विश्वगुरू बनने की राह पर अग्रसर है भारत – राज्यपाल
भारत एक युवा देश है और उनकी क्षमताओं का पूरा लाभ उठाने के लिए गुणवत्तापूर्ण शिक्षा व अनुसंधान आवश्यक है। केवल युवा पीढ़ी के लिए ही नहीं बल्कि राष्ट्र की समृद्धि व विकास के लिए भी इस दिशा में नीतिगत आधार पर आगे बढ़ने की जरूरत है। यही कारण है कि आज दुनिया भर की सरकारें उच्च शिक्षा नीतियों में अनुसंधान और नवाचार को बढ़ावा दे रही हैं। भारत पुरातन काल में विश्व गुरू के तौर पर पहचाना जाता था और काशी, तक्षशिला, नालंदा, प्रयाग, मिथिला आदि प्रमुख शिक्षा के केंद्र विश्वभर के विद्वानों के बीच आकर्षण का केंद्र हुआ करते थे। यह वह दौर था जब विद्यार्थी को उसकी रूचि के अनुसार शिक्षा प्रदान की जाती थी लेकिन लॉर्ड मैकाले की अंग्रेजी शिक्षा पद्धति ने इस पूरी तरह से बदलकर भारतीयों को महज एक क्लर्क बनाने पर ही ध्यान दिया। इसलिए जरूरी है कि शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलाव किए जाए। इन्ही बदलावों के माध्यम से हम फिर से विश्व गुरू के रूप में अपनी पहचान बना सकते हैं। इसके लिए सूचना तकनीक, ऑनलाइन सुविधाओं, कौशल विकास व अनुसंधान पर विशेष ध्यान देना होगा। यह विचार हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय, महेंद्रगढ़ में आयोजित एक दिवसीय द्वितीय वार्षिक परिसम्मेलन में मुख्य अतिथि के रूप में शामिल हुए महामहिम राज्यपाल श्री सत्यदेव नारायण आर्य ने अपने संबोधन में व्यक्त किए। इस अवसर पर प्रदेश के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर रामबिलास शर्मा, विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित थे। कार्यक्रम की अध्यक्षता विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने की। इस मौके पर राज्यपाल के सचिव श्री विजय सिंह दहिया, चौधरी चरण सिंह हरियाणा कृषि विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. के.पी. सिंह, चौधरी रणवीर सिंह विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.बी. सोलंकी, चौधरी देवी लाल विश्वविद्यालय कुलपति प्रो. विजय कायत, महर्षि वाल्मीकि विश्वविद्यालय के कुलपति डॉ. श्रेयांश द्विवेदी,एनआरसी एक्वाइन के निदेशक डॉ. बी.एन. त्रिपाठी सहित विभिन्न विश्वविद्यालयों के निदेशक, अधिष्ठाता व वरिष्ठ प्रशासक भी मौजूद रहे।
बदलते दौर में शिक्षा के क्षेत्र में क्रांतिकारी बदलावों पर दिया जोर
मानव संसाधन विकास मंत्रालय की योजना पंडित मदन मोहन मालवीय राष्ट्रीय मिशन ऑन टीचर्स एंड टीचिंग के तहत विश्वविद्यालय में आयोजित इस एक दिवसीय परिसम्मेलन में शामिल प्रदेश के विभिन्न विश्वविद्यालयों व शैक्षणिक संस्थानों के प्रमुखों को उद्घाटन सत्र में संबोधित करते हुए राज्यपाल ने कहा कि गुणवत्तापूर्ण शिक्षा का सीधा अर्थ है ऐसे मानव संसाधन तैयार करना, जो शिक्षा, व्यापार, उद्योग, सरकार, सेवा आदि क्षेत्रों की आवश्यकताओं को पूर्ण करने में कुशल हों। उच्च शिक्षण संस्थानों को इस दिशा में अपनी समूची ऊर्जा झोक देनी चाहिए। गुणवत्तापूर्ण शिक्षण और उत्कृष्ट अनुसंधान के लिए प्रयासरत विश्वविद्यालयों के समक्ष अनेक चुनौतियां है, जिसके समाधान के लिए