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योग और भारतीय विधाओं को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए प्रतिबद्ध है हकेवि – प्रो. आर.सी. कुहाड़

हरियाणा महेन्द्र्गढ़

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के कुलपति प्रो.आर.सी.कुहाड़ ने गंगा दशहरा और गायत्री जयंती के पर्व की सभी को शुभकामनाएं देते हुए सोमवार 21 जून को सप्तम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के अवसर पर आयोजित होने वाले विभिन्न आयोजनों में सभी को कोरोना गाइडलाइंस का पालन करते हुए प्रतिभागिता सुनिश्चित करने के लिए प्रेरित किया है। कुलपति ने कहा है कि भारतीय साहित्य और चिंतन पर दृष्टिपात करने पर यह ज्ञात होता है कि यहां गंगा, गीता और गायत्री की त्रिवेणी सदैव बहती रही है। हम भारतीय साहित्य और दर्शन को मानने वाले यह मानते हैं कि गंगा हमारे पापों को धोकर हमें निष्पाप करती है, उसी प्रकार गीता जिसे वेदों और उपनिषदों का सार कहा गया है, हमें योग के माध्यम से योग्य बनाती है, ताकि हम इस भौतिकवादी युग में निष्काम कर्म की शिक्षा प्राप्त कर सकें, और सर्वजन हिताय सर्वजन सुखाय में अपना यह जीवन लगा सकें। उन्होंने कहा कि सभी को विदित है की योग का उद्देश्य मोक्ष की प्राप्ति कराना है। श्रीमद्भगवद्गीता के 18 अध्यायों को देखा जाए तो अर्जुन-विषाद योग से मोक्ष-सन्यास योग की तरफ बढ़ता है, अर्जुन जोकि श्रीकृष्ण जी का भक्त भी है, उन्हें अपने गुरु के रूप में स्वीकार करते हैं और वह कहते हैं कि मैं आपके वचनों का पालन करूंगा। योग इसी कर्तव्य निष्ठा का नाम है। जब बात आती है गायत्री की, गायत्री का अर्थ होता है जो प्राणों का त्राण कर दे।

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जो हमारे प्राणों को मुक्ति दिला दे उसे गायत्री कहा जाता है। आज ऐसा संयोग बना है कि गंगा और गायत्री के साथ ही हम अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस के लिए तैयार हैं। या यह कहा जाए कि यह योग का सबसे बड़ा महाकुंभ है, और वह भी प्रयागराज का। जहां पर गंगा-यमुना और सरस्वती जैसी पवित्र नदियां मिलती हैं और ऐसी जगह को त्रिवेणी कहा जाता है। गोस्वामी तुलसीदास जी ने श्रीरामचरितमानस मे इसी संगम में स्नान करने के लाभों के बारे में वर्णन करते हुए लिखा है कि संगम में स्नान करने से कौआ, हंस बन जाता है। यह गोस्वामी तुलसीदास जी का अलंकारिक वर्णन हो सकता है, लेकिन योग के इस महाकुंभ में यह बात वैज्ञानिक अनुसंधानों से पुष्ट की जा चुकी है कि योग की शरण में आए हुए व्यक्ति अपने त्रय तापों से मुक्त होते हैं। उन्हें आधि-भौतिक, आधि-दैविक आध्यात्मिक तीनों प्रकार के दुखों से मुक्ति मिलती है।

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प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने कहा कि हम सब जानते हैं कि योग की उत्पत्ति का सबसे बड़ा कारण ही दुखों से निवृत्ति और सुख की प्रवृत्ति है। मनुष्य जीवन भर दुखों से दूर रहना चाहता है और सुखों के करीब रहना चाहता है। योग ही उसे रास्ता दिखाता है, इसीलिए भारत सरकार के प्रयासों से आज पूरा विश्व अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को मनाने के लिए तैयार हो रहा है। विश्व में भारतीय संस्कृति की पताका फहराने वाले भारत के महान दार्शनिक स्वामी विवेकानंद जी ने कहा था कि हम भारतीयों की मेरुदंड धर्म और अध्यात्म है, जबकि पाश्चात्य देशों में उनका मेरुदंड राजनीति है। हम भारत का आँकलन पाश्चात्य देशों द्वारा बनाए गए पैमाने पर आँकलन न करें। उनका अपना जीवन जीने का तरीका है, उनके अपने सिद्धांत हैं और हमारे अपने। हमने पूरे विश्व को अपना परिवार माना, वसुधैव कुटुंबकम की भावना से सदैव उसका आदर किया। हमने पूरे विश्व के लोगों को आत्मवत सर्वभूतेषु की भावना से आदर दिया। यही कुछ कारण हैं कि भारतीय दर्शन को समेटे हुए योग जब संयुक्त राष्ट्र संघ के पटल पर रखा गया, तो संयुक्त राष्ट्र संघ और उसके संबंधित देशों ने त्वरित गति से ऐसे स्वीकारोक्ति प्रदान की। यह एक ऐसी विधा है जो पूरे विश्व को स्वास्थ्य, सामंजस्य, शांति और भाईचारा स्थापित करने में बहुत बड़ी भूमिका निभा सकती है।


विश्वविद्यालय कुलपति ने बताया कि हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में योग और भारतीय विधाओं को जनसामान्य तक पहुंचाने के लिए योग विभाग, संस्कृत विभाग और स्वामी दयानंद सरस्वती पीठ की स्थापना की गई है जोकि हमारे प्राचीन साहित्य को आज के परिपेक्ष में वैज्ञानिक तरीके से विद्यार्थियों, शोधार्थियों और सामान्य जनों तक पहुंचाने का कार्य कर रहे हैं। उन्होंने क्षेत्रवासियों, प्रदेशवासियों, देशवासियों और विश्व के सभी लोगों के स्वास्थ्य की कामना के साथ सभी को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस की शुभकामनाएं प्रेषित कीं और हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा आभासी माध्यम से आयोजित सोमवार को आयोजित हो रहे सामान्य योग अभ्यास कार्यक्रम में सम्मिलित होने के लिए आमंत्रित भी किया।

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