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यक्ष्मा के नियंत्रण में सरकारी चिकित्सा संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण

यक्ष्मा(टीबी) के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिये एक दिवसीय प्रशिक्षण शिविर का हुआ आयोजन

प्रशिक्षण के दौरान यक्ष्मा को मात दे चुके लोगों ने अपना अनुभव साझा किया

अररिया(बिहार)यक्ष्मा (टीबी) के प्रति लोगों को जागरूक करने के उद्देश्य से बुधवार को जिला यक्ष्मा केंद्र में एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। यक्ष्मा रोग के उन्मूलन की दिशा में कार्यरत संस्था रीच के माध्यम से आयोजित एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम की अध्यक्षता सिविल सर्जन डॉ रूपनारायण कुमार ने की। प्रशिक्षण कार्यक्रम में यक्ष्मा को मात दे चुके जिले भर से आये 30 प्रतिभागियों ने भाग लिया।कार्यक्रम के दौरान लोगों ने यक्ष्मा रोग से जुड़े अपने अनुभव साझा किये। इस दौरान उन्हें विशेषज्ञों द्वारा यक्ष्मा रोग से संबंधित महत्वपूर्ण जानकारी दी गयी। साथ ही यक्ष्मा से निजात पाने के बावजूद स्वास्थ्य संबंधी जटिलताओं से निजात पाने के उपाय सहित इसे लेकर अपने-अपने क्षेत्र में लोगों का जागरूक करने के लिये प्रेरित किया गया।ताकि निर्धारित लक्ष्य के मुताबिक 2025 तक जिले को यक्ष्मा रोग से पूरी तरह मुक्त किया जा सके।प्रशिक्षण कार्यक्रम में सिविल सर्जन डॉ रूपनारायण कुमार सहित जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ योगेंद्र प्रसाद सिंह, जिला यक्ष्मा व एड्स कोर्डिनेटर दामोदर शर्मा, आशुतोष कुमार, नवकांत यादव, पिंकू कुमार साह, मो आसिम, रेहान हसन, नवनीता कुमारी, चंदा कुमारी, शशिभूषण चौधरी, चंदन कुमार सावन सहित अन्य मौजूद थे।

यक्ष्मा को जड़ से खत्म करने के लिये सामूहिक भागीदारी जरूरी:

एक दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए सिविल सर्जन डॉ रूपनारायण कुमार ने कहा कि यक्ष्मा को जड़ से खत्म करने के लिये सामूहिक भागीदारी जरूरी है। इसे लेकर लोगों को जागरूक होने की जरूरत है। यक्ष्मा को जड़ से खत्म करने के लिये सरकारी स्तर पर सभी जरूरी इंतजाम किये गये हैं। सभी सरकारी अस्पतालों में यक्ष्मा के इलाज का नि:शुल्क इंतजाम किया गया है। इसके अलावा यक्ष्मा रोगियों के हितों का ध्यान में रखते हुए सरकार द्वारा कई कल्याणकारी योजनाओं का संचालन किया जा रहा है। यक्ष्मा रोगियों की पहचान से लेकर उनके नि:शुल्क इलाज के साथ-साथ उनके बेहतर पोषण के लिये सरकार पीड़ित लोगों को निक्षय योजना के तहत निर्धारित सहायता राशि उपलब्ध करा रही है। जरूरी है कि रोग के लक्षणों का व्यापक स्तर पर प्रचारित किया जाय। ताकि रोग संबंधी किसी भी तरह का लक्षण उजागर होने पर लोग इसका उचित जांच करायें। ताकि तत्काल उनका इलाज शुरू किया जा सके।

यक्ष्मा के नियंत्रण में सरकारी चिकित्सा संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण:

प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जिला यक्ष्मा पदाधिकारी डॉ योगेंद्र प्रसाद सिंह ने कहा कि यक्ष्मा रोग को नियंत्रित करने के प्रयासों में सरकारी चिकित्सा संस्थानों की भूमिका महत्वपूर्ण है।उन्होंने कहा कि सभी सरकारी चिकित्सा संस्थानों में यक्ष्मा रोग की जांच व इसके समुचित इलाज का इंतजाम सुनिश्चित कराया गया है। लेकिन जानकारी के अभाव में लोग इलाज के लिये प्राइवेट नर्सिंग होम का सहारा लेते हैं।जहां मरीजों के दोहन की बात किसी से छिपी नहीं है।उन्होंने कहा कि लोगों को रोग संबंधी किसी तरह का लक्षण दिखने के तुरंत बाद अपने नजदीकी चिकित्सा संस्थानों में इसकी जांच कराते हुए अपना इलाज शुरू कराना चाहिये। ताकि यक्ष्मा से बचा जा सके।

मरीजों की खोज के लिये होता है विशेष अभियान का संचालन:

जिला यक्ष्मा व एड्स कोर्डिनेटर दामोदर शर्मा ने प्रशिक्षण कार्यक्रम को संबोधित करते हुए कहा कि यक्ष्मा रोगियों की पहचान के लिये छह माह के समय अंतराल पर एसीएफ एक्टिव केस फाइडिंग अभियान का संचालन किया जाता है। इसमें यक्ष्मा उन्मूलन की दिशा में काम करने वाले गैर सरकारी संस्था व विभाग के एसटीएस व एसटीआईएस के माध्यम से ग्रामीण इलाकों का सर्वे कर रोगियों की पहचान सुनिश्चित कराये जाने का प्रयास किया जाता है। उन्होंने यक्ष्मा उन्मूलन को लेकर विभाग द्वारा किये जा रहे प्रयासों की जानकारी देते हुए प्रशिक्षण में शामिल लोगों को अपने स्तर से क्षेत्र के लोगों को इसके प्रति जागरूक करने के लिये प्रेरित किया।