संस्थानों को प्रभावी शिक्षण, अधिगम, नवाचार और अनुसंधान के स्रोत के रूप में विकसित करने के लिए कुशल नेतृत्व व अपसी सहयोग की आवश्यकता है। उन्होंने हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ के नेतृत्व में हुई संसाधनों के सांझाकरण की इस शुरूआत को महत्त्वपूर्ण बताया और कहा कि विश्वविद्यालयों के शिक्षाविदों व शोधकर्ताओं को एकजुट होकर इस मुहिम में सहयोग करना चाहिए। उन्होंने कहा कि मुझे भरोसा है कि यह परिसम्मेलन शिक्षा के क्षेत्र में 21वीं सदी में हरियाणा को अग्रणी स्थान दिलायेगा। इस मौके पर महामहिम राज्यपाल ने संविधान निर्माण में बाबा साहब भीम राव अम्बेडकर की भूमिका का उल्लेख करते हुए विश्वविद्यालय में प्रेरणा स्वरूप उनकी प्रतिमा स्थापित करने की बात कही। उन्होंने अपने विवेकाधिकार के अंतर्गत हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय को 11 लाख रूपये का अनुदान प्रदान करने की भी घोषणा की।
इस अवसर पर विशेष अतिथि के रूप में उपस्थित प्रदेश के शिक्षा मंत्री प्रोफेसर रामबिलास शर्मा ने कहा कि आपसी सहयोग से ही सफलता का मार्ग प्रशस्त होगा। उन्होंने कहा कि शिक्षा व्यक्तित्व निर्माण की प्रक्रिया है। अध्ययन व अध्यापन निरंतर जारी रहना चाहिए। विश्वविद्यालय शोध के लिए बनी है और इसके बिना इनका उद्देश्य पूर्ण नहीं हो सकता। उन्होंने महाराणा प्रताप व शहीद उधम सिंह का जिक्र करते हुए स्वर्णिम भारतीय इतिहास की ओर भी शिक्षाविदों का ध्यान आकर्षित किया और उन्हें उस इतिहास को याद करते हुए भारतीय ख्याति व गौरव को पुनःस्थापित करने के लिए मिलकर साझा प्रयास करने के लिए प्रेरित किया।
शिक्षा मंत्री बोले अध्ययन व अध्यापन निरंतर जारी रहने वाली प्रक्रिया
शिक्षा मंत्री ने अपनी विदेश यात्रा का उल्लेख करते हुए भारतीय इतिहास व उसके महत्त्व का देश-विदेश में प्रभाव भी वर्णित किया और कहा कि शिक्षा के क्षेत्र में ध्यान का अलग ही महत्त्व है और बाबा जयराम दास की यह तपोभूमि ध्यान एवं शोध कार्य के लिए सर्वोत्तम है। इसलिए यहां हुई आपसी सहयोग की यह शुरूआत उच्च शिक्षा के क्षेत्र में बदलाव का एक नया दौर लेकर आएगी। इस मौके पर शिक्षा मंत्री ने शिक्षण संस्थानों के कुलपतियों व प्रशासकों से कहा कि वह भी कक्षाओं के लिए कुछ समय निकाले और अपनी विशेषज्ञता व अनुभव का लाभ विद्यार्थियों को प्रदान करें। इस अवसर पर गणमान्य अतिथियों ने हकेंवि के सूचना बुलेटिन का भी अनावरण किया।
परिसम्मेलन के उद्घाटन सत्र को संबोधित करते हुए विश्वविद्यालय के कुलपति प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने महामहिम राज्यपाल श्री सत्यदेव नारायण आर्य व प्रदेश के शिक्षा मंत्री प्रो. रामबिलास शर्मा सहित गणमान्य अतिथियों व प्रतिभागियों का आभार व्यक्त करते हुए कहा कि इस प्रयास का उद्देश्य सीमित संसाधनों के सर्वोत्तम प्रयोग को बढ़ावा देना है। जिसके लिए आपसी साझेदारी वह साधन बन सकती है जिसके सहारे उच्च शिक्षा की तस्वीर बदल पाना संभव है। मानव संसाधन विकास मंत्रालय भी वैज्ञानिक, तकनीकी, विशलेषणात्मक, शोध उपकरण, सुविधाओं को ऑनलाइन नेशनल नेटवर्क के माध्यम से एकत्र कर उपयोग करने की दिशा में प्रयासरत है।
