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बच्चों में टीबी की पहचान करना प्रारंभिक अवस्था में ही आवश्यक: सिविल सर्जन

• राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम चलंत चिकित्सा दलों को दिया गया दो दिवसीय प्रशिक्षण
• सदर अस्पताल में प्रशिक्षण के साथ शुरू हुआ कार्यक्रम
• अब टीबी व कुष्ठ मरीजों की पहचान करेंगे चिकित्सक

किशनगंज(बिहार)राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत विद्यालयों में स्वास्थ्य परीक्षण की प्रक्रिया पुनः प्रारंभ की जायेगी।कोरोना काल से राहत मिलने के बाद सभी स्कूल व आंगनबाड़ी केन्द्र खुलने के साथ ही आरबीएसके की टीम को भी स्क्रीनिंग के लिए सक्रिय किया जा रहा है। अब सभी स्कूलों व आंगनबाड़ी केन्द्रों पर बच्चों की स्क्रीनिंग करने का निर्देश जारी कर दिया गया है। स्क्रीनिंग के दायरे को इस बार बढ़ा दिया गया है। अब 0-18 साल के बच्चे में टीबी एवं कुष्ठ रोग तलाशने की जिम्मेवारी भी आरबीएसके टीम को दी गई है। टीबी व कुष्ठ रोग की पहचान, उपचार व अन्य महत्वपूर्ण जानकारी से अवगत कराने के लिए सदर अस्पताल के सभागार में 18 एवं 19 फ़रवरी को दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया था। जिसमें मास्टर ट्रेनर डॉ. ब्रहमदेव शर्मा के द्वारा प्रशिक्षण दिया गया। प्रशिक्षण के दौरान टीबी व कुष्ठ रोग के लक्षण,प्रकार, जांच की विधि व अन्य प्रकार की जानकारी दी गयी।पहले दिन टीबी रोग के बारे में प्रशिक्षण दिया गया।साथ ही आबीएसके के एप के बारे में भी जानकारी दी गयी। ताकि मरीज मिलने पर नाम, पता व अन्य संबंधित जानकारी लोड किया जा सके। अब सभी सरकारी एवं सरकारी सहायता प्राप्त स्कूलों के 9वीं से 12वीं कक्षाओं में छात्र-छात्राओं की कुल क्षमता की 50 प्रतिशत उपस्थिति के साथ विद्यालयों का पुनःसंचालन किया गया है।इसे देखते हुए जिला शिक्षा पदाधिकारी के साथ विमर्श कर स्कूलों में स्वास्थ्य जांच गतिविधिया प्रारंभ करने का निर्देश स्वास्थ्य विभाग की ओर से दिया गया है।
आरबीएसके के तहत 30 रोगों का इलाज किया जाता है:
सिविल सर्जन डॉ. श्री नंदन ने बताया 0 से 6 साल तक के बच्चों की स्क्रीनिंग आंगनबाड़ी केंद्रों पर की जानी है।इससे अधिक उम्र के बच्चों के स्वास्थ्य की जांच उनके स्कूलों में की जाएगी।स्वास्थ्य विभाग द्वारा कार्यक्रम की सफलता के लिए गठित मोबाइल मेडिकल टीम जिले के हर आंगनबाड़ी केंद्रों व स्कूलों में पहुंचती है। टीम में शामिल आयुष चिकित्सक बच्चों की स्वास्थ्य जांच करते हैं।ऐसे में जब सर्दी, खांसी व जाड़ा बुखार जैसी सामान्य बीमारी होगी तब तुरंत बच्चों को दवा दी जाती है. लेकिन बीमारी के गंभीर होने की स्थिति में उसे आवश्यक जांच व इलाज के लिए बड़े अस्पताल रेफर किया जाना है।18 साल तक के बच्चों को किसी प्रकार की गंभीर समस्या होने पर आईजीआईएमएस, एम्स, पीएमसीएच भेजना है।टीम में शामिल एएनएम,बच्चों का वजन,उनकी लंबाई व सिर एवं पैर आदि की माप आदि करती हैं।फॉर्मासिस्ट रजिस्टर में स्क्रीनिंग किये गये बच्चों का ब्योरा तैयार करते हैं।राष्ट्रीय बाल स्वास्थ्य कार्यक्रम के तहत 0 से 18 साल तक के सभी बच्चों को चार मुख्य समस्याओं पर केंद्रित किया जाता है।इनमें डिफेक्ट एट बर्थ, डिफिशिएंसी डिसीज, डेवलपमेंट डिले तथा डिसएबिलिटी आदि शामिल हैं। इससे जुड़ी सभी तरह की बीमारी या विकलांगता को चिह्नित कर इलाज किया जाता है। आरबीएसके के तहत 30 तरह की बीमारियों का इलाज किया जाता है।
प्रारंभिक अवस्था मे ही बच्चों में टीबी की पहचान करना आवश्यक:
सिविल सर्जन डॉ. श्री नंदन ने कहा 0-18 साल के बच्चो में सामान्य रोग की तरह टीबी की समस्या भी फैलती जा रही है। खासकर गरीब वर्ग के बच्चों में इसकी ज्यादा समस्या देखी जा रही है। इस रोग का सबसे बड़ा कारण रहन- सहन और खान-पान में अनियमितता है। बचाव के लिए पोषक तत्व के साथ पानी पर भी ध्यान दें। शरीर में कभी भी पानी की कमी होने न दें। जागरूकता और जानकारी के अभाव में भी लोग शुरुआती दौर में ही इसकी पहचान नहीं कर पाते हैं।जिसके कारण आगे चलकर यह गम्भीर रूप ले लेता है। उन्होंने कहा कि बच्चों में प्रारंभिक अवस्था में ही इसकी पहचान हो जाने से इसपर नियंत्रण में काफी साहूलियत होगी।

अपनी जिम्मेदारियों को निभाएं:
आरबीएसके के जिला समन्वयक डॉ. ब्रहमदेव शर्मा ने बताया कि कोरोना में आरबीएसके टीम का बहुत बड़ा सहयोग रहा है। अब बच्चों में कुष्ठ एवं टीबी के मरीज खोजने की जिम्मेवारी दी जा रही है। कहा प्रशिक्षण के दौरान दी जाने वाली जानकारी को अच्छी तरह समझें और जो भी समस्या लगती है उसका निदान भी प्रशिक्षण के दौरान ही कर लें ताकि स्क्रीनिंग के दौरान कोई परेशानी न हो। इस मौके पर सिविल सर्जन डॉ. श्री नंदन,डीपीएम डॉ मुनाजिम ,जिला गैर संचारी रोग पदाधिकारी डॉ कौशल किशोर विशेषज्ञ समेत अन्य मौजूद थे।