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रिश्‍तों की आत्मीयता के साथ बाप/बेटी के रिश्‍ते के जरिये मानवीय संवेदना को सहेजने वाली फिल्‍म है ‘बाबुल’

बिहार:भोजपुरी सिनेमा में अक्‍सर विलेन के किरदार में नजर आने वाले अवधेश मिश्रा ने एक बार फिर से भोजपुरी दर्शकों के लिए एक शानदार फिल्‍म ‘बाबुल’ लेकर आए हैं, जो भोजपुरी सिनेमा के बारे में लोगों की आम समझ को तोड़ने वाली फिल्‍म है।

फिल्‍म बेहद सहज और संवादपरक है:

जिसकी कल्‍पना कम से कम भोजपुरी फिल्‍म में तो करना ही बड़ी बात होगी। क्‍योंकि जब पूरी भोजपुरी इंडस्‍ट्री लाउड म्‍यूजिक और साधारण कहानी के साथ स्‍टारडम के बल पर चला करती है, वहां अवधेश मिश्रा ने ‘बाबुल’ के जरिये भोजपुरी सिनेमा के कलात्‍मक अंदाज को प्रस्‍तुत किया। तारीफ फिल्‍म के निर्माता रत्‍नाकर कुमार की करनी होगी, जिन्‍होंने इस फिल्‍म का निर्माण किया है। यूं कहें कि रिश्‍तों की प्रगाढ़ता के साथ बाप/बेटी के रिश्‍ते के जरिये मानवीय संवेदना को सहेजने वाली फिल्‍म है ‘बाबुल’

बात अगर फिल्‍म की कहानी की करें तो कहानी एक मजदूर बाप और उनकी दो बेटियों से शुरू होती है। जिसका सपना होता है कि वे अपनी बेटियों की जिंदगी संवारे और उनके सपनों को पूरा करे। फिल्‍म में एक जमींदार भी है, जिसके आतंक से गांव के लोग डरे रहते हैं, लेकिन फिर भी नारायण का किरदार निभा रहे अवधेश मिश्रा अपनी बेटियों की जिंदगी संवारने के लिए हर जद्दोजहद करता है। बात बेटियों की शादी की शुरू होती है। यहां दहेज प्रथा पर भी चोट होता है। सिनेमा आगे बढ़ती है और फिर हो जाता है एक ऐसा हादसा, जहां से कहानी और रोचक हो जाती है। इस हादसे में नारायण की बड़ी बेटी का हाथ चला जाता है। जमींदार किसी पचड़े में पड़ने से बचने के लिए उसे जिंदा जलाने की कोशिश करता है। उसकी बेटी के मंगेतर के पिता भी उससे कन्‍नी काट लेते हैं। फिर जो क्‍लाइमेक्‍स में होता है, उसके लिए आपको फिल्‍म देखनी होगी।

बात अगर अभिनय की करें तो अवधेश मिश्रा, देव सिंह, रोहित सिंह मटरू, नीलम गिरी आदि कलाकार अपने संजीदा अभिनय से फिल्‍म की भूमिकाओं के साथ न्‍याय करते नजर आ रहे हैं। संगीत भी फिल्‍म का नपातुला है। तकनीक के मामले में भी यह सिनेमा काफी उन्‍नत है। यह पूरी तरह से क्‍लास फिल्‍म है, जिसे देखने के बाद लोगों को इससे जुड़ाव महसूस होगा। यह फिल्‍म कल्‍पना से परे है, क्‍योंकि इस कुछ भी थोपने जैसा नहीं है। यह फिल्‍म कोई भी अपने घर परिवार के साथ मिलकर देख सकता है। 14 जनवरी को इस फिल्‍म का वर्ल्‍ड टीवी प्रीमियर ज़ी गंगा पर होगा।
क्या कहते है राष्ट्रीय पुरस्कार से सम्मानित फ़िल्म समीक्षक विनोद अनुपम

राष्‍ट्रीय सम्‍मान पा चुके फिल्‍म समीक्षक विनोद अनुपम ने फिल्‍म देखने के बाद कहा कि बाबुल, अपने आप में खास है। वो इस अर्थ में कि बिहार में आमतौर पर बोली जानी वाली भाषा में बनी है, जो अमूमन प्रकाश झा की फिल्‍मों में दिखा करता था, वो पहली बार भोजपुरी कलाकारों ने दिखाया है। फिल्‍म की खासियत थीम है। भोजपुरी फिल्‍म के नाम पर आमतौर आइटम नंबर, अश्‍लीलता का बोध होता है, उससे अलग हट कर यह मानवीय रिश्‍तों की अच्‍छाईयों को अंडर लाइन करती है यह फिल्‍म। यह अपने समय की खास फिल्‍म हो सकती है। जब रिश्‍तों का निर्वाह आर्थिक और बाजार के दवाब में टूट रहे हैं। दहेज के लिए शादियं टूट रही हैं। इसमें उस सवाल को भी उठाया जा र‍हा है। दुर्घटना में अपाहिज होने के बाद भी लड़का रिश्‍तों को अहमियत देता है। कुछ मिलाकर देखा जाए तो इस फिल्‍म में संबंधों की प्रगाढ़ता दिखती है। इस मायने से यह फिल्‍म खास है और परिवार के इसे देखी जानी चाहिए।

14 जनवरी को होगा ज़ी गंगा पर वर्ल्ड टीवी प्रीमियर
कोरोना की वजह से सिनेमाघरों के बंद हो जाने के कारण इस फ़िल्म 14 जनवरी को ज़ी गंगा वर्ल्ड टीवी प्रीमियर किया जाएगा।