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‘संत साहित्य: सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ’ विषय पर एक दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का हुआ आयोजन

भारत खुद में एक आध्यात्मिक दर्शन है:- डॉ कृष्ण गोपाल

संत साहित्य परंपरा के विभिन्न आयामों पर शोध हो:- प्रो. संजीव कुमार शर्मा

मोतिहारी।कुमारी प्राची
बिहार:महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय, मोतिहारी, बिहार के शोध एवं विकास प्रकोष्ठ के तत्वावधान में ‘संत साहित्य: सामाजिक एवं सांस्कृतिक संदर्भ’ विषयक एक दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी का आयोजन सोमवार, 13 जुलाई को प्रातः 10 बजे से किया गया। संगोष्ठी की शुरुआत वैदिक मंत्रोच्चारण द्वारा विधिवत की गई।

राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी की अध्यक्षता कर रहे महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफेसर संजीव कुमार शर्मा ने सभी वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का स्वागत करते हुए कहा कि यह ई संगोष्ठी एक बहुत बड़े स्तर का शैक्षणिक अनुष्ठान है जिसमें देश के लगभग सभी हिस्सों से प्रतिभागी सहभागिता कर रहे हैं। उन्होंने इस राष्ट्रीय संगोष्ठी के लिए शोध एवं विकास प्रकोष्ठ को बधाई एवं धन्यवाद देते हुए अपने अध्यक्षीय उद्बोधन में कहा कि आज के इस कार्यक्रम से सभी प्रतिभागियों एवं हमारे शोधार्थियों को संत साहित्य परंपरा का विस्तृत आयाम जानने एवं समझने को मिलेगा। संत परंपरा एकात्म की परंपरा है। संत परंपरा की समीक्षा की आवश्यकता है। आज के इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में केंद्रित विषय पर पुस्तक प्रकाशित होना चाहिए। संत साहित्य के विभिन्न आयामों पर शोध की आवश्यकता है। आगे उन्होंने कहा कि भक्ति को केवल एक धर्म विशेष, पंथ विशेष तक सीमित रखने का विचार संत का कभी नहीं रहा। संत की परिभाषा केवल भक्ति से संबंध नहीं है। संत की विद्वता, जागरूकता, सचेतता में भक्ति किसी प्रकार का बाधा नहीं बनती संपूर्ण भारत में संत की परंपरा रही है।

मुख्य अतिथि के तौर पर राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के सह सर कार्यवाह डॉ कृष्ण गोपाल जी ने कहा कि संत साहित्य आध्यात्मिक लोगों का साहित्य है। इस देश की आत्मा अध्यात्मिक है। अाध्यात्म जीवन के सभी अंगों को निर्देशित करता है। जो आज स्थिर है वह कल स्थिर रहेगा इसकी गारंटी नहीं है। भारत खुद में एक आध्यात्मिक दर्शन है। अगर सामाजिक व्यवस्था बिगड़ जाए तो आध्यात्म उसे दिशा देकर सुधारने का प्रयास करता है। वैदिक ऋषियों ने आध्यात्म के लिए आंदोलन किया। वैदिक ऋषियों ने समाज को आध्यात्मिक दिशा देकर उसे सही मार्ग पर ले जाने का कार्य किया। आगे उन्होंने कहा कि किसी भी समाज में व्यवस्थाएं कितनी भी सुंदर बनाई जाए वह बाद में टूट जाती है। शासक जितना भी अच्छा हो वह बिखर जाता है। भारतीय आध्यात्मिक दशा बिखरने के बाद अाध्यात्म उसको दिशा देकर सुधारने का प्रयास करता है। वैदिक ऋषियों का भी एक आंदोलन है। वैदिक ऋषियों ने सिद्धांतों को प्रतिपादित किया। संत ऋषियों के विचार आध्यात्मिक दृष्टि है। संपूर्ण भारत में संत आंदोलन हुआ। दक्षिण में भी तो उत्तर में भी, पश्चिम में भी तो पूर्वोत्तर में भी। संतों में ब्राह्मण भी थे तो शूद्र भी। इसलिए संत का कोई जाति और बिरादर नहीं है। संत आंदोलन राष्ट्रीय एकता का बोध कराने वाला आंदोलन है। इस्लाम के आक्रमण को चुनौती देने का आंदोलन भी है। संत साहित्य निराश हिंदू समाज को मंच देता है। उसके आत्मविश्वास को बढ़ाता है।

बीज वक्तव्य के तौर पर हिमाचल प्रदेश केंद्रीय विश्वविद्यालय के कुलपति प्रोफ़ेसर कुलदीप चन्द्र अग्निहोत्री ने कहा कि महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय द्वारा आयोजित संत साहित्य पर यह राष्ट्रीय वेबिनार एक सेमिनार का निराकार स्वरूप है। जिसमें हम सेमिनार का साकार स्वरूप देखते हैं। आगे उन्होंने कहा कि संत साहित्य की साधना दो प्रकार की है। व्यक्तिगत साधना और सामाजिक एवं सांस्कृतिक साधना। ईश्वर तो कण-कण में व्याप्त है, संतों ने बार बार इसकी घोषणा की है। साकार से निराकार की साधना है। भक्ति आंदोलन से संतो ने जनता को विदेशी आक्रमणकारियों से लड़ने के लिए तैयार किया। संतो ने आम जनता में एक नई ताकत पैदा की। आपस के वैचारिक अंतरों को दूर करने की जरूरत है। इसके लिए संतों ने भी प्रयास किया है। सब एक ही परमात्मा के रूप हैं। एकता की राह संत समाज ने ही दिखाया है। सामाजिक बुराइयों को दूर करने का भी कार्य संत समाज ने किया।भारतीयों को अपनी आस्था एवं परंपराओं से भी जोड़ने का कार्य संतों ने किया।

