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सूक्ष्मजीवविज्ञान व सूक्ष्मजीवों का ज्ञान व इनके प्रति जागरूकता जरूरी- प्रो. कुहाड़

हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि)दैनिक जीवन में सूक्ष्मजीवविज्ञान एवं सूक्ष्मजीवों के सामाजिक लाभों और इसके महत्व आज के आधुनिक दौर में अहम हो चला है। कोरोना महामारी ने हमें एक बार फिर से इस दिशा में जागरूकता की ओर कदम बढ़ाने के लिए प्रेरित किया है ताकि समूची मानव जाति के कल्याण का मार्ग प्रशस्त हो सके। सूक्ष्मजीवों व सूक्ष्मजीव विज्ञान के प्रति जागरूकता विश्वविद्यालय व स्कूली स्तर पर अध्यनार्थ व साथ-साथ आम जनमानस के लिए जागरूकता अनिवार्य होनी चाहिए। यह विचार प्रो. आर.सी. कुहाड़, कुलपति, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ व अकादमी ऑफ माइक्रोबायोलॉजिकल साइंसेज ऑफ इंडिया (एएमएस) ने एएमआई के 61वें वार्षिक सम्मेलन के अध्यक्षीय सम्बोधन में व्यक्त किए। इस अवसर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. पी.सी. जोशी, डायरेक्टर जनरल, टेरी यूनिवर्सिटी, डॉ. अजय माथुर, एएमआई के अध्यक्ष प्रो. योगेंद्र सिंह, आईएनएससीआर के जनरल सेकरेटरी प्रो. ए.के. पांडा, एएमआई के पूर्व अध्यक्ष और सम्मेलन के सूत्रधार प्रो. रूप लाल, एएमआई की जनरल सेकरेटरी प्रो. नमिता सिंह और डॉ. बनवारी लाल सहित एएमआई के पदाधिकारी व सदस्य ऑनलाइन उपस्थित रहे।


विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने सभी गणमान्य अतिथियों का आभर व्यक्त करते हुए बताया कि इस वर्ष एएमआई कांफ्रेंस का विषय माइक्रोबाइल वर्ल्डः रिसेंट डवलेपमेंट इन हेल्थ, एग्रीकल्चर एंड एंवायरमेंटल साइंसेज है। उन्होंने अपने अध्यक्षीय सम्बोधन में दैनिक जीवन में सूक्ष्मजीवविज्ञान के लाभों और इसके महत्व पर जोर देते हुए कहा कि आउटरीच कार्यक्रमों के माध्यम से सूक्ष्मजीवों की महत्वपूर्ण भूमिका के बारे में विश्वविद्यालय, स्कूली छात्रों और सामान्य मानविकी को संवेदनशील बनाने की आवश्यकता है। यह विषय जीवन के विभिन्न क्षेत्रों में जनोपयोगी है इसलिए इसके प्रति व्यापक जागरूकता जरूरी है। प्रो. कुहाड़ ने कहा कि सूक्ष्मजीव हमारे लिए सहयोगी भी है जैसा कि फसलों के अपशिष्ट से खाद के निर्माण में, दही, योगर्ट, जैविक खाद, फरमेंटेशन, बायो-कम्पोस्ट तथा एंटीबायोटिक में सूक्ष्मजीवों का उपयोग किया जाता है जोकि इसका सकारात्मक पक्ष है। इसी तरह यह आपका सबसे बड़ा दुश्मन भी साबित हो सकता है और कोरोना महामारी इसका साक्षात उदाहरण है। इसलिए यह बेहद आवश्यक है कि हम सूक्ष्मजीव विज्ञान और सूक्ष्मजीवों के साकारात्मक पक्ष को न सिर्फ समझें बल्कि उससे संबंधित शोध व अनुसंधान की दिशा में ऊर्जा के साथ प्रयास करें। कुलपति ने इस अवसर पर सन् 1938 में स्थापित एएमआई के उद्देश्यों पर भी प्रकाश डाला। कुलपति ने बताया कि एसोसिएशन पिछले 45 सालों से इंडियन जर्नल ऑफ माइक्रोबायोलॉजी नामक तिमाही जर्नल का भी प्रकाशन कर रही है।

अभिभाषण में कुलपति ने इस सम्मेलन के आयोजन हेतु समूची आयोजन समिति; टेरी, नई दिल्ली; दिल्ली विश्वविद्यालय; इंडियन एग्रीकल्चर रिसर्च इंस्टीट्यूट; और इंडियन नेटवर्क फॉर सॉयल कांटेमिनेशन एंड रिसर्च का भी आभार व्यक्त किया। उन्होंने कहा कि यह आयोजन सामाजिक व वैज्ञानिक आवश्यकताओं को देखते हुए वर्तमान व भविष्य में सूक्ष्मजीव विज्ञान की आवश्यकता व उसके लाभों को निर्धारित व प्रचारित करने की दिशा में महत्त्वपूर्ण भूमिका अदा करेगा। यह एक ऐसा प्लेटफॉर्म है जो कि युवा शोधार्थियों, प्रतिष्ठित वैज्ञानिकों व शिक्षकों के बीच संवाद व नवाचार को बढ़ावा देने में मददगार साबित हुआ है। कुलपति ने इस अवसर पर समाज व बच्चों पर केंद्रित सांइस एंड सोसायटी नामक विशेष जागरूकता सत्र का भी उल्लेख करते हुए इसके महत्त्व पर प्रकाश डाला।