उन्होंने कहा कि राष्ट्रीय शिक्षा नीति-2019 में भी प्राथमिक स्तर से लेकर विश्वविद्यालय स्तर के संगठनों और व्यावसायिक संस्थानों के बीच संसाधनों के साझाकरण और उन्हें एक दूसरे की पूरक इकाई मानने पर जोर दिया गया है, ताकि उपलब्ध संसाधनो का शिक्षा के लिए समेकित रूप में अधिकतम उपयोग किया जा सके। प्रो. कुहाड़ ने नालंदा और तक्षशिला की मिसाल देते हुए भारत में उदार शिक्षा को पुनर्जीवित करने पर बल दिया। उन्होंने उच्च शिक्षा में अनुसंधान को बढ़ावा देने के लिए राष्ट्रीय शिक्षा नीति की मसौदा समिति द्वारा प्रस्तावित नेशनल रिसर्च फाउंडेशन की सराहना करते हुए उसे एक ऐतिहासिक कदम बताया। उच्च शिक्षण संस्थानों के बीच सर्वोत्तम कार्यपद्धतियों को साझा करने पर बल देते हुए कहा कि यदि अपनी अनूठी विशेषताओं, कार्यपद्धतियों और प्रतिमानों को साझा करें, तो संस्थागत स्तर पर सभी को लाभ मिल सकता है। उन्होंने कहा कि शैक्षणिक प्रशासकों धानों का दायित्व बनता है कि वे अनुसंधान और शिक्षण विधियों में नवीनतम प्रगतियों और नवाचारों के साथ-साथ चलें।
हकेंवि में आयोजित हुआ द्वितीय वार्षिक परिसम्मेलन, प्रदेश के शैक्षणिक प्रशासकों ने लिया हिस्सा
प्रो. कुहाड़ ने संसाधनों की कमी के संबंध में केंद्रीय विश्वविद्यालय ‘रिसोर्स शेयरिंग पोर्टल‘ की मेजबानी करने की पेशकश की, जो उपकरण, अनुसंधान और प्रयोगशाला सुविधाओं, परामर्श सेवाओं, प्रिंट और डिजिटल संसाधनों के डेटाबेस की तरह काम करेगा, जो विश्वविद्यालयों व शिक्षण संस्थानों के छात्रों, शोधकर्ताओं और संकाय सदस्यों को नाममात्र शुल्क पर उपयोग के लिए उपलब्ध होगा। प्रो. कुहाड़ ने महामहिम राज्यपाल महोदय का अभिनंदन करते हुए कहा कि हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय ने बड़े पैमाने पर ओपन ऑनलाइन पाठ्यक्रम (मूक) के लिए ई-सामग्री को रिकॉर्ड और विकसित करने के लिए वर्चुअल कक्षाओं के रूप में आधुनिक सुविधाओं का विकास किया है, जिसे भाग लेने वाले विश्वविद्यालयों के साथ साझा कर सकते हैं। छात्रों और शोधकर्ताओं के लिए आधुनिक प्रयोगशालाओं की जानकारी भी रिसोर्स शेयरिंग पोर्टल पर उपलब्ध कराई जा सकती है। प्रो. कुहाड़ ने आगे कहा कि इसके अलावा विश्वविद्यालय का नवप्रर्वतन, कौशल एवं उद्यमिता विकास केंद्र (सीआईएसईडी) आपने नवाचार उत्पादों के चलते राष्ट्रीय स्तर पर पहचान रखता है। इसे एक इनोवेशन हब के तौर पर विकसित किया जा रहा है जो कि अन्य संस्थानों को भी उनके नवाचार उत्पादों को विकसित करने में सहयोग प्रदान करेगा। राष्ट्र गान के साथ उद्घाटन सत्र का समापन हुआ।
परिसम्मेलन के दूसरे सत्र में सभी प्रतिभागी विश्वविद्यालय के प्रशासकों और प्रतिनिधियों ने अपने-अपने संसाधनों व आदर्श पहलुओं के बारे में प्रस्तुतिकरण दिया और कार्यक्रम के अंत में सभी उपस्थित शैक्षणिक प्रशासकों ने संसाधनों को साझा करने की पहल की सराहना की और अपनी स्वीकृति प्रदान की। परिचर्चा के अंत में प्रो. आर.सी. कुहाड़ ने सभी उपस्थित प्रतिभागियों का भविष्य में भी साझा प्रयासों के साथ आगे बढ़ने का आह्वान किया। कार्यक्रम के संयोजक डॉ. प्रमोद कुमार और सह-संयोजक डॉ. सुरेंद्र सिंह थे।