भी प्रदर्शित करता है।

इस अव्यहवारिक कानुन के बनने से “हर गांव व गली में कुन्ती होगी व सूर्य पुत्र कर्ण पैदा होंगे और झाड़ियों  में नवजात शिशु मिलेंगे जो परिवार, समाज और देश के लिए समाजिक और कानुनी समस्या बनेंगे। आदि काल से मानव समाज में शादीया, कानुन से हटकर समाजिक  मान्यताओं पर आधारित रही है। प्राचीन काल में शायद पहली बार इस्लामिक धर्म में शादी की आयु निर्धारित करने की कोशिश की गई।आधुनिक काल में , सभी देशों ने शादी की कानुनी न्यूनतम आयु निर्धारित करने के लिए कानुन बनाए। दुनिया के विकसित देशों अमेरिका आदि में लड़कियों की शादी की कानुनी न्यूनतम आयु 18 वर्ष निर्धारित की हैं लेकिन माता-पिता की अनुमती से, लड़कियो को 16 वर्ष आयु के बाद भी शादी की कानुनी अनुमती दी गयी है।भारत में भी शारदा एक्ट हिन्दू विवाह कानुन-1955 में शादी की न्यूनतम कानुनी आयु लड़कों के लिए 21 वर्ष और लड़कियों के लिए 18 वर्ष निर्धारित की गई है। उसके बावजूद जनगणना-2001 आकड़ो के अनुसार, देश के कई प्रदेशों में खासतौर पर राजस्थान आदि में लड़कियों की शादी की औसत आयु 17.8 वर्ष और लड़कों की 20.5 वर्ष रही यानि अगर कानुन समाजिक मान्यता अनुसार नहीं बनेंगे तो जनता मजबुरन कानुन तोडेंगी।

राष्ट्रिय परिवार सर्वेक्षण (2015-16) के अनुसार 56 प्रतिशत लड़कियों की शादी 21 वर्ष से पहले हो जाती है, ग्रामीण और शहरी गरीब आबादी में तो ये संख्या 75 प्रतिशत के आसपास है।इसलिए ग्रामीण समाज के लोकप्रिय नेता ताऊ चौधरी देवी लाल कहा करते थे कि ‘लोकलाज से चलता है लोकराज’ और  ग्रामीण समाज पर पश्चयाती  मान्यताओं वाली शहरी नक्सली सोच थोपना बिलकुल राष्ट्रिय हित में नहीं है ।

इसलिये सरकार का शादी की न्यूनतम आयु समान रुप से लड़कों और लड़कियों के लिए 21 वर्ष करने का मौजूदा प्रस्ताव ना तो समाजिक तौर पर व्यहवारिक है नाही विज्ञानिक तौर पर, क्योंकि मानव शरीर विज्ञान के अनुसार लड़किया, लड़कों के मुकाबले 3 वर्ष पहले परिपक्व होती है।इसी लिए दुनिया के सभी देशों ने लड़को और लड़कियों की शादी की न्यूनतम कानुनी आयु में 3 वर्ष का अंतर रखा है। वैसे भी सरकार का लड़कियों की शादी की न्यूनतम आयु 18 से बढाकर 21 वर्ष करने का प्रस्ताव हास्यस्पद व दुसरे भारतीय कानूनों का उल्लंघन है।क्योंकि जब लड़कियों को 18 वर्ष की आयु पर व्यस्क मानकर वोट करने, संपत्ति मे हिस्सा लेने, सरकारी नौकरी व लिव इन रिलेशन में रहने आदि के कानुनी अधिकार है ।तब उन्हे 18 वर्ष की आयु पर शादी की कानुनी अधिकार नहीं देना, ना केवल हास्यस्पद बल्की मानव अधिकरों का खुला उल्लंघन होगा ।

सरकार का यह अव्यहवारिक फैसला उसकी शहरी सोच को भी उजागर करता है क्योंकि शहरों में रोजगार आदि पाने के लिए लड़कियों को अधिक आयु तक पढाई आदि करनी पड़ती है।ज़िससे उनकी शादी अधिक आयु में होती है।जबकि किसान व ग्रामीण समाज ज्यादातर स्वय रोजगार व कृषि आदि पर निर्भर है । इसलिये ग्रामीण समाज में लड़कियों की शादी अधिक आयु में करने का कोई समाजिक, अर्थिक और व्यहवारिक औचित्य नहीं है।वैसे भी लड़कियों में शादी की सर्वोतम आयु 19-20 वर्ष मानी गई है! अमेरिका जैसे विकसित देश में , जहा 20% व्यस्क शादी ही नहीं करते , वहा भी लगभग 10 प्रतिशत शादिया 21 वर्ष की आयु से पहले होती है ।फिर अधिक आयु में शादी से महिलाओं में पहले गर्भ धारण करने व प्रसव सम्बंधी समस्या अक्सर देखने में आती है । शायद इसलिए 20वीं सदी की सबसे सुन्दर  महिलाओं में शुमार राजघराने की राजकुमारियों महारानी गायत्री देवी और ब्रिटिश राजकुमारी लेडी ड़ायना की शादी 20 वर्ष की आयु में ही हुई थी।इसलिए सरकार को चाहिए कि अपनी कमियों को छूपाने के लिए, इस तरह के अव्यहवारिक प्रस्तावों व फैसलों से देश को भ्रमित ना करें और जनता की भलाई के लिए रोजगार, शिक्षा, स्वस्थ आदि सुविधाए बढाने के कार्यक्रमों को लागू करे ज़िससे पश्चयात देशो की तरह लड़किया स्वयं ही शादी देर से करेंगी और देश व समाज की प्रगाति में महिलाओं की भागीदारी भी बढेंगी

(लेख में सभी जानकारी लेखक के निजी विचार है गौरीकिरण इसका किसी भी प्रकार से समर्थन नहीं करता है।

Dr VIRENDER SINGH LATHER,M:9416801607, 0184-2256211
Former Principal Scientist(Genetics & Cytogenetics),
ICAR-Indian Agricultural Research Institute, New Delhi (India)

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