विशिष्ट वक्ता के तौर पर दिल्ली विश्वविद्यालय के हिंदी विभाग के प्रोफेसर चंदन चौबे ने कहा कि संत साहित्य में मनुष्य से ऊपर कुछ नहीं है। संतो ने जिस मत का प्रचार किया एवं समाज कल्याण के लिए जिसे आवश्यक समझा वह कोई संदेश नहीं बल्कि हमारी प्राचीन साहित्य है। प्राचीन साहित्य में हर चीज का बोध है। वर्ण और वर्ग की भावना से मुक्त संतान एक पंथ और संप्रदाय का निर्माण हुआ। यह भारतीय शौर्य और साहस का भी पाठ है। मध्ययुगीन भारतीय साहित्य हिंदी साहित्य का आलोचनात्मक इतिहास में कहा गया है कि जनता के हृदय तक पहुंचने में संत भक्ति कवि सक्षम हो पाते हैं।संत साहित्य को भारतीय शौर्य के आधार पर पढ़ना चाहिए।

मुख्य वक्ता के तौर पर उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान, लखनऊ के अध्यक्ष प्रोफेसर सदानंद गुप्त ने कहा कि जो पवित्र आत्मा है, बुद्धिमान है, जो परोपकारी है वही संत है। नीच कही जाने वाली जातियों को संतो ने ही सम्मिलित किया। तुलसी, मीराबाई, गुरु नानक देव भक्ति आंदोलन के संतों ने भेदभाव, अनाचार का विरोध किया। प्रेम से ही सारे बंधकों को मिटा कर, प्रेम केंद्रित इस आंदोलन से सब को भावनात्मक एकता के सूत्र में बांध दिया। आजादी के इतने वर्षों बाद भी संतों के सामाजिक समरसता की बातें वैसे ही जीवित है जैसे पहले थी। संतो ने शुद्ध मानवीय मूल्यों पर बल दिया। संत साहित्य एवं संतों के मत पर चिंतन से हमें दिशा मिलता है। संत साहित्य में समाज कल्याण समाहित है।

इस राष्ट्रीय संगोष्ठी में स्वागत भाषण हिंदी विभाग के सह आचार्य डॉ अंजनी कुमार श्रीवास्तव ने दिया, विषय प्रवर्तन हिंदी विभाग के सहायक आचार्य एवं इस ई संगोष्ठी के संयोजक श्यामनंदन ने किया। सभी वक्ताओं एवं प्रतिभागियों का धन्यवाद ज्ञापन हिंदी विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर राजेंद्र सिंह ने किया। इस ई संगोष्ठी की सह-संयोजिका डॉ आशा मीणा थी।
महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के शोध और विकास संकाय के अधिष्ठाता एवं इस ई-संगोष्ठी के संरक्षण समिति सदस्य प्रो. राजीव कुमार ने बताया कि इस राष्ट्रीय वेब संगोष्ठी में दो हजार से अधिक प्रतिभागियों ने रजिस्ट्रेशन किया एवं देश के विभिन्न प्रांतों से एक हजार से अधिक लोगों ने जूम एप एवं फेसबुक पेज के माध्यम से इस कार्यक्रम में सहभागिता किया। इस एक दिवसीय राष्ट्रीय ई-संगोष्ठी के संरक्षण समिति में मीडिया अध्ययन विभाग के अध्यक्ष एवं अधिष्ठाता प्रोफेसर अरुण कुमार भगत, वाणिज्य एवं प्रबंधन संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर पवनेश कुमार, मानविकी एवं भाषा संकाय के अधिष्ठाता प्रोफेसर राजेंद्र सिंह थें। आयोजन समिति में वाणिज्य विभाग के अध्यक्ष प्रोफेसर त्रिलोचन शर्मा, मीडिया अध्ययन विभाग के सह-आचार्य डॉ. प्रशांत कुमार, राजनीति विज्ञान विभाग के सह-आचार्य डॉ. नरेंद्र कुमार आर्या, वनस्पति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ. आलोक श्रीवास्तव, मीडिया अध्ययन विभाग के सहायक आचार्य डॉ सुनील दीपक घोडके, राजनीति विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ नरेंद्र सिंह, गांधीवाद और शांति अध्ययन विभाग के सहायक आचार्य डॉ अंबिकेश त्रिपाठी थें।
संगोष्ठी में छात्र कल्याण अधिष्ठाता प्रो. आनंद प्रकाश, मीडिया अध्ययन विभाग के सहायक प्राध्यापक डॉ परमात्मा कुमार मिश्र, पुस्तकालय विज्ञान विभाग के सहायक आचार्य डॉ भावनाथ पांडेय, जनसंपर्क अधिकारी शेफालिका मिश्रा सहित संगोष्ठी में महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सभी विभाग के प्राध्यापक, शोधार्थी एवं विद्यार्थी सक्रिय रूप से जुड़े थे। तकनीकी गतिविधियों का संचालन महात्मा गांधी केंद्रीय विश्वविद्यालय के सिस्टम एनालिस्ट दीपक दिनकर ने किया।