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आईसीडीएस कार्यालय में हुआ दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन

  • सभी सीडीपीओ दी गई शिशुओं के स्वास्थ्य को बेहतर करने की जानकारी
  • कंगारू मदर केयर नियमित स्तनपान में होता है सहायक

कटिहार(बिहार)कमजोर नवजात की पहचान और देखभाल को लेकर जिला आईसीडीएस कार्यालय में दो दिवसीय प्रशिक्षण कार्यक्रम का आयोजन किया गया। प्रशिक्षण कार्यक्रम के पहले दिन 23 दिसंबर को सभी सीडीपीओ को कमजोर नवजात की पहचान के बारे में बताया गया, जबकि दूसरे दिन 24 दिसम्बर को उसकी उचित देखभाल की जानकारी दी गई. आईसीडीएस जिला कार्यक्रम पदाधिकारी बेबी रानी और पोषण अभियान जिला समन्यवक अनमोल गुप्ता द्वारा सभी सीडीपीओ को प्रशिक्षण दिया गया जबकि केयर इंडिया के डीटीओ ऑन राहुल सोनकर व एडीटीएम पिरामल फाउंडेशन द्वारा ट्रेनिंग के दौरान तकनीकी तौर पर सहयोग उपलब्ध कराई गई. प्रशिक्षण कार्यक्रम में सभी प्रखंड की सीडीपीओ उपस्थित रहे.

कमजोर नवजात बच्चों के विशेष देखभाल की दी गई जानकारी :

प्रशिक्षण में जिला कार्यक्रम पदाधिकारी (डीपीओ) बेबी रानी ने बताया कमजोर नवजात की विशेष देखभाल की जरूरत होती है. कोरोना काल में मां की चुनौतियां और बढ़ गयी हैं. कमजोर बच्चे की पहचान सबसे अहम है. ऐसा देखा गया है कि कमजोर नवजात में तापमान की कमी की समस्या रहती है. इससे निजात पाने में कंगारू मदर केयर रामबाण साबित होता है. कंगारू मदर केयर के जरिए मां या घर का कोई भी व्यक्ति नवजात को अपने सीने से चिपकाकर उन्हें गर्मी देते हैं. यह प्रक्रिया तब तक करने की सलाह दी जाती है जब तक बच्चे का वजन 2.5 किलोग्राम न हो जाए.

कंगारू मदर केयर नियमित स्तनपान कराने में होता है सहायक :

मोड्यूल 16 के बारे में जानकारी देते हुए डीपीओ बेबी रानी ने कहा कंगारू मदर केयर से कमजोर बच्चों की वजन वृद्धि, स्तनपान कराने में मदद के साथ साथ बच्चे के शरीर को गर्माहट मिलती है. उन्होंने कहा स्तनपान कराने के दौरान सावधानी जरूर बरतनी चाहिए. जैसे कि बच्चे को छूने से पहले हाथ को साफ कर लेना चाहिए. इसके अलावा जब बच्चा पास में हो तो मास्क जरूर पहनना चाहिए. इन सावधानियों के साथ हम कमजोर नवजात को स्वस्थ बना सकते हैं.

कमजोर बच्चे की कैसे करें पहचान:

प्रशिक्षण के दौरान केयर इंडिया के डीटीओ राहुल सोनकर ने कहा कमजोर नवजात की पहचान मुख्यतः 3 तरीके से होती है. इसमें पहला तरीका है उसका वजन 2 किलोग्राम या इससे कम हो. दूसरा तरीका है कि बच्चा स्तनपान करने में सक्षम नहीं हो और तीसरा तरीका है कि बच्चे का जन्म गर्भावस्था के 37 सप्ताह के पहले हो गया हो. इन पैमानों पर नवजात को जन्म के बाद परखने की जरूरत है और अगर बच्चा कमजोर पाया जाता है तो उसकी देखभाल शुरू कर देने की जरूरत है.

बच्चो के सही पोषण के लिए कार्यरत है आईसीडीएस :

राष्ट्रीय पोषण अभियान के जिला समन्यवक अनमोल गुप्ता ने कहा बच्चों के बेहतर स्वास्थ्य व सही पोषण उपलब्ध कराने के लिए आईसीडीएस द्वारा सभी जरूरी क्रियाकलाप किये जाते हैं. आंगनबाड़ी सेविका की मदद से गांव में जाकर लोगों को कमजोर नवजात की देखभाल से संबंधित उपाय बताए जाते हैं. कमजोर नवजात पैदा नहीं हो, इसे लेकर गर्भावस्था की शुरुआत से ही देखभाल की जरूरत होती है. इसके आलावा 6 माह तक बच्चो को केवल स्तनपान कराना, बच्चों को बोतल से दूध नहीं पिलाना , बच्चों को सम्पूर्ण टीकाकरण एवं बच्चों को समय से विटामिन A की खुराक पिलाना मोड्यूल 6 के अनुसार बच्चो के सही पोषण के लिए आवश्यक है। 6 माह पूर्ण होने के बाद शिशु को अधिक ऊर्जा की जरूरत होती है। इस दौरान उनका शारीरिक एवं मानसिक विकास तेजी से होता है। इसके लिए सिर्फ स्तनपान पर्याप्त नहीं होता है। इसलिए 6 माह के बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार की भी जरूरत होती है। बच्चों को गाढ़ी दाल, अनाज, हरी पत्तेदार सब्जियां, मौसमी फल और दूध व दूध से बना उत्पाद खिलाया जाता है। तरल व पानी वाला भोजन जैसे दाल का पानी या मांड आदि न देकर उतना ही अर्द्ध ठोस आहार दिया जाता है, जितना बच्चे खा सकें। धीरे-धीरे भोजन की मात्रा, भोजन का गाढ़ापन बढ़ाये जाने की जानकारी दी जाती है।

इन बातों का रखें ख्याल :

  • 6 माह बाद स्तनपान के साथ अनुपूरक आहार शिशु को दें।
  • स्तनपान के अतिरिक्त दिन में 5 से 6 बार शिशु को सुपाच्य खाना दें।
  • शिशु को मल्टिंग आहार (अंकुरित साबुत आनाज या दाल को सुखाने के बाद पीसकर) दें।
  • माल्टिंग से तैयार आहार से शिशुओं को अधिक ऊर्जा प्राप्त होती है।
  • शिशु यदि अनुपूरक आहार नहीं खाए तब भी थोड़ा-थोड़ा करके कई बार खिलाएं।