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हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में मनाया गया भारतीय भाषा उत्सव

महेंद्रगढ़:हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय (हकेवि), महेंद्रगढ़ के हिंदी विभाग द्वारा ’भारतीय भाषा उत्सव’ के अवसर पर व्याख्यान एवं भारतीय भाषाओं में काव्यपाठ का आयोजन किया गया। विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. टंकेश्वर कुमार ने अपने शुभकामना संदेश में कहा कि अवश्य ही इस आयोजन के माध्यम से प्रतिभागियों को भारत की समृद्ध भाषाई परम्परा को जानने-समझने का अवसर मिलेगा। कार्यक्रम की शुरुआत में हिंदी विभाग के विभागाध्यक्ष प्रो. बीर पाल सिंह यादव ने बताया कि भारत के पास एक समृद्ध भाषाई विरासत है। इन भारतीय भाषाओं को राष्ट्रीय एकता के लिए एक महान उपकरण के रूप में देखते हुए, देश के विभिन्न राज्यों और केंद्र शासित प्रदेशों के विश्वविद्यालय के विद्यार्थियों को भारतीय भाषाओं के महत्व एवं इनके सीखने के लिए प्रोत्साहित किया। उन्होंने राष्ट्रीय शिक्षा नीति के संदर्भ में समस्त भाषाओं में शिक्षा की व्यवस्था और भाषाई समरसता पर जोर दिया। आयोजन में काव्य पाठ हेतु आकांक्षा ने मैथिली भाषा में, गौतम कुमार मिश्रा व पुनीत ने मगही भाषा में, संगीता ने उड़िया भाषा में, जिगर पटेल ने गुजराती भाषा में, ईशा सिंह ने उर्दू भाषा में, कृष्णा सिंह ने मलयालमी भाषा में, कुलदीप व शोधार्थी सुमन बाला ने राजस्थानी में, यशपाल ने परमल रासो सुनाकर, मुनीश ने पंजाबी में, राकेश जोशी ने पहाड़ी में, बिजाई त्रिपुरा ने नेपाली भाषा में, प्रसून कुमार ने तेलुगु भाषा में, राजकमल मुखर्जी ने बांग्ला भाषा में, अखिलेश कुमार ने भोजपुरी में, शोधार्थी गुरदीप ने हरियाणवी में, तिरु ने तमिल भाषा में अपनी कविताओं, किस्सों, कहानियों को प्रस्तुत किया। कार्यक्रम के मुख्य अतिथि विश्वविद्यालय के शैक्षणिक अधिष्ठाता प्रो. संजीव कुमार ने कहा कि आज के कार्यक्रम ने हमारे देश के सामाजिक ताने-बाने, विविधता में एकता को परिभाषित किया। उन्होंने कहा कि भारतीय भाषाएं, अपनी अंतर्निहित समानताओं के माध्यम से हमें एक साथ बांधने का काम करती हैं। हमारी भारतीय भाषाएँ युगों-युगों से एक-दूसरे के साथ मिलकर, पूरक और पोषित होती रही हैं। ’भाषा सद्भाव’ को मजबूत करने, ’पड़ोसी भाषा’ से प्रेम करने और उसका आनंद लेने की प्रवृत्ति के साथ-साथ सीखने का माहौल विकसित करने की जरूरत है। कार्यक्रम में मंच का संचालन प्रियंका और सौरव ने किया। विभाग के सह आचार्य डॉ. कामराज सिंधु ने इस बात पर जोर दिया कि भाषाएँ समाज के मन और ज्ञान को आकार देती हैं और लोगों को एक साथ लाती हैं। कार्यक्रम के अंत में सह आचार्य डॉ. कमलेश कुमारी ने धन्यवाद ज्ञापित किया।