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पूजा पाल के अंर्तजातीय पुर्नविवाह पर विवाद क्यों..?

उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2022 में कौशाम्बी जनपद के चायल विधानसभा क्षेत्र-253 से समाजवादी पार्टी की प्रत्याशी पूजा पाल के विवाह को लेकर विवाद छिड़ गया है और इस विवाद में सबसे अधिक गड़ेरिया समाज के लोग भाग ले रहे हैं। गड़ेरिया समाज के पारम्परिक व पुरुषवादी सोच के लोग अंतरजातीय पुनर्विवाह पर एतराज़ जता रहे हैं तो प्रगतिशील लोग उचित ठहरा रहे हैं। मीडिया के लोग भी पूजा पाल के नेतृत्व व पूर्व के कार्यकाल में किये गए काम की बजाए उनके वैवाहिक विवाद को ही हवा देने में लगे हुए हैं।

आप सोच रहे होंगे कि आखिर पूजा पाल है कौन? पूजा पाल को जानने के लिए आपको शेर-ए-इलाहाबाद राजू पाल के बारे में भी जानना होगा, क्योंकि पूजा पाल की शुरुआती पहचान राजू पाल से बनी थी। उत्तर प्रदेश विधानसभा चुनाव 2002 में इलाहाबाद शहर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र से समाजवादी पार्टी के बाहुबली नेता या यों कहें कि अपराधी अतीक अहमद के खिलाफ बसपा के टिकट राजू पाल ने चुनाव लड़ा। अतीक अहमद की जीत मिली और राजू पाल को हार। कुछ लोगों का कहना है कि राजू पाल कभी अतीक अहमद के शूटर रह चुके थे, इस दावे में कितनी सच्चाई है मुझे नहीं पता। लोकसभा चुनाव 2004 में फूलपुर लोकसभा क्षेत्र से अतीक अहमद सांसद बन लोकसभा पहुँच गए, जिसके कारण इलाहाबाद शहर पश्चिमी के विधायक का पद खाली हो गया। अक्टूबर, 2004 में उपचुनाव हुआ जिसमें अतीक अहमद ने अपने भाई मोहम्मद अशरफ़ को सपा से टिकट दिलवाया और बसपा के टिकट पर राजू पाल को मैदान में उतरा। उपचुनाव में लगभग 4000 वोट से राजू पाल को विजयी घोषित किया गया। यह जीत राजू पाल के लिए काल बन गई। जहां अतीक अहमद के ख़िलाफ़ कोई मैदान में उतरने की हिम्मत नहीं जुटाता था उसी क्षेत्र में उसके भाई को एक सामान्य परिवार का लड़का राजू पाल हरा दिया। अतीक अहमद अपने भाई की हार को अपमान समझ राजू पाल को मारने की साजिश रचने लगा।

राजू पाल पर पहला जानलेवा हमला 21 नवम्बर, 2004 को उनके निजी कार्यालय में किया गया लेकिन उसमें बाल-बाल बचे। दूसरी बार 28 दिसम्बर, 2004 को जानलेवा हमला किया गया जिसमें मुश्किल से उनकी जान बची। दो जान लेवा हमला के बाद विधायक ने पुलिस-प्रशासन से लिखित बताया कि मेरे जान को अतीक अहमद तथा मोहम्मद अशफ़ाक़ से खतरा है इसलिए पुख्ता सुरक्षा मुहैया कराई जाए लेकिन प्रशासन ने इसे गम्भीरता से नहीं लिया और मात्र दो सिपाही के जिम्मे विधायक की सुरक्षा सौंप दी गई, जो कि नाकाफ़ी साबित हुए। जिसका डर था वही हुआ। 25 जनवरी, 2005 को एस. आर. एन. अस्पताल स्थित पोस्टमॉर्टम से किसी छात्र की हत्या हुई थी उसी के पोस्टमार्टम का जायजा लेकर लौट ही रहे थे कि सुलेमसराय जी.टी. रोड पर उनकी गाड़ी को घेरकर घात लगाए हमलावरों ने हमला बोल दिया। क्वालिस गाड़ी को वो खुद चला रहे थे और उनके बगल की सीट पर उनके दोस्त की पत्नी रूखसाना बैठी थीं। उनकी गाड़ी के साथ एक स्कॉर्पियो भी था जिसमें उनके साथ के कुछ लोग सवार थे। बताया जाता है कि हमलावर डेढ़ दर्जन के आसपास थे। सबने घेरकर विधायक राजू पाल के शरीर को छलनी कर दिया। बहुत लोगों का कहना है कि पुलिस उनके घायल शरीर को सीधे अस्पताल ले जाने की बजाय इधर-उधर चक्कर काटती रही। अंततः जीवन ज्योति हॉस्पिटल में ले जाया गया जहाँ डॉक्टरों ने मृत घोषित कर दिया। शेर-ए- इलाहाबाद के शरीर से 19 गोलियाँ निकाली गई थीं। राजू पाल के साथ संदीप यादव और देवीलाल भी उस हमले में मारे गए। पुलिस द्वारा पोस्टमार्टम के बाद गुपचुप तरीके से राजू पाल की लाश को जला दिया गया। गणतंत्र दिवस की पूर्व संध्या पर विधायक को गुण्डों के गोलियों से शहादत देनी पड़ी। आज भी उस घटना को याद कर चश्मदीद सिहर उठते हैं।

