Homeदेशधर्मबिहारराजनीति

छठ पर्व : प्रकृति और पर्यावरण का संगम:डॉ. नंदकिशोर साह

पटना:बिहार में महापर्व छठ की धूम है, जो सूर्य देव और छठी मैया की उपासना का प्रतीक है। यह पर्व चार दिनों तक चलता है, जिसमें नहाय-खाय, खरना, संध्या अर्घ्य और उषा अर्घ्य शामिल हैं।छठ पूजा की शुरुआत नहाय-खाय से होती है, जिसमें व्रती महिलाएं सुबह नहा-धोकर भगवान की पूजा-अर्चना करती हैं और फिर कद्दू या घीया की सब्जी, चने की दाल और भात का सेवन करती हैं।

दूसरे दिन खरना होता है, जिसमें व्रती महिलाएं दिनभर निर्जला व्रत रखती हैं और शाम को पूजा के बाद गुड़ से बनी खीर व अन्य प्रसाद ग्रहण करती हैं।तीसरे दिन संध्या अर्घ्य होता है, जिसमें व्रती महिलाएं डूबते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं और अपने परिवार की सुख-समृद्धि और संतति की कामना करती हैं।

चौथे और अंतिम दिन उषा अर्घ्य होता है, जिसमें व्रती महिलाएं उगते सूर्य को अर्घ्य अर्पित करती हैं और अपने परिवार की खुशहाली की कामना करती हैं।छठ पूजा का महत्व सूर्य देव और छठी मैया की उपासना में है, जो जीवन में स्वास्थ्य, समृद्धि और खुशहाली लाता है। यह पर्व प्रकृति और आस्था का संगम है, जो समाज को एक करने वाला व्रत है।

छठ पूजा की विशेषता है इसकी सादगी और पवित्रता, जिसमें व्रती महिलाएं अपने परिवार की सुख-समृद्धि के लिए निर्जला व्रत रखती हैं और सूर्य देव को अर्घ्य अर्पित करती हैं। यह पर्व बिहार, झारखंड, उत्तर प्रदेश और नेपाल में बड़े धूमधाम से मनाया जाता है।मनुष्य तो व्रत करता ही है, परंतु इस पर्व को उत्सव बनाने के लिए मनुष्य ने प्रकृति और पर्यावरण का ही सहारा लिया है। हम सब जानते हैं कि सूरज से ही जीवन है। प्रकृति और पर्यावरण की रक्षा भी सूरज ही करता है। इसलिए कार्तिक मास के शुक्ल पक्ष की चतुर्थी, पंचमी, षष्ठी एवं सप्तमी 4 दिनों तक लगातार चलने वाला छठ पर्व भारत ही नहीं, अब तो इसके बाहर भी काफी धूमधाम से मनाया जाता है।

सभी लोग घाट पर सूर्य के प्रति कृतज्ञता प्रकट करते हैं और उनसे पुनः बहुत कुछ मांगते हैं क्योंकि पूरा जीवन देने वाला तो वही है। सूरज से बेटा के साथ-साथ बेटी भी व्रती महिलाएं मांगती हैं। वह एकमात्र देवता है जिनकी डूबते समय भी पूजा होती है।छठ पर्व सूर्योपासना का यह अनुपम लोकपर्व मुख्य रूप से बिहार, झारखण्ड, पूर्वी उत्तर प्रदेश और नेपाल के तराई क्षेत्रों में मनाया जाता है। यह पर्व बिहार वासियों का सबसे बड़ा पर्व है। ये उनकी संस्कृति है। स्वच्छता का प्रतीक है। इन दिनों लोग अपने घर के प्रत्येक सामान की साफ-सफाई करते हैं। साथ ही सार्वजनिक स्थलों को भी साफ करते हैं।

बिहार और आसपास के राज्यों में सुर्योपासना का पर्व ‘छठ’ धूमधाम और हर्षोल्लास के साथ मनाया जाता है। आध्यात्मिक अर्थों में जब साधक शरीर के अंदर मूलाधार, स्वाधिष्ठान, मनिपूरक, अनाहत और विशुद्ध चक्र का भेदन कर छठे चक्र आज्ञा चक्र में प्रविष्ट करता है तो उसे कई प्रकार की अनुभूतियां होती है और अंत में अंतःसूर्य के पूर्ण प्रकाश का दर्शन होता है।

छठ पर्व में भारतीय जीवन दर्शन भी समाहित है। यह समूचे विश्व को बताता है कि उगते हुये अर्थात उदीयमान सूर्य को तो संपूर्ण जगत प्रणाम करता है लेकिन हम तो उसी श्रद्धा और भक्ति के साथ ससम्मान डूबते हुये अर्थात अस्ताचलगामी सूर्य की भी उपासना और पूजा करते है। सूरज का समय अटल है। यह हमारे भारतीय समाज का आशावादी विश्वास है।

छठ समाज को एक करने वाला व्रत है। सूरज सब से जुड़े हुए हैं इसलिए वह सबको जोड़ देते हैं। जाति-वर्ग, अमीर-गरीब, स्त्री-पुरुष सब मिलकर एक घाट पर एक साथ सूरज को प्रणाम करते हैं। बड़ा ही प्यारा और सुखद अनुभूति होती है। बिना सामूहिक हुए पर्वों का आनंद नहीं लिया जा सकता है।

Leave a Reply