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मुश्किल दौर में उमेश ने धैर्य व संयम के दम पर दी संक्रमण से जुड़ी चुनौतियों को मात

लोगों तक जरूरी स्वास्थ्य सेवा मुहैया कराने के दौरान हुए संक्रमित, स्वस्थ होकर सेवा में फिर जुटे
संक्रमित होने की तुरंत बाद लोगों से बनायी दूरी, संक्रमण से जुड़ी चिंताओं को लेकर किया उन्हें आगाह

अररिया(बिहार)वैश्विक महामारी के खिलाफ जारी हमारी लड़ाई में हमारे स्वास्थ्य कर्मियों की भूमिका शुरू से ही बेहद महत्वपूर्ण रही है. लगातार संक्रमण के खतरों के बीच काम करते हुए वे खुद भी इसकी चपेट में आये. फिर दृढ़ इच्छाशक्ति व मजबूत हौसलों के दम पर उन्होंने इस महामारी का न सिर्फ बहादुरी से मुकाबला किया बल्कि बहुत जल्द इसे शिकस्त देने में भी वे कामयाब रहे. जो बाद में संक्रमण से जुझ रहे कई अन्य लोगों के लिये एक नजीर बन कर सामने आये. जोकीहाट रेफरल अस्पताल के प्रखंड अनुश्रवण व मूल्यांकन सहायक उमेश कुमार मंडल का नाम भी एक ऐसे ही शख्सियतों में शुमार है.

रोग संबंधी लक्षण नहीं थे, अपनी सेहत के प्रति था आश्वस्त:
जोकीहाट रेफरल अस्पताल के प्रखंड अनुश्रवण व एवं मूल्यांकन सहायक उमेश कुमार मंडल बताते हैं कि उस दौर में उन्हें हर दिन जगह-जगह आयोजित हो रहे जांच शिविर की मोनेटरिंग करनी होती थी. हर एक दिन कई क्वारेंटाइन सेंटर व आइसोलेशन सेंटर पर जाना-आना होता था. तो अस्पताल आने वाले किसी मरीज को कोई समस्या न हो इसके लिये लगातार उनसे रूबरू होना पड़ता था. इससे संक्रमण का खतरा तो हमेशा बना रहता था. ऐसे में एक दिन अपनी जिम्मेदारी समझ कर उन्होंने अपना कोरोना जांच कराया. उमेश बताते हैं कि उन दिनों जांच के लिये सैंपल पटना भेजा जाता था. तो रिपोर्ट आने में भी थोड़ी देरी होती थी. उमेश बताते हैं कि जांच से पूर्व या इसके बाद में उनमें रोग संबंधी किसी तरह का लक्षण उजागर नहीं था. इसलिये वे खुद के सेहतमंद होने को लेकर बेहद आश्वस्त थे.
सूचना पाकर मानो खिसक गयी पांव तले जमीन:
उमेश बताते हैं कि एक दिन ऑफिस जाने के क्रम में उन्हें फोन पर कोरोना पॉजेटिव होने की जानकारी दी गयी. ये सुनते ही मानों पांव तले जमीन खिसक गयी. उमेश कहते हैं कि जानकारी मिलते ही हर तरफ से मायूसी व निराशा मुझे घेरने लगी. घर पर बीबी, ग्यारह महीने के छोटे बच्चे सहित अन्य सगे संबंधियों के स्वास्थ्य संबंधी चिंता से मैं परेशान हो उठा. कुछ देर तक यूं ही स्तब्ध रहने के बाद फिर कहीं जा कर तुंद्रा टूटी. अपने आप को संभाला. घर वालों को फोन पर ही इसकी जानकारी दी. ऑफिस पहुंच कर अपने करीबी अन्य स्वास्थ्य कर्मियों को खुद के संक्रमित होने की जानकारी देते हुए अपना जांच कराने व हम से दूरी बनाये रखने के लिये आगाह किया.
परिचित व शुभचिंतकों ने हौसला बनाये रखने में की मदद:
संक्रमित होने की खबर सुन कर घर वालों का रो-रो कर बुरा हाल था. फोन पर ही उन्हें ढाढस बंधाने का प्रयास करता रहा. इस बीच कई परिचित व शुभचिंतकों के फोन लगातार आ रहे थे. जो मुझे हौसला देने व इस मुश्किल खड़ी से जल्द उबरने के प्रति मुझे आश्वस्त करते रहे. इस बीच मुझे फारबिसगंज स्थित आइसोलेशन सेंटर पहुंचाने के लिये एंबुलेंस पहुंच चुका था. मैं अपने जरूरत का मामूली सामान लेकर आइसोलेशन सेंटर के लिये रवाना हो गया. इस बीच अपने छोटे बच्चे व परिजनों की चिंताएं लगातार परेशान करती रही. लेकिन इन चिंताओं को दरकिनार करते हुए इस मुश्किल दौर का सख्ती से मुकाबला करने का मन मैं बना चुका था.
योगा व बेहतर खान-पान से मिली मदद:
आइसोलेशन सेंटर पर एक-दो दिन तो बड़ी मुश्किल से कटा. दिन का चैन गायब था तो रात की नींद भी हराम हो चुकी थी. मुझे जल्द संक्रमण की चपेट से उबरना था. इसलिये इस दौरान मैं ने लगातार रोग प्रतिरोधक क्षमता बढ़ाने वाले खाद्य पदार्थ के सेवन को तरजीह दी. इसके अलावा मानसिक चिंताओं से उबरने के लिये योग प्राणायाम का सहारा लिया. परिचित व परिवार के लोगों का उत्साहवर्द्धन लगातार प्राप्त होता रहा. लिहाजा आइसोलेशन वार्ड में बिताये गये आठ दिन बीतते देर न हुई. आठ दिन बाद रिपोर्ट निगेटिव आने के बाद मुझे ऐसा लगा जैसे मेरा खोया जहां फिर से मुझे मिल गया हो.