राजू पाल की शादी 16 जनवरी, 2005 को पूजा पाल के साथ हुई थी। शादी के दसवें दिन पूजा पाल को गुण्डों ने विधवा बना दिया। पूजा पाल का जन्म बिल्कुल सामान्य परिवार में हुआ है। बताया जाता है कि उनके पिता पँचर की दुकान चलाते थे। पूजा पाल और राजू पाल की पहली मुलाकात किसी हॉस्पिटल में हुई थी और दोनों में प्रेम हो गया, जो कि विवाह में परिणत हुआ। जरा सोचिए जिस दुल्हन के हाथ की मेहंदी भी पूरी तरह से न छूटी हो और उसके पति का साथ छूट जाए, उसके ऊपर उस वक्त क्या बीतता होगा। खैर, उस दुःख की घड़ी में कुमारी बहन मायावती का साथ मिला। उन्होंने पूजा पाल के सर पर हाथ रखकर हर प्रकार की मदद का आश्वासन दीं। पूजा पाल ने अतीक अहमद, मोहम्मद अशफ़ाक एवं उसके साथी हत्यारों पर एफ. आई. आर. करवाया। मामला सुप्रीम कोर्ट तक गया और 22 जनवरी, 2016 को उच्चतम न्यायालय ने इस मामले को सी.बी.आई. को सौंप दिया गया। कुल नौ लोग को आरोपी बनाया गया, जिसमें एक राजू पाल के स्वजातीय रंजीत पाल भी शामिल है। एक आरोपी अकबर जो कि अतीक अहमद का गुर्गा था उसकी पिछले साल कोरोना के कारण मौत हो गई।

राजू पाल की हत्या के बाद पुनः उपचुनाव हुआ और इस बार बसपा की ओर से पूजा पाल को मैदान में उतारा गया तथा सपा की ओर से फिर मोहम्मद अशफ़ाक चुनाव लड़ा और इस बार वह जीत गया। 2007 के विधानसभा चुनाव में पुनः पूजा पाल को बसपा से टिकट मिला और इसबार जीत हासिल कर सदन में दस्तक दीं। विधानसभा चुनाव 2012 में सपा की लहर में भी पूजा पाल ने बसपा के टिकट पर जीत बरकरार रखा, लेकिन 2017 के चुनाव में भाजपा की लहर में पूजा पाल को हार का सामना करना पड़ा। इलाहाबाद शहर पश्चिमी विधानसभा क्षेत्र में सिद्धार्थ नाथ ने भाजपा का फूल खिलाया। अतीक अहमद का राजनीतिक किला पूजा पाल ने पूरी तरह से ध्वस्त कर दिया है। फरवरी, 2018 में पूजा पाल को बहुजन समाज पार्टी से किसी पार्टी विरोधी गतिविधियों व अनुशासनहीनता के आरोप में निष्कासित कर दिया गया और उधर सपा प्रमुख अखिलेश यादव बने तो अतीक अहमद को सपा से हटा दिया गया। बसपा से निकलने के बाद पूजा पाल सपा में शामिल हो गईं। लोकसभा चुनाव 2019 में पूजा पाल को समाजवादी पार्टी ने कनौज से भारतीय जनता पार्टी के सांसद साक्षी महाराज के खिलाफ टिकट देने की घोषणा की लेकिन अगले ही दिन टिकट वापस भी ले लिया गया। उव वक्त गाहे-बगाहे एक खबर चर्चा में आने लगी कि पूजा पाल दूसरा विवाह कर चुकी हैं लेकिन बताना नहीं चाहती हैं इसलिए सपा ने टिकट वापस ले ली। उस वक्त पूजा पाल को शादी के पक्ष में कहीं भी हाँ या नहीं बोलते हुए नहीं सुना गया। 2022 के विधानसभा चुनाव में अपने नामांकन के हलफनामे में उन्होंने अपने पति का नाम ब्रजेश वर्मा बताया है तथा अपने पति का ही पता भी अंकित किया है। यह सूचना मिलते हैं विवाद शुरू हो गया है और समर्थक तथा विरोधियों के बीच तर्क-कुतर्क चालू है।

उम्मीद है कि चायल विधानसभा क्षेत्र में सपा प्रत्याशी पूजा पाल (बसपा से दो बार विधायक) तथा अपना दल(एस) के प्रत्याशी नगेन्द्र सिंह पटेल (सपा के पूर्व सांसद) के बीच रोमांचक मुकाबला होने वाला है, लेकिन यह भी याद रहे कि यह क्षेत्र 2002 से 2017 तक लगातार बसपा के खाते में रहा है और 2017 में यहाँ दूसरे स्थान पर कांग्रेस थी जबकि जीत भाजपा के संजय कुमार को मिली थी। 27 फरवरी,2022 को जनता अपना मत ई.वी.एम. बन्द कर देगी और 10 मार्च, 2022 को चुनाव आयोग द्वारा जनता का फैसला सबके सामने प्रस्तुत कर दिया जाएगा।।

