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चैत दशमी को भंडारे के बाद ब्रह्मलीन हुए संत सुरेशानंद

भगवानपुर हाट(सीवान)महना मठ में चैत दशमी पर भंडारे का आयोजन हुआ। संत शिरोमणि सुरेशानंद दास ने हर साल की तरह इस बार भी आयोजन कराया था। सारण प्रमंडल सहित कई जिलों से शैव और वैष्णव संप्रदाय के संत-महात्मा पहुंचे थे। सभी आगंतुकों को रात्रि भंडारे का प्रसाद ग्रहण कराया गया। इसके बाद संत सुरेशानंद दास ब्रह्मलीन हो गए।

उन्होंने आयोजन से पहले ही सूचना दी थी कि यह उनके जीवन का अंतिम दशमी भंडारा होगा। इस सूचना के बाद बड़ी संख्या में अनुयायी और श्रद्धालु पहुंचे थे। प्रसाद ग्रहण कर श्रद्धालु विश्राम के लिए लौटे ही थे कि संत की तबीयत बिगड़ने लगी। श्रद्धालु उन्हें इलाज के लिए मसरख ले गए। वहां से डॉक्टरों ने छपरा सदर अस्पताल रेफर किया। छपरा ले जाते समय ही वे ब्रह्मलीन हो गए।

उनके ब्रह्मलीन होने की खबर मिलते ही अनुयायी अंतिम दर्शन के लिए मठ पहुंचे। मंगलवार को मठ परिसर में बने मंदिर में उनकी समाधि बनाई गई।

संत सुरेशानंद दास का जन्म सारण जिले के जलालपुर प्रखंड के रामनगर चौखड़ा गांव में हुआ था। प्रारंभिक शिक्षा गांव में हुई। इसके बाद राजपूत उच्च विद्यालय छपरा से मैट्रिक, जिला स्कूल सारण से इंटर और राजेंद्र कॉलेज छपरा से अंग्रेजी विषय में बीए और एमए किया। कुछ समय तक जनता बाजार स्थित एसडीएन उच्च विद्यालय में शिक्षक रहे। इसके बाद विवाह हुआ। कुछ वर्षों तक पारिवारिक जीवन बिताया। फिर संन्यास और वैराग्य की ओर बढ़े।

ईश्वर और गुरु की तलाश में 13 वर्षों तक भटकते रहे। इसी दौरान संत शिरोमणि गुरु बलिराम दास से घोंघिया में भेंट हुई। उन्हें ही गुरु मानकर साधना शुरू की।

इस मौके पर संत निर्मल दास, युवा संत नागमणि, विश्वनाथ दास, राजनरायन दास, लक्ष्मण दास, बीरबल दास, जगलाल दास, पुत्र अशोक राय, संतोष राय, जगदीश बैठा, मातवर राय, बृजकिशोर राय, विंदा यादव सहित कई लोग मौजूद रहे।