बहरहाल बढ़ते पूजा पाल के ऊपर उठते सवालों की ओर। सवाल यह किया जा रहा है कि पूजा पाल ने विवाह किया तो इसमें गुनाह क्या है? गड़ेरिया समाज के कुछ लोगों का कहना है कि उन्होंने दूसरी शादी क्यों की? यदि करना ही था अपनी जाति में क्यों नहीं किया? और शादी की तो छुपाने की क्या जरूरत है? ब्रजेश वर्मा (पटेल) से शादी कीं तो फिर गड़ेरिया समाज के वोट के राजू पाल के नाम का उपयोग या दुरपयोग क्यों कर रही हैं? इन तमाम सवालों को गम्भीरता से देखा जाए तो मुझे यही लगता है कि यह पारम्परिक, पुरूषवादी एवं संकुचित मानसिकता का परिचायक मात्र है और कुछ भी नहीं। विदित हो कि पूजा पाल ने ब्रजेश वर्मा के साथ 20 अप्रैल, 2018 को आर्य समाज पद्धति के अनुसार विवाह किया है। एक युवती इक्कीस-बाइस साल की उम्र में विधवा हो जाती है तो क्या उसे विवाह नहीं करना चाहिए? आप कहेंगे कि बिल्कुल करना चाहिए तो फिर चौदह साल विधवा रहने के बाद पूजा पाल ने विवाह कर लिया तो इतना हाय-तौबा क्यों? अगर कोई लड़का या लड़की अंर्तजातीय विवाह करता है तो उसे प्रगतिशील समाज क्रांतिकारी कदम बताता है तो फिर पूजा पाल ने अंतरजातीय विवाह किया तो इसपर सवाल क्यों? अगर कोई महिला दूसरे से शादी करने के बाद भी अपने पहले दिवंगत पति को शिद्दत से याद करती है तो इसमें बुराई क्या है, इसकी तो सराहना होनी चाहिए। कुछ पाल-बंधुओं का कहना है कि पटेल से शादी की है तो फिर पाल क्यों नहीं लिखती है, वर्मा या पटेल क्यों नहीं। हम सब जानते हैं कि संविधान पूरा छूट देता है कि कोई भी व्यक्ति किसी टाइटल का प्रयोग कर सकता है फिर यहाँ तो जन्मजात टाइटल है। मैंने 22 सितंबर, 2015 को मशहूर कथाकार पद्मश्री मेहरुन्निसा परवेज़ से बातचीत के दौरान पूछा कि आपने दूसरी शादी आईएएस भागीरथ प्रसाद से किया जो कि एक हिंदू हैं तो क्या आपको टाइटल बदलने के लिए नहीं कहा गया। उन्होंने जवाब दिया कि बहुत दबाव दिया गया लेकिन मैंने फैसला लिया कि किसी भी हालत में टाइटल नहीं बदलूँगी क्योंकि दूसरे विवाह से पहले ही कई रचनाएँ प्रकाशित हो चुकी हैं। साहित्य जगत मेरी पहचान इसी नाम से है तो फिर नाम क्यों बदलूँ। उसी तरह राजनीतिक जगत में पूजा पाल की पहचान पाल टाइटल के बनी हुई है तो फिर टाइटल बदलने की बात ही कहाँ बची है। मेरी समझ से ऐसे भी किसी महिला को विवाहोपरांत पति या ससुराल के दबाव में टाइटल नहीं बदलना चाहिए। हाँ, पूजा पाल ने अपनी शादी को उजागर करने से लगभग चार वर्षों तक परहेज़ किया जो कि नहीं करती तो और बढ़िया होता। कोई विधवा महिला या विधुर पुरूष अंतरजातीय पुर्नविवाह करते हैं तो मेरी समझ उसे क्रांतिकारी कदम मानकर सराहना करनी चाहिए, इसलिए मैं पूजा पाल और ब्रजेश वर्मा के इस साहसिक फैसले की सराहना करता हूँ। दोनों ने जात से जमात की ओर बढ़ने का निर्णय लिया है। ऐसा नहीं है कि पूजा पाल के फैसले पर सिर्फ गड़ेरिया समाज के ही कुछ लोग सवाल खड़ा कर रहे हैं बल्कि कुछ लोग सवाल तो ब्रजेश वर्मा की जाति के लोग भी उनसे कर रहे होंगे, क्योंकि उपयुक्त सवाल करने वाले लोग हर समाज में अभी विद्यमान हैं। ये वही लोग हैं जो अपनी जाति के अंतर्गत विभाजित कुर्री/उपजाति में भी विवाह करने से परहेज करते हैं।

इस लेख मे जो भी विचार है लेखक का निजि है ,इसका किसी भी प्रकार से गौरीकिरण न्यूज पोर्टल समर्थन नहीं करता है।

लेखक-डॉ. दिनेश पालअसिस्टेंट प्रोफेसर जय प्रकाश विश्वविद्यालय, छपरा बिहार